परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ८० वें जन्मोत्सव से पूर्व उनके बाएं हाथ की बांह पर अनेक दैवी कण आना, यह उनकी देह में विद्यमान श्रीविष्णु तत्त्व की जागृति का आरंभ होने का संकेत !

हे गुरुदेव, आपके रूप में हमें आपके अवतारी तत्त्वजागृति की यह अलौकिक घयना देखने का सौभाग्य मिल रहा है । आपका यह अवतारी तत्त्व हमें अधिकाधिक ग्रहण करना संभव हो’, यह आपके सुकोमल चरणों में प्रार्थना है !

हिन्दूजनों का उत्स्फूर्त प्रत्युत्तर प्राप्त विभिन्न जिलों की ‘हिन्दू एकता शोभायात्रा’ !

शोभायात्राओं में शुभचिंतकों ने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का छायाचित्र रखी पालकी का पूजन किया, तथा अनेक जिज्ञासुओं ने धर्मध्वज और पालकी पर पुष्पवर्षा की । इन शोभायात्राओं को मिला हुआ उत्स्फूर्त प्रत्युत्तर सनातन के कार्य का समर्थन करनेवाली फलोत्पत्ति ही है !

फोंडा में संपन्न शोभायात्रा के समय प्राप्त अनुभव !

शोभायात्रा जब फोंडा शहर से जा रही थी, तब मजदूरी पर काम करनेवाले एक श्रमिक ने फेरी को भावपूर्ण नमस्कार किया । अन्य एक श्रमिक अपना काम छोडकर फेरी में सम्मिलित हुआ । इससे ‘भगवान को भाव प्रिय है’, इसकी प्रतीति हुई ।

प्रत्येक जीव पर असीमित निरपेक्ष प्रेम करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

गुरुदेवजी, आप हमारे जीवन में आए’, इससे बडा कोई सौभाग्य नहीं है ! आपके सुकोमल श्रीचरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !

स्वयं महर्षि जिनकी महिमा वर्णन करते हैं, ऐसे श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

इस विश्व में अनेक लोग स्वयं को ‘गुरु’ कहलाते हैं; परंतु उनमें ‘सच्चे गुरु’ ऐसे कोई नहीं हैं । सप्तर्षियों की दृष्टि से इस पृथ्वी पर ‘गुरु’ अर्थात केवल परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ही हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के रूप में साक्षात भगवान ही ‘गुरु’ के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं ।

आपातकाल में सभी मनुष्य जीवित रहें; इसके लिए और सृष्टि के कल्याण हेतु क्रियाशील एकमेव द्रष्टा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

आपातकाल में रक्षा होने हेतु व्यक्ति स्वयं के बलबूते पर चाहे कितनी भी तैयारी कर ले, तब भी भूकंप, सुनामी जैसी महाभीषण आपदाओं से बचने हेतु संपूर्ण भार भगवान पर ही सौंपना पडता है । व्यक्ति ने साधना कर भगवान की कृपा पाई, तो वे किसी भी संकट में उसकी रक्षा करते ही हैं ।

आपातकाल की भीषणता के विषय में समय-समय पर सूचित कर उसके संदर्भ में उपाय निकालनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

भविष्यवेत्ता केवल भविष्यवाणी करते हैं, तो गुरु कृपावत्सल होते हैं । उसके कारण ही द्रष्टा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने आपातकाल की आहट पहचानकर साधकों को उस विषय में केवल सूचित ही नहीं किया, अपितु आनेवाले समय में साधकों को सुविधाजनक हो; इसके लिए प्रत्यक्ष उपाय भी आरंभ किए ।

साधकों की आपातकाल में रक्षा होने हेतु आध्यात्मिक स्तर पर कार्यरत कृपावत्सल परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

‘दुर्भाग्य का भयावतार’, ‘जिसे नरक कहते हैं, क्या वह यही है ?’, जैसे शीर्षकों द्वारा वर्तमान समाज की स्थिति कितनी भयावह है, यह समझ में आता है ।

विशिष्ट कष्ट के लिए विशिष्ट देवता का नामजप

सनातन के साधकों को अनिष्ट शक्तियों के कारण आध्यात्मिक कष्ट होने लगे, तब परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने हमें समय-समय पर बताया कि ‘सनातन के साधक ईश्वरीय राज्य (हिन्दू राष्ट्र) की स्थापना हेतु कार्यरत हैं; उसके कारण ही साधकों को अधिकांश कष्ट भुगतने पड रहे हैं ।

प्राणशक्ति प्रणाली उपचार पद्धति ढूंढना

रोगनिवारण के संदर्भ में बिंदुदाब, रिफ्लेक्सोलॉजी आदि उपचार-पद्धतियों में पुस्तकें अथवा जानकारों की सहायता आवश्यकता होती है । पिरैमिड, चुंबक चिकित्सा आदि उपचार-पद्धतियों में संबंधित साधन आवश्यक होते हैं ।