भविष्यवेत्ता केवल भविष्यवाणी करते हैं, तो गुरु कृपावत्सल होते हैं । उसके कारण ही द्रष्टा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने आपातकाल की आहट पहचानकर साधकों को उस विषय में केवल सूचित ही नहीं किया, अपितु आनेवाले समय में साधकों को सुविधाजनक हो; इसके लिए प्रत्यक्ष उपाय भी आरंभ किए । सनातन के आश्रमों के निर्माण के समय ही परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने कुएं से पानी खींचने की सुविधा करना, पहाड से बहते हुए पानी को शुद्ध होने के लिए नदी में मिलनेवाले पत्थर-कंकड भूमि में लगा देना जैसी प्रकृतिपूरक योजनाएं की हैं, इससे उनका द्रष्टापन दिखाई देता है ! उन्होंने साधकों में मितव्ययिता, समझौता करना आदि गुण अंतर्भूत कर प्रतिकूल काल का सामना करने की उनकी शारीरिक और मानसिक तैयारी करवा ली है ! |
आपातकाल की भीषणता को समझकर साधकों की मूलभूत आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए सुविधाएंउपलब्ध करानेवाले साधकवत्सल परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !
‘आपातकाल में औषधियां उपलब्ध होना कठिन है’, इसे पहले ही भांपकर वैद्य साधकों को विभिन्नउपचार-पद्धतियां सीख लेने की प्रेरणा देनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !
‘मैने ‘आयुर्वेद’ के विषय में शिक्षा ग्रहण की है । जब मैं आश्रम में पूर्णकालीन साधना करने के लिए आई, तब परात्पर गुरुदेवजी ने मुझे विभिन्न चिकित्सा-पद्धतियों का अध्ययन करना सिखाया । उसमें बिंदुदाब, रंगचिकित्सा, चक्र हीलिंग, मैन्युअल लिम्फाटिक ड्रेनेज (Manual Lymphatic Drainage), मर्म चिकित्सा, नस चिकित्सा (Neurotheraphy), अग्निकर्म विद्धकर्म इत्यादि पद्धतियों का समावेश है । इसके साथ ही वे मुझे आयुर्वेद के अंतर्गत आनेवाली पंचकर्म एवं मर्दन की विभिन्न पद्धतियां सीखने की प्रेरणा देते थे । वे कहते थे कि आनेवाले समय में औषधियां और वैद्य उपलब्ध नहीं होंगे; इसलिए बाह्य उपचार-पद्धतियां सीख लो । आज के समय में औषधियां उपलब्ध नहीं होतीं; इससे परात्पर गुरुदेवजी द्वारा बताई बातों की अभी प्रतीति हो रही है ।
२. ३ वर्ष पूर्व परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने ‘पल्सऑक्सिमीटर’ यंत्र देखने पर बताया था, ‘‘इस यंत्र को हमारे प्रत्येक आश्रम और सेवाकेंद्रों में उपलब्ध करवाइए ।’’ तब वह यंत्र सामान्य व्यक्ति के पास तो नहीं ही था, केवल चिकित्सालयों के ‘आइ.सी.यू.’ में (अतिदक्षता विभाग में) उपयोग किया जाता था । उसके कारण उनके ऐसे बताए जाने पर हमें आश्चर्य हुआ था; परंतु आज घर-घर में इस यंत्र की आवश्यकता पड रही है ।
३. ‘आगे जाकर स्नायु और अस्थियों के संदर्भ में बीमारियों की तीव्रता बढनेवाली है’, ऐसा बताकर परात्पर गुरुदेवजी ने मर्दन के अनेक प्रकार सीख लेने के लिए कहा है । उसके उपरांत अनेक साधकों को उस प्रकार की बीमारियां होने की घटनाएं सामने आईं ।’
– वैद्या कु. अपर्णा महांगडे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
गर्मी होते हुए भी आपातकाल को ध्यान में रखकर स्वयं को पंखे का उपयोग न करनेके लिए अभ्यस्थ बनानेवाले परात्पर गुरु डॉक्टरजी !
‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी के कक्ष में कूडा निकालने से पूर्व मैं सदैव ही पंखे का बटन बंद करती हूं । तब एक बार निम्नांकित संवाद हुआ –
परात्पर गुरु डॉक्टरजी : कूडा निकालकर हुआ, तो तुरंत पंखा चलाएंगे; क्योंकि बहुत गर्मी लग रही है ।
मैं : तो मैं कल से शीघ्र कूडा निकालती हूं ।
परात्पर गुरु डॉक्टरजी : नहीं । उसकी आवश्यकता नहीं ! अब आपातकाल निकट आया है न ! आपातकाल में हमें पंखा नहीं मिलेगा; इसलिए अभी से स्वयं को उसके लिए अभ्यस्थ बनाऊंगा ।’
– श्रीमती रोहिणी भुकन, सनातन आश्रम, गोवा.