‘वर्तमानकाल कितना भयावह है, यह समझने के लिए समाचारपत्रों के कुछ शीर्षक पर्याप्त हैं । ‘दुर्भाग्य का भयावतार’, ‘जिसे नरक कहते हैं, क्या वह यही है ?’, जैसे शीर्षकों द्वारा वर्तमान समाज की स्थिति ‘वर्तमानकाल कितना भयावह है, यह समझने के लिए समाचारपत्रों के कुछ शीर्षक पर्याप्त हैं । ‘दुर्भाग्य का भयावतार’, ‘जिसे नरक कहते हैं, क्या वह यही है ?’, जैसे शीर्षकों द्वारा वर्तमान समाज की स्थिति कितनी भयावह है, यह समझ में आता है । प्रत्येक व्यक्ति अक्षरशः जान हथेली पर लेकर जी रहा है । ‘ऑक्सीजन की कमी’, ‘औषधियों की कमी’, ‘पर्याप्त मात्रा में चिकित्सकीय सुविधाओं का अभाव’, ऐसा हीन-दीन चित्र दिख रहा है । चिकित्सकीय क्षेत्र में प्रचंड अत्याधुनिकीकरण होते हुए, विदेशी कंपनियों की भारत में घुसपैठ होने से लोगों के पास पर्याप्त पैसा होते हुए, प्रत्येक के पास चल-दूरभाष होने से अच्छा संपर्कतंत्र होते हुए, हर-घर आरोग्य वीमा होते हुए, हम आज एक विषाणु के आगे इतने हतबल क्यों हो गए हैं ?
ऐसा लगता है कि ‘आज की हतबलता का यदि मूल ढूंढें तो उसका ‘काल’ ही उत्तर है’ । वर्तमान कलियुगांतर्गत ईश्वरीय राज्य की स्थापना होने का परिवर्तन के काल का आरंभ हो गया है । भगवान ने गीता में बताए अनुसार, यह धर्मग्लानि का काल है । कलियुग में धर्म का लोप होने से वाातावरण की नकारात्मक शक्तियों की प्रबलता बढ गई है । उनके सामने टिक सके, ऐसा सात्त्विक, आत्मबल से युक्त समाज न होने से आज हाहाकार मच गया है । यदि इस समस्या का सामना करना है, तो केवल भौतिक सुविधाएं स्थापित कर नहीं चलेगा, अपितु उनके साथ आध्यात्मिक स्तर पर हल निकालना आवश्यक है और निश्चित रूप से यही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने जाना और उन्होंने तत्काल उस पर हल निकालने के लिए प्रयास किए ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने अनेक वर्ष पूर्व ही आपातकाल आनेवाला है, यह जानकर साधकों को आध्यात्मिक बल वृद्धिंगत करने की प्रेरणा दी । उन्होंने काल की प्रतिकूलता देखकर ‘आध्यात्मिक स्तर पर भिन्न-भिन्न उपचार कैसे करें ?’, यह बात साधकों को विशद की । इस प्रकार साधकों की आध्यात्मिक स्तर पर रक्षा होने के लिए उन्होंने रात-दिन कठोर परिश्रम किए । आपातकाल में कोई भी स्थूल से अथवा प्रत्यक्ष आधार न होते हुए भी, साधक ईश्वर के प्रति श्रद्धा के कारण आध्यात्मिक बल पर सुरक्षित रहें, उनके आसपास ईश्वरीय कृपा का कवच सदैव हो, इसलिए वे गत अनेक वर्ष पूर्व से प्रयास कर रहे हैं । इसलिए वातावरण अथवा सामाजिक नकारात्मकता का प्रभाव सनातन के साधकों पर अत्यल्प होने की अनुभूति सहस्रों साधकों को हो रही है ।
परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा अध्यात्म-क्षेत्र में किया हुआ यह कार्य केवल इतिहास नहीं, अपितु साधकों को कलि के प्रभाव से बचाने के लिए पुकारा हुआ युद्ध है । उनके द्वारा किए प्रयासों में से यहां दिए गए प्रसंग केवल स्थूल स्तर के हैं । साधकों की रक्षा हेतु परात्पर गुरुदेवजी ने सूक्ष्म स्तर पर हमारे लिए क्या नहीं किया, यह समझने की हमारी क्षमता नहीं है । फिर भी जो कुछ ध्यान में आया, उसमें से कुछ प्रमुख सूत्र शब्दों में व्यक्त करने का प्रयास कर रहा हूं ।
संकलनकर्ता : सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.