१. १८.५.२०२२ को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की बांह पर अनेक दैवी कण दिखाई देना
‘ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी (२२ मई २०२२) को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का ८० वां जन्मोत्सव है । श्रीराम नवमी निकट आती है, तब वातावरण में श्रीराम तत्त्व वृद्धिंगत होता है । श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की अवधि में श्रीकृष्ण तत्त्व बढता है । उसी प्रकार महर्षि द्वारा ‘श्रीमन्नारायण के अवतार’ के रूप में गौरवान्वित परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव की अवधि में भी वातावरण में श्रीविष्णु तत्त्व वृद्धिंगत हो रहा है । सनातन के सर्वत्र के साधक इसकी अनुभूति कर रहे हैं । इस श्रीविष्णु तत्त्व का परिणाम परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की देह पर प्रत्यक्ष दिखाई देता है, यह दर्शानेवाली अलौकिक घटना १८.५.२०२२ को हुई । उस दिन सायंकाल परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की बाईं बांह पर अनेक दैवी कण दिखाई दिए । विशेष बात यह कि ये दैवी कण उनकी त्वचा में हैं । इसका अर्थ यह है कि ये दैवी कण परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के शरीर में ही उत्पन्न हुए हैं ।
२. इन दैवीय कणों के माध्यम से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में विद्यमान अवतारी तत्त्व का स्थूल रूप से प्रकटीकरण होने की दिव्य अनुभूति करना सर्वत्र के साधकों के लिए संभव होना
२२.५.२०२२ को परात्पर गुरु डॉक्टरजी का जन्मोत्सव अर्थात उनका अवतार प्रकट होने का समय निकट आया है । उसके कारण उनके बाएं हाथ की बांह पर दैवी कणों का हुआ आगमन उनकी देह में श्रीविष्णु तत्त्व जागृति के आरंभ होने की प्रत्यक्ष प्रतीति है । सामान्यतः सूक्ष्म से उनकी देह से उनके अवतारी तत्त्व का प्रक्षेपण अखंडित जारी रहता है; परंतु इन दैवी कणों के माध्यम से उसका स्थूल प्रकटीकरण होने से उससे अवतारी तत्त्व की दिव्य अनुभूति सर्वत्र के साधक कर सकेंगे ।
३. वर्ष २०१२ में ही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा सुनहरे दैवी कणों के माध्यम से उनमें विद्यमान अवतारी तत्त्व दिखाई देना और वर्ष २०१५ से महर्षिजी द्वारा नाडीपट्टिकाओं के माध्यम से उस पर मुद्रा लगाई जाना
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने वर्ष २०१२ में पहली बार साधकों को स्वयं दैवी कणों का परिचय करवाया । तब उन्होंने उनकी देह पर विद्यमान सुनहरे दैवी कणों के साधकों को दर्शन कराए थे । ये दैवी कण कोई धातु न होने का वैज्ञानिक शोध में प्रमाणित हुआ था, साथ ही आध्यात्मिक शोध से (ज्ञान एवं सूक्ष्म परीक्षण से) वह परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में विद्यमान चैतन्य का घनीकरण होने की बात प्रमाणित हुई थी । इसका अर्थ वर्ष २०१२ मे ही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने उनमें विद्यमान अवतारी विष्णु तत्त्व दर्शाया था । वर्ष २०१५ से महर्षियों ने नाडीपट्टिकाओं द्वारा ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी श्रीविष्णु के जयंतावतार हैं’, ऐसा बताए जाने से उस पर मुद्रा लग गई !
‘हे गुरुदेव, आपके रूप में हमें आपके अवतारी तत्त्वजागृति की यह अलौकिक घयना देखने का सौभाग्य मिल रहा है । आपका यह अवतारी तत्त्व हमें अधिकाधिक ग्रहण करना संभव हो’, यह आपके सुकोमल चरणों में प्रार्थना है !’
– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, पीएच.डी., महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (१९.५.२०२२)
‘हिन्दू राष्ट्र-जागृति’ उपक्रमों को मिल रहा अभूतपूर्व प्रत्युत्तर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के निर्गुण तत्त्व की प्रतीति !‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में पिछले एक मास से संपूर्ण देश के विभिन्न स्थानों पर हिन्दू राष्ट्र-स्थापना हेतु विभिन्न उपक्रमों का आयोजन किया जा रहा है और समाज के द्वारा इन उपक्रमों का भर-भरकर प्रत्युत्तर मिल रहा है । इसके अंतर्गत विभिन्न शहरों में निकाली गई ‘हिन्दू एकता शोभायात्रा’ को प्राप्त अभूतपूर्व प्रत्युत्तर तो श्री गुरुदेवजी के कार्य के व्यापकता की प्रत्यक्ष प्रतीति है । प्रत्येक स्थान पर शोभायात्रा में वातावरण चैतन्यमय और भावमय था । इस वर्ष की विशेष यह बात है कि समाज को भी उसका भान हो रहा था ! समाज के अनेक लोग परात्पर गुरु डॉक्टरजी को न जानते हुए भी उनका छायाचित्र रखी पालकी को भावपूर्ण नमस्कार कर रहे थे । सूर्य उदित होने पर फूलों को ‘अब तुम खिल जाओ’, ऐसा बताना नहीं पडता । सूर्य के अस्तित्व से ही वे अपनेआप खिलते हैं । उसी प्रकार अवतारी तत्त्व का प्रकटीकरण होने लगे, तो सात्त्विक जीवों को उसका भान अपनेआप ही होने लगता हैै और तब वे अवतार की ओर आकर्षित होते हैं, इसकी सनातन के अनेक साधकों ने इन शोभायात्रााओं में अनुभूति की । इस प्रकार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में विद्यमान निर्गुण तत्त्व जिस प्रकार वृद्धिंगत हो रहा है, उसी प्रकार उनकी सगुण देह पर भी दैवी कणों के माध्यम से श्रीविष्णु तत्त्व की जागृति के दिव्य लक्षण दिखाई दे रहे हैं ।’ – श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी |
कठिन शारीरिक स्थिति में भी साधकों के लिए दैवी कणों के छायाचित्र खींचने के लिए बोलनेवाले परात्पर गुरुदेवजी !
‘साधकों ने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को जब उनकी बाईं बांह पर दैवी कण दिखाए, तब परात्पर गुरु डॉक्टरजी बहुत आनंदित हुए । उनकी प्राणशक्ति अत्यल्प थी; ऐसी स्थिति में भी उन्होंने इन दैवी कणों के छायाचित्र खिंचवा लिए, तथा अगली पीढी यह दिव्य घटना देख पाए; इसलिए उन्होंने उन दैवी कणों का चित्रीकरण भी करवा लिया । ‘सर्वत्र के साधकों को दैवी कण देखने का अवसर मिले और उससे उन्हें आनंद मिले’; इसलिए परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने ‘सनातन प्रभात’ में दैवी कणों का छायाचित्र और उनके उत्पन्न होने का शास्त्र प्रकाशित करने के लिए सुझाया । तब ‘इससे साधकों को कैसे आनंद देना है’, इस दृष्टि से उनका विचार चल रहा था ।’ – श्री. अतुल बधाले, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१८.५.२०२२)