आपातकाल में सभी मनुष्य जीवित रहें; इसके लिए और सृष्टि के कल्याण हेतु क्रियाशील एकमेव द्रष्टा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

‘हिरण्याक्ष’ असुर द्वारा पृथ्वी का अपहरण कर उसे महासागर में छिपाने पर श्रीविष्णु ने वराह अवतार लेकर पृथ्वी की रक्षा की । सृष्टि का संतुलन बना रहे; इसके लिए भगवान शिव अखंड ध्यानावस्था में रहते हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी भी अनेक दैवीय गुणों से युक्त हैं तथा उनके देवता समान होने की अनेक अनुभूतियां साधकों को हुई हैं । परात्पर गुरु डॉक्टरजी को भी देवताओं की भांति अखिल मानवजाति की रक्षा, कल्याण और सृष्टि की भी चिंता है ।

आपातकाल की दृष्‍टि से ‘औषधीय वनस्‍पतियों का रोपण’ उपक्रम का आरंभ करते परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी, साथ में साधक श्री. विष्‍णु जाधव

विविध उपचार-पद्धतियों के विषय में स्थित जानकारी का बहुत पहले से संग्रह कर आपातकाल में साधकों के लिए उपयुक्त हो; इसके लिए ग्रंथ तैयार करना भावी आपातकाल में बाढ, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं और विश्वयुद्ध जैसी आपदाएं आएंगी । अखिल मानवजाति को इन आपदाओं का सामना करने के लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने वर्ष २०१३ से ‘आपातकाल की संजीवनी’ नामक ग्रंथमाला की निर्मिति का आरंभ किया । उसमें डॉक्टरों, औषधियों आदि की उपलब्धता के अभाव में स्वयं को ही स्वयं पर उपचार करना संभव हो; इस प्रकार की विभिन्न उपचार-पद्धतियों पर आधारित ग्रंथों का समावेश है । भावी आपातकाल में घरेलु औषधियां सहजता से उपलब्ध हों; इसके लिए देश-विदेश के लोग अपने घर की अटारी में, आंगन में सहजता से रोपण कर सकें; ऐसी औषधीय वनस्पतियों का साधकों से अध्ययन करवा ले रहे हैं और इन वनस्पतियों का सर्वत्र रोपण किया जाए, इसकी ओर भी ध्यान दे रहे हैं । उन्होंने औषधीय वनस्पतियों के रोपण से संबंधित ग्रंथ भी बनवा लिए हैं ।

महाभीषण आपत्तियों में भगवान से सहायता मिलने हेतु साधना का महत्त्व बताना

आपातकाल में रक्षा होने हेतु व्यक्ति स्वयं के बलबूते पर चाहे कितनी भी तैयारी कर ले, तब भी भूकंप, सुनामी जैसी महाभीषण आपदाओं से बचने हेतु संपूर्ण भार भगवान पर ही सौंपना पडता है । व्यक्ति ने साधना कर भगवान की कृपा पाई, तो वे किसी भी संकट में उसकी रक्षा करते ही हैं । भक्त प्रल्हाद, पांडवों जैसे अनेक उदाहरणों से यह प्रमाणित हो चुका है । इसीलिए परात्पर गुरु डॉक्टरजी पिछले कुछ वर्षाें से अखिल मानवजाति को लगन से बता रहे हैं, ‘अब जीवित रहने हेतु तो साधना करो !’

हिन्दू धर्मशास्त्र बताता है, ‘धर्माचरण नष्ट होकर अधर्म प्रबल होने से पृथ्वी पर संकट आते हैं ।’ समाज धर्माचरणी बने व साधना करे, साथ ही सामाजिक व राष्ट्रीय जीवन में धर्म का अधिष्ठान हो, तो पृथ्वी पर संकट नहीं आते और सृष्टि का संतुलन बने रहने में सहायता मिलती है । इसीलिए परात्पर गुरु डॉक्टरजी भारत में ही नहीं; संपूर्ण पृथ्वी पर धर्म के अधिष्ठान से युक्त ‘ईश्वरीय राज्य’ स्थापित करने हेतु आध्यात्मिक स्तर पर मार्गदर्शन कर रहे हैं । उसके लिए वे संतों, संप्रदायों, साधकों, हिन्दुत्वनिष्ठों, धर्मप्रेमियों व राष्ट्रभक्तों को संगठित भी कर रहे हैं ।’

– (पू.) श्री. संदीप आळशी (११.११.२०१९)