आपातकाल में सभी मनुष्य जीवित रहें; इसके लिए और सृष्टि के कल्याण हेतु क्रियाशील एकमेव द्रष्टा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

आपातकाल में रक्षा होने हेतु व्यक्ति स्वयं के बलबूते पर चाहे कितनी भी तैयारी कर ले, तब भी भूकंप, सुनामी जैसी महाभीषण आपदाओं से बचने हेतु संपूर्ण भार भगवान पर ही सौंपना पडता है । व्यक्ति ने साधना कर भगवान की कृपा पाई, तो वे किसी भी संकट में उसकी रक्षा करते ही हैं ।

आपातकाल की भीषणता के विषय में समय-समय पर सूचित कर उसके संदर्भ में उपाय निकालनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

भविष्यवेत्ता केवल भविष्यवाणी करते हैं, तो गुरु कृपावत्सल होते हैं । उसके कारण ही द्रष्टा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने आपातकाल की आहट पहचानकर साधकों को उस विषय में केवल सूचित ही नहीं किया, अपितु आनेवाले समय में साधकों को सुविधाजनक हो; इसके लिए प्रत्यक्ष उपाय भी आरंभ किए ।

साधकों की आपातकाल में रक्षा होने हेतु आध्यात्मिक स्तर पर कार्यरत कृपावत्सल परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

‘दुर्भाग्य का भयावतार’, ‘जिसे नरक कहते हैं, क्या वह यही है ?’, जैसे शीर्षकों द्वारा वर्तमान समाज की स्थिति कितनी भयावह है, यह समझ में आता है ।

आपातकाल की स्थिति के विषय में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा व्यक्त किए गए उद्गार !

एक बार दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में छपा चीन से संबंधित एक समाचार देखकर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी कहने लगे, ‘‘आनेवाले कुछ वर्षाें में आपकी पीढी को तीसरा विश्वयुद्ध देखने के लिए मिलेगा । चीन पहले युद्ध की घोषणा करेगा और उसके उपरांत तीसरा विश्वयुद्ध आरंभ होगा ।’’

रासायनिक अथवा जैविक कृषि नहीं, अपितु प्राकृतिक कृषि अपनाइए ! (भाग २)

रसायनशास्त्र के शास्त्रज्ञ यह सत्य मान्य ही नहीं करेंगे । जैविक कर्ब बढाने का काम खेत के जीवाणु, केंचुए एवं मित्र कीटक करते हैं । रासायनिक खेती के कारण ये जीवाणु मारे जाते हैं । फिर जैविक कर्ब कैसे बढेगा ?

विश्वयुद्ध के भयावह दुष्परिणाम !

शहर के शहर भस्म हो जाते हैं । उसके कारण उद्ध्वस्त शहर, मार्ग, पुल आदि तथा नष्ट हुई संस्थाओं को खडा करने में बहुत समय लग जाता है । जिससे वहां के विकास की बहुत हानि होती है ।

‘युद्ध के कारण आपातकाल में परिस्थिति कितनी भीषण हो सकती है’, इसके कुछ उदाहरण !

हवाईमार्ग, रेल्वेमार्ग, महामार्ग आदि वाहन-व्यवस्था चरमरा जाने के कारण शासन द्वारा भी सहायता करने में अडचनें आना और जीवनावश्यक वस्तुओं के लिए जानलेवा संघर्ष करना पडना

साधना और भक्ति द्वारा ही आनेवाले भीषण तीसरे विश्वयुद्ध में भक्तों की रक्षा होगी ।

धर्म अधर्म युद्ध में जो ईश्वर की भक्ति करता है, धर्म के पक्ष में खडा रहता है, ईश्वर उसकी रक्षा करते हैं; परंतु उसके लिए हमें भक्त बनना आवश्यक है ।

युद्धकाल में उपयोगी और आपातकाल से बचानेवाली ये कृतियां अभी से करें !

संकट का सामना करने के लिए हमारा शरीर सक्षम होना चाहिए । वैसा होने के लिए प्रतिदिन नियमित कम से कम ३० मिनट व्यायाम करें । सूर्यनमस्कार करें, यह संपूर्ण शरीर को सक्षम बनाने के लिए सुंदर व्यायाम है । नियमित कम से कम १२ सूर्यनमस्कार करें ।

रासायनिक अथवा जैविक कृषि नहीं, अपितु प्राकृतिक कृषि अपनाइए !

मंडी में बिकनेवाली सब्जियों पर विषैले रसायनों की फुहार किए जाने से अब प्रत्येक व्यक्ति को अपने लिए आवश्यक सब्जियों की स्वयं ही उपज करना आवश्यक बन गया है । नित्य भोजन में लगनेवाली सब्जियां घर पर ही उगाई जा सकती हैं ।