युद्धकाल में उपयोगी और आपातकाल से बचानेवाली ये कृतियां अभी से करें !

संकट का सामना करने के लिए हमारा शरीर सक्षम होना चाहिए । वैसा होने के लिए प्रतिदिन नियमित कम से कम ३० मिनट व्यायाम करें । सूर्यनमस्कार करें, यह संपूर्ण शरीर को सक्षम बनाने के लिए सुंदर व्यायाम है । नियमित कम से कम १२ सूर्यनमस्कार करें ।

रासायनिक अथवा जैविक कृषि नहीं, अपितु प्राकृतिक कृषि अपनाइए !

मंडी में बिकनेवाली सब्जियों पर विषैले रसायनों की फुहार किए जाने से अब प्रत्येक व्यक्ति को अपने लिए आवश्यक सब्जियों की स्वयं ही उपज करना आवश्यक बन गया है । नित्य भोजन में लगनेवाली सब्जियां घर पर ही उगाई जा सकती हैं ।

तृतीय विश्वयुद्ध के विषय में भविष्यवाणी, विश्वयुद्ध के दुष्परिणाम और उनसे बचने हेतु आवश्यक उपाय

तृतीय विश्वयुद्ध की अवधि साधकों की ईश्वरभक्ति पर निर्भर होगी । यह युद्ध भक्तों (धर्माचरण करनेवाले जीवों) और अनिष्ट शक्तियों (अधर्माचरण करनेवाली जीवों) के मध्य होनेवाला है; इसलिए इस युद्ध की अवधि बदल सकती है ।

परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के अव्यक्त संकल्प के कारण गत एक वर्ष में विविध भाषाओं में सनातन के ३० नए ग्रंथ-लघुग्रंथ प्रकाशित और ३५७ ग्रंथ-लघुग्रंथों का पुनर्मुद्रण !

‘हिन्दू राष्ट्र’ धर्म के आधार पर ही स्थापित होगा । धर्मप्रसार के कार्य में ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति और क्रियाशक्ति में से ज्ञानशक्ति का योगदान सर्वाधिक है । ज्ञानशक्ति के माध्यम से कार्य होने का सर्वाधिक प्रभावी माध्यम हैं ‘ग्रंथ’ ।

कृषि उत्पादों में स्थित रासायनिक अंश : नित्य आहार में समावेशित विष !

खेतों में, अनाज संग्रहण के गोदाम में, साथ ही प्रसंस्करण उद्योगों में अन्नपदार्थाें में विविध कारणों से मिलाए जानेवाले रासायनिक घटक निश्चितरूप से अनदेखी करने योग्य नहीं हैं ।

तृतीय विश्वयुद्ध के विषय में भविष्यकथन, विश्वयुद्ध का दुष्परिणाम और उसमें से बचने हेतु उपाय

१. प्रस्तावना      पिछले कुछ दशकों में समस्त विश्व ‘प्राकृतिक आपदाओं, आतंकी गतिविधियों, युद्ध और राजनीतिक उथलपुथल’ जैसे दुष्टचक्रों से गुजर रहा है । ये सब रुकने के चिन्ह दिखाई नहीं दे रहे हैं । केवल इतना ही नहीं, यह सब घटता हुआ भी दिखाई नहीं दे रहा है । संपूर्ण विश्व एक अनिश्चित … Read more

आपातकाल और सनातन धर्म की पुनर्स्थापना के विषय में विविध संतों और भविष्यवक्ताओं द्वारा की गई भविष्यवाणी

     अब कलियुगांतर्गत कलियुग समाप्त होने जा रहा है और सत्ययुग आनेवाला है । अधर्म की परिसीमा लांघनेवाले मनुष्य ने स्वयं ही स्वयं के विनाश का मार्ग रेखांकित कर रखा है । अधर्म का नाश होने हेतु कोई न कोई महाभारत घटित होता ही है । परिवर्तन होने से पूर्व संधिकाल आता है और … Read more

आच्छादन : ‘सुभाष पाळेकर प्राकृतिक कृषि तंत्र’ का एक प्रमुख स्तंभ !

भूमि के पृष्ठभाग को ढकना’ अर्थात ‘आच्छादन’ ! भूमि की सजीवता एवं उर्वरता बनाए रखने का कार्य आच्छादन करता है । आच्छादन के कारण ‘सूक्ष्म पर्यावरण की’ निर्मिति सहज होती है । ‘सूक्ष्म पर्यावरण’ अर्थात ‘भूमि के सूक्ष्म जीवाणु एवं केंचुए के कार्य के लिए आवश्यक वातावरण ।

जीवामृत : सुभाष पाळेकर प्राकृतिक कृषि तंत्र का ‘अमृत’ !

‘पद्मश्री’ पुरस्कार प्राप्त सुभाष पाळेकर ने ‘सुभाष पाळेकर प्राकृतिक कृषि तंत्र’ की खोज की । आज भारत सरकार ने इसका अनुमोदन कर इस तंत्र का प्रसार करने का निश्चय किया है । इस कृषि तंत्र में ‘जीवामृत’ नामक पदार्थ का उपयोग किया जाता है ।

कोरोना के लिए उपयुक्त औषधियां

यदि ऑक्सीजन की मात्रा कम हो तो, आरंभ में कार्बोवेज २०० की २ बूंदें हर २ घंटे में और बाद में २ बूंदें दिन में ३ बार लें । आरंभ में ऐस्पिडोस्पर्मा Q की १० बूंदें पाव कप पानी में हर २ घंटे में और बाद में दिन में १० बूंदें ३ बार लें । ये दोनों औषधियां लें ।