‘लाल सिंह चढ्ढा’ चलचित्र का विरोध होने के कारण चलचित्रगृहों में अत्यंत ठंडा प्रतिसाद
यदि हिन्दू संगठित हुए, तो क्या हो सकता है, यह इसका एक छोटा सा उदाहरण है !
यदि हिन्दू संगठित हुए, तो क्या हो सकता है, यह इसका एक छोटा सा उदाहरण है !
जो इग्लैंड के सिक्ख खिलाडी को लगता है वह भारत के कितने सिक्खों और भारतीयों को लगता है ?
भारत की जनसंख्यावृद्धि में मुसलमानों की गति अधिक होने की बात इससे पूर्व के सर्वेक्षण से उजागर हो चुकी है । इसलिए यदि किसी ने ‘उनकी जनसंख्या में वृद्धि हो रही है’, ऐसा कहा, तो वह चूक कैसे है ?
अभिनेता आमिर खान और करीना कपूर की ‘लाल सिंह चढ्ढा’ चलचित्र ११ अगस्त को प्रदर्शित हो रही है, इसके पूर्व ही उस पर बंदी लाने अथवा बहिष्कार करने की मांग जोर पकड रही है ।
हिन्दुओं के संगठन की विजय ! यह प्रशंसनीय है कि हिन्दू अब जागृत होकर देवी-देवताओं के अपमान के विरुद्ध आवाज उठा रहे हैं । इस प्रकार यदि सर्वत्र के हिन्दू जाग गए तो हिन्दू धर्म, देवी-देवताओं, धर्मग्रंथ, संत, राष्ट्रपुरुष आदि का अपमान करने का दुस्साहस कोई नहीं करेगा !
एक प्रसिद्ध हिन्दू शास्त्रज्ञ को ऐसा प्रश्न करना पड रहा है, इससे धर्मनिरपेक्ष भारत में हिन्दुओं की भयावह स्थिति ध्यान में आती है !
मुस्लिम जब विरोध करते हैं तो चलचित्रनिर्माता तुरंत क्षमा याचना करते हैं और चलचित्र से आपत्तिजनक अंश को निकाल देते हैं । इसके विपरीत हिंदू चाहे कितना भी विरोध करें तब भी उनके देवताओं का अपमान बंद नहीं होता, यह ‘पीके’ जैसे चलचित्र से अनेक बार देखने में आया है ।
चूंकि केरल की कम्युनिस्ट फ्रंट सरकार कट्टरपंथी मुसलमानों की संरक्षक है, ऐसे मुसलमानों के वास्तविक स्वरूप को उजागर करने वाली फिल्म को कैसे प्रमाण पत्र दे सकती है ?
बॉलीवुड में प्रतिवर्ष गुंडे, माफिया, ‘ड्रग्स पेडलर’, गंगूबाई जैसे वेश्यागृहों की मालकिन का उदात्तीकरण करनेवाले अनेक ‘ड्र्रामा फिल्म्स’ प्रदर्शित होती हैं । ऐसे चलचित्र देखने की अपेक्षा भारतीय ‘द कश्मीर फाइल्स’ देखना देशहितकारी सिद्ध होगा ।
भारत का कांग्रेस दल कश्मीरी हिन्दुओंके वंशविच्छेद का सत्य छुपाती है, तो अमेरिका के एक राज्य की संसद कश्मीरी हिन्दुओं के पक्ष में दृढता से खडी रहती है । यह बात कांग्रेस के लिए लज्जाजनक !