भारत ने अफगानिस्तान में भेजा ५० सहस्र मेट्रिक टन अनाज एवं २०० टन औषधियां !
भारत एक हिन्दू बहुसंख्यक देश है एवं वह मुसलमान बहुसंख्यक देश अफगानिस्तान की सहायता कर रहा है; परंतु इस देश में कितने हिन्दू शेष हैं ?
भारत एक हिन्दू बहुसंख्यक देश है एवं वह मुसलमान बहुसंख्यक देश अफगानिस्तान की सहायता कर रहा है; परंतु इस देश में कितने हिन्दू शेष हैं ?
यहां सबसे महत्त्वपूर्ण सूत्र है, रुग्ण अपने आहार-विहार में कोई परिवर्तन नहीं करता । इस कारण अम्ल पित्त का कष्ट बार-बार होता रहता है । आरंभ में पित्त बढानेवाला आहार लेने से ही अम्ल पित्त का कष्ट होता है । कुछ समय पश्चात कुछ भी खाने से अम्ल पित्त निर्मित होने लगता |
नाभि शरीर का केंद्र बिंदु होने से वहां अन्य अवयवों को जोडकर रखनेवाले बिंदुदाब के अनेक बिंदु (एक्यूप्रेशर पॉईंट्स) होते हैं । इसलिए नाभि में कुछ बूंद घी डालकर मसाज (मालिश) करने से जोडों का दर्द भी दूर हो सकता है ।
प्रदूषण के कारण देहली के नागरिकों की जीवन प्रत्याशा ११ वर्ष ९ माह घट रही है !
भाग्यनगर में (हैद्राबाद) एक शास्त्रज्ञ ने खोज की, केले के पेड के तने अथवा केले के पेड मे लगे केलोंके गुच्छे के सिरे पर कमल के आकार का सिरा, पत्तों में जो चिपचिपा द्रव्य पदार्थ होता है, उसे खाने के उपरांत कर्करोग (कैंसर) बढानेवाली ग्रंथी धीरे-धीरे निष्क्रीय होती जाती है । इसलिए पुराने काल के … Read more
एकाएक रोगग्रस्त (बीमार) हुए अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति पर डॉक्टर, वैद्य अथवा रुग्णयान (एंबुलेंस) उपलब्ध होने तक किए जानेवाले तात्कालिक अथवा प्राथमिक स्वरूप के उपचारों को ‘प्राथमिक उपचार’ कहते हैं । प्राथमिक उपचार में चिकित्सकीय उपचार (‘मेडिकल ट्रीटमेन्ट’) सम्मिलित नहीं है ।
विज्ञान ने की प्रगति का लाभ लेते हुए उसकी अति करने का क्या परिणाम होता है, यह भी इस घटना से ध्यान में आता है ! इसलिए इस प्रकार की बातों का उपयोग कौन करे कौन नहीं, ऐसा नियम होना भी आवश्यक है !
‘ठंडा अथवा मीठा खाने पर दांत झुणझुणाने की पीडा यदि बारंबार होती है, तो प्रतिदिन सवेरे चाय का एक चम्मच तिल का तेल मुंह में रखें एवं सामान्यतः ५ से १० मिनट के उपरांत थूंक दें । इससे दांत झुणझुणाना अल्प होने में सहायता होती है ।’
जॉनसन एंड जॉनसन पावडर के कारण कर्करोग होने का पता चला !
इन रसायनिक औषधियों के कारण न जाने कितने लोग अनेक रोगों से ग्रस्त होते हैं, स्थितियां बिगड़ती रहती हैं, नई नई औषधियां बढ़ती जाती हैं; पर किसी का ध्यान इस ओर नहीं जाता कि कहीं यह समस्या किसी औषधि के कारण तो नहीं है ।