देहली विश्व का सबसे प्रदूषित नगर है ! – शिकागो विश्वविद्यालय का प्रतिवेदन 

प्रदूषण के कारण देहली के नागरिकों की जीवन प्रत्याशा ११ वर्ष ९ माह घट रही है !

नई देहली – शिकागो विश्वविद्यालय के ‘एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट’ द्वारा प्रकाशित प्रतिवेदन के अनुसार, देहली ने विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित प्रदूषण सीमाओं का उल्लंघन किया है । यदि वहां प्रदूषण का वर्तमान स्तर चलता रहा, तो देहली के १८ लाख नागरिकों की औसत जीवन प्रत्याशा राष्ट्रीय दिशानिर्देशों के अनुसार ११ वर्ष ९ माह से घटकर ८ वर्ष ५ माह होने का भय है ।

दावा है कि २०१३ से २०२१ की अवधि के काल में प्रदूषण में ५९.१ प्रतिशत वृद्धि के लिए भारत उत्तरदायी है !

प्रतिवेदन में इस बात का भी उल्लेख है कि २०१३ तथा २०२१ के मध्य वैश्विक प्रदूषण में ५९.१ प्रतिशत वृद्धि के लिए भारत उत्तरदायी था । यदि उत्तर भारत में प्रदूषण का वर्तमान स्तर जारी रहा, तो ५२ करोड १.२ लाख नागरिकों अथवा देश की ३८.९ प्रतिशत जनसंख्या की जीवन प्रत्याशा विश्व स्वास्थ्य संगठन की सीमा से ८ वर्ष अल्प तथा राष्ट्रीय दिशानिर्देशों से ४.५ वर्ष अल्प होने की संभावना है ।

देश की ६७.४ प्रतिशत जनता प्रदूषित क्षेत्रों में रहती है !

भारत की ६७.४ प्रतिशत जनता उन क्षेत्रों में रहती है जहां वायु गुणवत्ता देश द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक – ४० माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर – से अधिक है । भारत में सूक्ष्म कण पदार्थ (पीएम – पार्टिकुलेट मैटर २.५ ) वायु प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित ५ माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की जीवन प्रत्याशा सीमा की तुलना में भारतीयों की औसत जीवन प्रत्याशा को ५ वर्ष ३ माह अल्प कर देता है ।

भारत में औसत वार्षिक सूक्ष्म कण प्रदूषण १९९८ से २०२१ तक ६७.७ प्रतिशत बढ गया है । परिणामस्वरूप, औसत जीवन प्रत्याशा घटकर २ वर्ष ३ माह रह गई है ।

सबसे अल्प प्रदूषण वाले पठानकोट में भी अब प्रदूषण बढ रहा है !

यहां तक कि पंजाब के सबसे अल्प प्रदूषित जिले पठानकोट में भी सूक्ष्म कण प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्दिष्ट सीमा से ७ गुणा अधिक है । प्रतिवेदन में कहा गया है कि यदि वहां वर्तमान स्तर ऐसा ही रहा, तो नागरिकों की जीवन प्रत्याशा ३ वर्ष १ माह तक घट सकती है ।

संपादकीय भूमिका 

प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है । यद्यपि विकसित देशों में भी प्रदूषण है तथा वे इसके नियंत्रण हेतु कठिन उपाय अपना रहे हैं । भारत को भी इस समस्या से उबरने के लिए कठिन नियम अपना कर उन्हें क्रियान्वित करने की आवश्यकता है !