एकाएक रोगग्रस्त (बीमार) हुए अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति पर डॉक्टर, वैद्य अथवा रुग्णयान (एंबुलेंस) उपलब्ध होने तक किए जानेवाले तात्कालिक अथवा प्राथमिक स्वरूप के उपचारों को ‘प्राथमिक उपचार’ कहते हैं । प्राथमिक उपचार में चिकित्सकीय उपचार (‘मेडिकल ट्रीटमेन्ट’) सम्मिलित नहीं है ।
दुर्घटनाग्रस्तों की अनदेखी करने की अपेक्षा त्वरित उनकी सहायता करें !‘दुर्घटना के उपरांत दुर्घटनाग्रस्तों की सहायता करने के लिए आम तौर पर कोई नहीं आता । यदि दुर्घटनाग्रस्तों की सहायता करते हैं, तो आगे जाकर साक्ष्य, प्रमाण आदि के लिए पुलिस थाने के चक्कर काटने पडते हैं । यह कष्ट टालने के लिए इच्छा होते हुए भी कुछ लोग दुर्घटनाग्रस्तों की सहायता नहीं करते हैं; परंतु ‘दुर्घटनाग्रस्तों की सहायता न करना’ उचित नहीं है । दुर्घटना को देखकर नागरिकों को तुरंत पुलिस को ‘१००’ क्रमांक पर दूरभाष / चल-दूरभाष कर दुर्घटना स्थल एवं दुर्घटना की गंभीरता की जानकारी देनी चाहिए । यदि स्वयं का चारपहिया वाहन हो, तो दुर्घटनाग्रस्तों को चिकित्सालय में भर्ती करें । यदि ऐसा संभव न हो, तो सडक से आते-जाते वाहन धारकों से सहायता ले सकते हैं अथवा पुलिस को रुग्णवाहिका (एंबुलेंस) भेजने के लिए कहें । ‘यदि हमारी दुर्घटना हुई होती, तो हमने सहायता की अपेक्षा की होती’, यह ध्यान में रखते हुए, साथ ही मानवता की दृष्टि से दुर्घटनाग्रस्तों की सहायता करें । दुर्घटनाग्रस्तों को तुरंत सहायता मिलना सुलभ हो, इसलिए पुलिस, रुग्णवाहिका (एंबुलेंस) एवं अग्निशमन दल के दूरभाष क्रमांक स्वयं के चल-दूरभाष (मोबाइल) में प्रविष्ट (सेव) करें ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
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नाडी परीक्षण कैसे करें ?
‘नाडी परीक्षण’ का अर्थ
हृदय के निचले प्रकोष्ठों के प्रत्येक आकुुंचन के समय रक्त महाधमनियों में ढकेला जाता है । यह रक्त अपने भीतर समाने के लिए धमनियां फैलती हैं । यह फैलाव धमनियों के साथ दूर तक जाता है । जहां धमनियां त्वचा के निकट होती हैं, वहां यह फैलाव स्पर्श के माध्यम से अनुभव किया जा सकता है । यह फैलाव (नाडी के स्पन्दन) अनुभव करने को ही नाडी परीक्षण कहते हैं । नाडी के स्पन्दन उंगलियों को अनुभव हो रहा हो अर्थात नाडी चल रही हो, तो यह समझना चाहिए कि रोगी की रक्तसंचार क्रिया अर्थात हृदयक्रिया चल रही है ।
कुछ प्रमुख नाडियां
कान के निकट स्थित उपरिस्थ शंख (‘सुपरफीशियल टेम्पोरल’) धमनी, गले की ‘कैरोटिड’ धमनी, कलाई की बहिःप्रकोष्ठिका (‘रेडियल’) धमनी, जांघ की उरू (‘फेमोरल) धमनी और टखने के निकट स्थित पश्चरंजित (‘पोस्टेरियर टिबियल’) धमनी आदि कुछ प्रमुख नाडियां हैं । प्राथमिक उपचार करनेवाले को उनमें से न्यूनतम ‘रेडियल’ नाडी और ‘कैरोटिड’ नाडी जांच पाना आवश्यक है ।
१. कलाई की नाडी (रेडियल पल्स) कैसे जांचें ?
अ. व्यक्ति की दोनों हथेलियां जिस स्थान पर समाप्त होती हैं, वहां कलाई पर अंगूठे की रेखा में यह नाडी स्थित होती है ।
आ. स्वयं के (प्राथमिक उपचार करनेवाले के) हाथ की तर्जनी (अंगूठे के निकट की उंगली), मध्यमा (बीच की उंगली) व अनामिका (कनिष्ठा के निकट की उंगली) परस्पर चिपकाकर उनके सिरे रोगी की किसी भी एक कलाई पर ऊपर बताए स्थान पर रखें और धीमे से उंगलियां दबाकर नाडी परीक्षण करें ।
२. गलेकी नाडी (कैरोटिड पल्स) कैसे जांचें ?
अ. व्यक्ति के गले में स्थित स्वरयन्त्र के दोनों ओर यह नाडी होती है ।
आ. रोगी की कलाई की नाडी हाथ को अनुभव न हो रही हो, तो गले की नाडी का परीक्षण करें; परंतु यदि रोगी अत्यधिक अस्वस्थ अथवा अचेत है, तो सीधे इस नाडी का परीक्षण करना उचित है ।
इ. सम्भव हो, तो रोगी का सिर पीछे झुकाएं । इससे नाडी जांचना अधिक सुविधाजनक होता है ।
ई. अपनी तर्जनी और मध्यमा परस्पर चिपकाकर उनके सिरे रोगी के स्वरयन्त्र की अस्थि पर (गले में आगे की ओर दिखनेवाली नुकीली अस्थि पर) रखें । वहां से वे उंगलियां किसी भी दिशा में एक ओर सरकाते हुए रोगी के गले के स्नायु और श्वासनलिका के मध्य स्थित गर्त में लाएं । यहां नाडी परीक्षण करें । गले के दोनों ओर स्थित नाडियों का परीक्षण एक ही समय पर न करें ।
नाडी परीक्षण करते समय निम्न बातों की ओर ध्यान दे !
१. नाडी के स्पन्दन (गति): प्रति मिनट नाडी स्पन्दनों की संख्या देखें । सामान्यतः प्रौढ व्यक्ति की नाडी के स्पन्दनों की संख्या प्रति मिनट ६० से १००, बालक की नाडी के स्पन्दनों की संख्या प्रति मिनट ८० से १००, एक वर्ष तक के शिशु की नाडी के स्पन्दनों की संख्या प्रति मिनट ८० से १२० तथा नवजात शिशु की नाडी के स्पन्दन प्रति मिनट १०० से १५० होते हैं । (शेष पृष्ठ १५ पर)
२. नाडी की लय : नाडी के स्पन्दन नियमित हैं कि नियमित हैं, वह देखें । उनका अनियमित होना हृदय विकार का लक्षण है ।
३. नाडी का बल : नाडी के स्पन्दनों का बल देखें । यह बल सामान्य (नॉर्मल), अधिक (फोर्सफुल) या अल्प (वीक) हो सकता है । अपनी नाडी का परीक्षण तथा अन्य रोगियों की नाडी का परीक्षण करने का अभ्यास करने पर नाडी का बल पहचान सकते हैं । रोगी को उच्च रक्तचाप हो, तो नाडी का बल ‘अधिक’ तथा रोगी को मर्माघात हुआ हो, तो नाडी का बल ‘अल्प’ हो सकता है ।
४. नाडी परीक्षण की अवधि : अत्यधिक अस्वस्थ अर्थात ‘मूलभूत जीवनरक्षक’ की आवश्यकता हो, ऐसे रोगी की नाडी के स्पन्दन १० सेकण्ड देखें और अन्य रोगियों की नाडी के स्पन्दन न्यूनतम ३० सेकण्ड देखें ।
(संदर्भ : हिन्दू जनजागृति समिति समर्थित ग्रंथ ‘प्राथमिक उपचार प्रशिक्षण (भाग १)’)