निर्माण कार्य करते समय उसे ‘साधना’ के रूप में करने से उस निर्माण कार्य से बडे स्तर पर सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं !

‘प्राचीन काल से मनुष्य भूमि पर विभिन्न प्रकार के वास्तुओं का निर्माण करता आया है । पहले निर्माण कार्य में मिट्टी, लकडी, चूना इत्यादि पारंपरिक एवं प्राकृतिक घटकों का उपयोग किया जाता था; परंतु कालांतर में उनका स्थान अब सिमेंट, लोहा, कृत्रिम रंग इत्यादि घटकों ने लिया है । प्रत्येक घटक में उसके मूलभूत स्पंदन विद्यमान होते हैं, साथ ही निर्माण कार्य की सामाग्री में भी उनके मूलभूत स्पंदन विद्यमान होते हैं । किसी निर्माण कार्य से प्रक्षेपित होनेवाले स्पंदन विभिन्न घटकों पर निर्भर होते हैं, उदा. निर्माण कार्य का उद्देश्य, निर्माण कार्य का प्रकार, निर्माण कार्य में उपयोग की गई सामग्री, निर्माण कार्य करनेवाले कारीगर तथा उनका कौशल इत्यादि । इस लेख से हम रामनाथी (गोवा) के सनातन के आश्रम परिसर में निर्माण कार्य से संबंधित साधकों द्वारा निर्मित ‘आर.सी.सी. रिटेनिंग वॉल’ के (टिप्पणी) के संदर्भ में शोधकार्य देखेंगे ।

टिप्पणी : ‘आर.सी.सी. रिटेनिंग वॉल’ (Reinforced Cement Concrete Retaining Wall) (आधार दीवार) : यह एक प्रकार की दीवार होती है, जो मिट्टी, रेत, पत्थर अथवा अन्य सामग्री को एक स्थान पर पकडकर रखने के लिए बनाई जाती है । विशेषतः ढलानों पर अथवा भूस्खलन रोकने के लिए उसका उपयोग होता है । सडकें, पूल, इमारत की नींव इत्यादि संरचना में बडे स्तर पर उसका उपयोग किया जाता है ।

रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम के परिसर में निर्मित ‘आर.सी.सी. रिटेनिंग वॉल’

१. निर्माण कार्य के विभिन्न चरणों पर लिए गए छायाचित्रों की प्रविष्टियां तथा उनका विवेचन

‘आर.सी.सी. रिटेनिंग वॉल’ का निर्माण कार्य आरंभ होने पर विभिन्न चरणों पर इस निर्माण कार्य के छायाचित्र खींचे गए । लोलक की सहायता से इन छायाचित्रों के परीक्षण किए गए । लोलक की सहायता से वस्तु, वास्तु तथा व्यक्तियों में विद्यमान सकारात्मक एवं नकारात्मक ऊर्जा की गणना की जाती है ।

१ अ. निर्माण कार्य के विभिन्न चरणों में लिए गए छायाचित्रों में उत्तरोत्तर अधिक मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा होना : निर्माण कार्य के किसी भी छायाचित्र में नकारात्मक ऊर्जा दिखाई नहीं दी । निर्माण कार्य का आरंभ करने से लेकर निर्माण कार्य पूरा होने तक के छायाचित्रों में उत्तरोत्तर सकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी, यह आगे दी गई प्रविष्टियों से ध्यान में आता है ।

२. निर्माण कार्य से संबंधित सेवा करनेवाले साधकों द्वारा निर्मित ‘आर.सी.सी. रिटेनिंग वॉल’ से सात्त्विक स्पंदन प्रक्षेपित होने के कारण

२ अ. निर्माण कार्य से संबंधित सेवा करनेवाले साधकों का भाव : सनातन के आश्रम में निर्माण कार्य की सेवा करनेवाले साधकों ने सेवाभाव से यह निर्माण कार्य किया है । इन साधकों में श्री गुरुदेवजी के प्रति (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के प्रति) तथा उनके द्वारा निर्मित आश्रम के प्रति भाव है ।

श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे

२ आ. साधना के रूप में निर्माण कार्य की सेवा करना : निर्माण कार्य की सेवा करनेवाले साधक ‘निर्माण कार्य करते समय स्वयं की प्रत्येक कृति से साधना हो रही है न ?’ इसकी ओर ध्यान देते हैं । निर्माण कार्य की सेवा आरंभ करने से पूर्व प्रार्थना करना, सेवा के साथ एकरूप होकर नामजप करते हुए सेवा करना, सेवा पूरी होने पर कृतज्ञता व्यक्त करना इत्यादि कृतियां वे नित्य करते हैं । यह निर्माण कार्य अच्छी गुणवत्ता के साथ सात्त्विक भी हो; इसके लिए भी वे प्रयत्नशील रहते हैं । निर्माण कार्य में स्वयं से होनेवाली चूकों का अध्ययन कर वे प्रतिदिन उसमें सुधार लाने में प्रयत्नशील रहते हैं ।

२ इ. निर्माण कार्य की सेवा परिपूर्ण करने का प्रयास करना : निर्माण कार्य से संबंधित सेवा करनेवाले साधक प्रतिदिन बाहर से श्रमिकों को काम के स्थान पर लेकर आना-छोडना, उन्हें काम निर्धारित कर देना, उनसे अच्छे ढंग से काम करवा लेना, काम पर ध्यान रखकर काम में चूकें न हों; इसके लिए सतर्क रहकर प्रयास करना, काम के स्थान का परिसर स्वच्छ रखना इत्यादि कृतियां परिपूर्ण करने का प्रयास करते हैं । इसके कारण आश्रम में बडे स्तर पर निर्माण कार्य प्रगति पर होते हुए भी उस स्थान पर शोर अथवा अस्वच्छता नहीं होती । वहां का परिसर सदैव ही स्वच्छ एवं ठीकठाक रहता है ।

संक्षेप में बताना हो, तो निर्माण कार्य की सेवा करनेवाले साधकों द्वारा की गई भावपूर्ण एवं परिपूर्ण सेवा के कारण ‘रिटेनिंग वॉल’ में सात्त्विक स्पंदन उत्पन्न होकर उसमें उत्तरोत्तर वृद्धि होती रही । समाज के लोग बहुत पैसा खर्च कर बडी-बडी ऊंची तथा आकर्षक इमारतें बनाते हैं; परंतु वे सात्त्विक होंगी ही, ऐसा नहीं है । इसके विपरीत आश्रम में स्थित चैतन्य तथा निर्माण कार्य से संबंधित सेवा करनेवाले साधकों के प्रेमभाव के कारण ‘रिटेनिंग वॉल’ के निर्माण कार्य से बडे स्तर पर सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हुए । इससे ‘निर्माण कार्य जैसी कृति (वास्तु का निर्माण) सेवाभाव से की गई, तो उससे उस निर्माण कार्य में (वास्तु में) बहुत सात्त्विकता उत्पन्न होती है’, यह इस उदाहरण से ध्यान में आता है ।’

– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा (८.२.२०२५)

ई-मेल : mav.research2014@gmail.com

निर्माण कार्य जैसी कृति (वास्तु का निर्माण) सेवाभाव से की, तो उस निर्माण कार्य में बहुत सात्त्विकता उत्पन्न होती है !