‘३०.३.२०२५ से हिन्दू कालगणना के अनुसार कलियुग वर्ष ५१२७ का आरंभ हो गया है । इस वर्ष का आध्यात्मिक महत्त्व क्या है ? इस काल में संधिकाल का क्या महत्त्व है ?, यह वर्ष हिन्दुत्व की दृष्टि से कैसे रहेगा ? तथा समाज के संदर्भ में क्या प्रक्रिया होगी ?, इस संदर्भ में मुझे प्राप्त सूक्ष्म ज्ञान यहां दे रहे हैं ।
१. कलियुग वर्ष ५१२७ की आध्यात्मिक विशेषता !
१ अ. लय से उत्पत्ति की ओर ले जानेवाला कालचक्र : कलियुग वर्ष ५१२७ का कालचक्र सूक्ष्म स्तर पर ‘लय से (विनाश से) उत्पत्ति’ की दिशा में अग्रसर होता दिखाई देता है । इसके कारण इस पूरे वर्ष में बडे स्तर पर ‘लय एवं उत्पत्ति’, इन दोनों से संबंधित विभिन्न घटनाएं होंगी ।
१ आ. वायुतत्त्वप्रधान वर्ष : कलियुग वर्ष ५१२७ में पंचतत्त्व में से वायुतत्त्व का स्तर सबसे अधिक है । ‘निरंतर परिवर्तनशीलता (गतिविधि)’ वायुतत्त्व का मूल गुणधर्म है । इसके कारण इस पूरे वर्ष व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं विश्व, इन सभी क्षेत्रों में नकारात्मक एवं सकारात्मक ऐसी बहुतसी घटनाएं होंगी ।
१ इ. संधिकाल : समष्टि कालचक्र ‘सनातन राष्ट्र’ की (रामराज्य की)’ दिशा में अर्थात कलियुग सत्ययुग की दिशा में अग्रसर हो रहा है तथा उससे तीव्र पापयुक्त एवं पीडा देनेवाला कलियुगांतर्गत कलियुग समाप्ति की ओर बढ रहा है । वर्ष ५१२७ का समावेश कलियुगांतर्गत कलियुग के अंतर्गत अंतिम कालचक्रों में होता है, अतः साधना करनेवालों के लिए यह वर्ष संधिकाल सिद्ध होनेवाला है ।
१ ई. दैवी ऊर्जायुक्त काल : जिस समय समष्टि कालचक्र कलियुग के सत्यगुग की दिशा में अग्रसर होता है, उस समय भूलोक में आध्यात्मिक राज्य की स्थापना हेतु दैवी ऊर्जा कार्यरत होती है । पिछले ५ वर्षाें की तुलना में इस वर्ष यह दैवी ऊर्जा अधिक मात्रा में कार्यरत रहेगी; उस कारण यह वर्ष शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति हेतु भी पूरक है ।
२. हिन्दुत्व की दृष्टि से कलियुग वर्ष ५१२७
२ अ. हिन्दुत्व हेतु पूरक घटनाओं का तीव्र विरोध होना; परंतु अंततः हिन्दुत्व की ही विजय होना : इस वर्ष में हिन्दुत्व के लिए पूरक विभिन्न महत्त्वपूर्ण घटनाएं होंगी । आरंभ में हिन्दुत्वनिष्ठों को विभिन्न प्रकार के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं कानूनी विरोधों का सामना करना पडेगा । इसमें कुछ प्रसंगों में मात्र पुण्यबल प्राप्त; परंतु साधना के अधिष्ठान से रहित हिन्दुत्वनिष्ठों को पराजय का सामना करना पडेगा, जबकि साधना करनेवाले हिन्दुत्वनिष्ठ सफल होंगे । इसके लिए सूक्ष्म से अनेक ऋषि-मुनि, देवगण तथा सात्त्विक जीव साधना करनेवाले हिन्दुत्वनिष्ठों की सहायता करेंगे । अतः अंततः हिन्दुत्व की विजय होगी ।
२ आ. हिन्दुत्व के प्रति श्रद्धा बढानेवाली विभिन्न दैवी घटनाएं होना : इस वर्ष विभिन्न स्थानों पर सुप्त स्वरूप में स्थित देवता की शक्ति जागृत होगी । उसके कारण वर्तमान में अप्रकट विभिन्न देवालय अथवा शक्तिपीठ मिलना, वर्तमान में जागृत स्वरूप में स्थित देवताओं की उपासना करने पर स्थूल से बुद्धि-अगम्य अनुभूतियां होना, उदा. समाज के अनेक व्यक्तियों को बडे स्तर पर अनेक वर्षाें से चला आ रहा शारीरिक कष्ट दूर होना, पारिवारिक समस्या का समाधान होना इत्यादि अनुभूतियां समाज के व्यक्तियों को बडी मात्रा में होना, इस प्रकार की हिन्दुत्व के प्रति श्रद्धा बढानेवाली विभिन्न दैवी घटनाएं होंगी ।
२ इ. विश्व में हिन्दुत्व के लिए पूरक वायुमंडल उत्पन्न होना : इस वर्ष केवल भारत में ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में हिन्दुत्व के लिए पूरक वायुमंडल उत्पन्न होगा । उसके कारण हिन्दुत्व की शिक्षा देनेवाले अनेक संस्थाओं की स्थापना होना, हिन्दुत्व की सीख के विषय में विदेशी प्रसारमाध्यमों में बडे स्तर पर चर्चा होना, विदेशों में हिन्दुत्व से संबंधित त्योहार बडे स्तर पर मनाए जाने जैसी घटनाएं होंगी ।
३. समाज की दृष्टि से कलियुग वर्ष ५१२७
३ अ. युवा पीढी ने धर्माचरण किया, तो उसे विभिन्न कष्टों पर विजय प्राप्त करना संभव होना : युवा पीढी में कार्य करने की शक्ति अधिक होती है । उसके कारण इस वायुतत्त्वप्रधान वर्ष का सबसे अधिक परिणाम युवा पीढी पर होनेवाला है । धर्माचरण करनेवाले युवकों को बडी सहजता से सफलता तथा समाज में कीर्ति प्राप्त होगी, जबकि धर्माचरण न करनेवाले युवकों को विभिन्न प्रकार के शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक कष्ट भोगने पडेंगे; परंतु इससे धर्माचरण का महत्त्व उनके ध्यान में आकर वे धर्माभिमानी बनेंगे ।
३ आ. पापनाश करनेवाला काल : यह वर्ष वायुतत्त्वप्रधान होने के कारण इस काल में पापनाश होने हेतु सुप्त स्वरूप की अनेक बीमारियां (हृदयाघात, ‘ब्रेन हैमरेज’ [मस्तिष्क में], कैंसर इत्यादि) प्राकृतिक आपदाएं (बाढ, सूखा, भूकंप इत्यादि), साथ ही मानवीय चूकों के कारण होनेवाली दुर्घटनाएं इत्यादि बढेंगे । चाहे ऐसा हो, तब भी यह संधिकाल होने के कारण वह पापनाश के लिए सर्वाेत्तम काल होता है । इस काल में लोगों ने यदि उनके हुए पाप नष्ट होने हेतु प्रायश्चित लेने को अर्थात साधना को प्रधानता दी, तो विभिन्न संकटों से उनकी रक्षा होगी अथवा मृत्यु के उपरांत उन्हें सद्गति मिलने में सहायता होगी ।
इसी प्रकार आतंकवाद, अराजकता, अधर्माचरण इत्यादि फैलानेवाले बडे संगठन नष्ट होना अथवा ऐसे बडे संगठनों के प्रमुखों की नैसर्गिक मृत्यु होना अथवा उन्हें मार दिया जाना जैसी पापनाश करनेवाली विभिन्न घटनाएं होंगी ।
४. कृतज्ञता एवं प्रार्थना !
श्री गुरु अर्थात ‘अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक !’ अनंत कोटि ब्रह्मांडों का काल श्री गुरु के अधीन होता है अर्थात ‘काल’ श्री गुरु द्वारा शिष्य को तैयार करने हेतु की गई लीला होती है । जिस पर श्री गुरु की कृपा है, वह किसी भी काल को हराकर सफलता प्राप्त कर सकता है । ‘सभी साधकों को ऐसे श्री गुरुदेवजी की कृपा का अनुभव हो’, यह उनके श्री चरणों में कोटि-कोटि प्रार्थना है !’
– श्री. निषाद देशमुख (सूक्ष्म से प्राप्त ज्ञान, आध्यात्मिक स्तर ६३ प्रतिशत), फोंडा, गोवा.
१. कलियुग वर्ष ५१२७ की आध्यात्मिक विशेषता !
१ अ. लय से उत्पत्ति की ओर ले जानेवाला कालचक्र : कलियुग वर्ष ५१२७ का कालचक्र सूक्ष्म स्तर पर ‘लय से (विनाश से) उत्पत्ति’ की दिशा में अग्रसर होता दिखाई देता है । इसके कारण इस पूरे वर्ष में बडे स्तर पर ‘लय एवं उत्पत्ति’, इन दोनों से संबंधित विभिन्न घटनाएं होंगी ।
१ आ. वायुतत्त्वप्रधान वर्ष : कलियुग वर्ष ५१२७ में पंचतत्त्व में से वायुतत्त्व का स्तर सबसे अधिक है । ‘निरंतर परिवर्तनशीलता (गतिविधि)’ वायुतत्त्व का मूल गुणधर्म है । इसके कारण इस पूरे वर्ष व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं विश्व, इन सभी क्षेत्रों में नकारात्मक एवं सकारात्मक ऐसी बहुतसी घटनाएं होंगी ।
१ इ. संधिकाल : समष्टि कालचक्र ‘सनातन राष्ट्र’ की (रामराज्य की)’ दिशा में अर्थात कलियुग सत्ययुग की दिशा में अग्रसर हो रहा है तथा उससे तीव्र पापयुक्त एवं पीडा देनेवाला कलियुगांतर्गत कलियुग समाप्ति की ओर बढ रहा है । वर्ष ५१२७ का समावेश कलियुगांतर्गत कलियुग के अंतर्गत अंतिम कालचक्रों में होता है, अतः साधना करनेवालों के लिए यह वर्ष संधिकाल सिद्ध होनेवाला है ।
१ ई. दैवी ऊर्जायुक्त काल : जिस समय समष्टि कालचक्र कलियुग के सत्यगुग की दिशा में अग्रसर होता है, उस समय भूलोक में आध्यात्मिक राज्य की स्थापना हेतु दैवी ऊर्जा कार्यरत होती है । पिछले ५ वर्षाें की तुलना में इस वर्ष यह दैवी ऊर्जा अधिक मात्रा में कार्यरत रहेगी; उस कारण यह वर्ष शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति हेतु भी पूरक है ।
२. हिन्दुत्व की दृष्टि से कलियुग वर्ष ५१२७
२ अ. हिन्दुत्व हेतु पूरक घटनाओं का तीव्र विरोध होना; परंतु अंततः हिन्दुत्व की ही विजय होना : इस वर्ष में हिन्दुत्व के लिए पूरक विभिन्न महत्त्वपूर्ण घटनाएं होंगी । आरंभ में हिन्दुत्वनिष्ठों को विभिन्न प्रकार के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं कानूनी विरोधों का सामना करना पडेगा । इसमें कुछ प्रसंगों में मात्र पुण्यबल प्राप्त; परंतु साधना के अधिष्ठान से रहित हिन्दुत्वनिष्ठों को पराजय का सामना करना पडेगा, जबकि साधना करनेवाले हिन्दुत्वनिष्ठ सफल होंगे । इसके लिए सूक्ष्म से अनेक ऋषि-मुनि, देवगण तथा सात्त्विक जीव साधना करनेवाले हिन्दुत्वनिष्ठों की सहायता करेंगे । अतः अंततः हिन्दुत्व की विजय होगी ।
२ आ. हिन्दुत्व के प्रति श्रद्धा बढानेवाली विभिन्न दैवी घटनाएं होना : इस वर्ष विभिन्न स्थानों पर सुप्त स्वरूप में स्थित देवता की शक्ति जागृत होगी । उसके कारण वर्तमान में अप्रकट विभिन्न देवालय अथवा शक्तिपीठ मिलना, वर्तमान में जागृत स्वरूप में स्थित देवताओं की उपासना करने पर स्थूल से बुद्धि-अगम्य अनुभूतियां होना, उदा. समाज के अनेक व्यक्तियों को बडे स्तर पर अनेक वर्षाें से चला आ रहा शारीरिक कष्ट दूर होना, पारिवारिक समस्या का समाधान होना इत्यादि अनुभूतियां समाज के व्यक्तियों को बडी मात्रा में होना, इस प्रकार की हिन्दुत्व के प्रति श्रद्धा बढानेवाली विभिन्न दैवी घटनाएं होंगी ।
२ इ. विश्व में हिन्दुत्व के लिए पूरक वायुमंडल उत्पन्न होना : इस वर्ष केवल भारत में ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में हिन्दुत्व के लिए पूरक वायुमंडल उत्पन्न होगा । उसके कारण हिन्दुत्व की शिक्षा देनेवाले अनेक संस्थाओं की स्थापना होना, हिन्दुत्व की सीख के विषय में विदेशी प्रसारमाध्यमों में बडे स्तर पर चर्चा होना, विदेशों में हिन्दुत्व से संबंधित त्योहार बडे स्तर पर मनाए जाने जैसी घटनाएं होंगी ।
३. समाज की दृष्टि से कलियुग वर्ष ५१२७
३ अ. युवा पीढी ने धर्माचरण किया, तो उसे विभिन्न कष्टों पर विजय प्राप्त करना संभव होना : युवा पीढी में कार्य करने की शक्ति अधिक होती है । उसके कारण इस वायुतत्त्वप्रधान वर्ष का सबसे अधिक परिणाम युवा पीढी पर होनेवाला है । धर्माचरण करनेवाले युवकों को बडी सहजता से सफलता तथा समाज में कीर्ति प्राप्त होगी, जबकि धर्माचरण न करनेवाले युवकों को विभिन्न प्रकार के शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक कष्ट भोगने पडेंगे; परंतु इससे धर्माचरण का महत्त्व उनके ध्यान में आकर वे धर्माभिमानी बनेंगे ।
३ आ. पापनाश करनेवाला काल : यह वर्ष वायुतत्त्वप्रधान होने के कारण इस काल में पापनाश होने हेतु सुप्त स्वरूप की अनेक बीमारियां (हृदयाघात, ‘ब्रेन हैमरेज’ [मस्तिष्क में], कैंसर इत्यादि) प्राकृतिक आपदाएं (बाढ, सूखा, भूकंप इत्यादि), साथ ही मानवीय चूकों के कारण होनेवाली दुर्घटनाएं इत्यादि बढेंगे । चाहे ऐसा हो, तब भी यह संधिकाल होने के कारण वह पापनाश के लिए सर्वाेत्तम काल होता है । इस काल में लोगों ने यदि उनके हुए पाप नष्ट होने हेतु प्रायश्चित लेने को अर्थात साधना को प्रधानता दी, तो विभिन्न संकटों से उनकी रक्षा होगी अथवा मृत्यु के उपरांत उन्हें सद्गति मिलने में सहायता होगी ।
इसी प्रकार आतंकवाद, अराजकता, अधर्माचरण इत्यादि फैलानेवाले बडे संगठन नष्ट होना अथवा ऐसे बडे संगठनों के प्रमुखों की नैसर्गिक मृत्यु होना अथवा उन्हें मार दिया जाना जैसी पापनाश करनेवाली विभिन्न घटनाएं होंगी ।
४. कृतज्ञता एवं प्रार्थना !
श्री गुरु अर्थात ‘अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक !’ अनंत कोटि ब्रह्मांडों का काल श्री गुरु के अधीन होता है अर्थात ‘काल’ श्री गुरु द्वारा शिष्य को तैयार करने हेतु की गई लीला होती है । जिस पर श्री गुरु की कृपा है, वह किसी भी काल को हराकर सफलता प्राप्त कर सकता है । ‘सभी साधकों को ऐसे श्री गुरुदेवजी की कृपा का अनुभव हो’, यह उनके श्री चरणों में कोटि-कोटि प्रार्थना है !’
– श्री. निषाद देशमुख (सूक्ष्म से प्राप्त ज्ञान, आध्यात्मिक स्तर ६३ प्रतिशत), फोंडा, गोवा.
सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैैं । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है । |