ऋषिऋण चुकाने का सबसे सरल मार्ग है ऋषियों का आज्ञापालन करना !
ऋषियों द्वारा साधकों को दिया गया ‘ज्ञानामृत, आनंदामृत एवं मार्गदर्शन’ के लिए उनके प्रति चाहे कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त की जाए, अल्प ही है
ऋषियों द्वारा साधकों को दिया गया ‘ज्ञानामृत, आनंदामृत एवं मार्गदर्शन’ के लिए उनके प्रति चाहे कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त की जाए, अल्प ही है
सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळ का यह लेख पढकर मैं आश्चर्यचकित रह गया ! इसमें दिया ज्ञान विश्व में किसी को नहीं होगा ! भारतीय संगीत के बडे-बडे विशेषज्ञ भी यह लेख पढकर चकित रह जाएंगे !
‘मुझे विगत २० वर्ष से सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी का सत्संग मिल रहा है । सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी मुंबई, ठाणे एवं रायगड जिलों में अध्यात्मप्रसार की सेवा करते थे, उस समय हिन्दू जनजागृति समिति के अंतर्गत सेवा में हमारा उनसे संपर्क होता था ।
साधकों ने भी ‘हम स्वयं उत्तरदायी साधक हैं’, इस भूमिका में जाकर विचार किया, तो उन्हें उन साधकों को समझना सरल होगा, उनकी समस्याएं भी ध्यान में आएंगी तथा उनके प्रति एक प्रकार की नकारात्मक अथवा कडवाहट की भावना अल्प होने में सहायता मिलेगी ।
कभी-कभी कष्ट की तीव्रता बहुत बढ जाने से नामजप करते समय बार-बार ध्यान विचलित होता है तथा उसे भावपूर्ण करने का चाहे कितना भी प्रयास करें, तब भी वह भावपूर्ण नहीं हो पाता ।
कुम्भमेला अर्थात हिन्दुओं का धार्मिक सामर्थ्य बढानेवाला पर्व ! प्रस्तुत ग्रन्थ में कुम्भपर्वक्षेत्र एवं उसकी महानता, कुम्भमेले की विशेषताएं, कुम्भक्षेत्र में करने-योग्य धार्मिक कृत्य एवं उनका महत्त्व, धर्मरक्षक अखाडों का महत्त्व, हिन्दू धर्म के उत्थान की दृष्टि से कुम्भमेले के कार्य आदि सम्बन्धी मौलिक विवेचन किया गया है ।
कथा एवं प्रवचन जैसे माध्यमों से केवल वैचारिक स्तर पर अध्यात्म बताना तथा ग्रहण करना मानसिक स्तर का होता है । वर्तमान समय की शैक्षिक पद्धति के अनुसार अध्यात्म सीखने का यह स्तर ‘बालवाडी’ स्तर का है ।
यहां दिए हुए लेख में देहली के सनातन के सेवाकेंद्र में रहकर साधना करनेवाले कुछ साधकों को वर्ष २०२२ में दिवाली की अवधि में सेवाकेंद्र में दीप लगाने पर हुई अनुभूतियां प्रस्तुत हैं ।
सनातन का ग्रंथ ‘आध्यात्मिक कष्टों को दूर करने हेतु उपयुक्त दृष्टिकोण’ का कुछ भाग १६ से ३० सितंबर के अंक में पढा । आज आगे के दृष्टिकोण देखेंगे ।
व्यष्टि साधना (व्यक्तिगत साधना) कितनी भी कर लें, किन्तु समष्टि साधना (समाज की उन्नति हेतु साधना) किए बिना ईश्वरप्राप्ति नहीं होती ! व्यष्टि साधना के साथ समष्टि साधना की (राष्ट्ररक्षा, धर्मजागृति की) अनिवार्यता इस ग्रन्थ में स्पष्ट की है ।