व्यायाम करना उबाऊ लग रहा है ? तो यह करें !
किसी भी कार्य के लिए समय सुनिश्चित करने से ‘उसी समयावधि में हमें वह कृति करनी है’, इसका स्मरण रहता है तथा प्रतिदिन उन कृतियों को करने से हम उसके अभ्यस्त हो जाते हैं ।
किसी भी कार्य के लिए समय सुनिश्चित करने से ‘उसी समयावधि में हमें वह कृति करनी है’, इसका स्मरण रहता है तथा प्रतिदिन उन कृतियों को करने से हम उसके अभ्यस्त हो जाते हैं ।
सर्वप्रथम ऋषियों ने ही मानव जीवन व्यतीत करने हेतु आवश्यक साधनों का आविष्कार किया । उन्होंने मनुष्य के जीवनोद्धार हेतु अनिवार्य वेदों का ज्ञान समाज तक पहुंचाया । ऐसे त्यागी एवं तपस्वी ऋषियों के मनुष्य पर अनंत कोटि उपकार हैं । मनुष्य के लिए देवता-समान इन ऋषियों के प्रति कोटि-कोटि कृतज्ञता व्यक्त करेंगे !
वसिष्ठ ऋषि, विश्वामित्र ऋषि, भृगु ऋषि, अत्रि ऋषि, अगस्त्य ऋषि, नारद मुनि इत्यादि ने जो शिक्षा दी है, वह शिक्षा तथा उनके नाम युग-युग से चिरंतन हैं । इसके विपरीत, बुद्धिजीवी तथा धर्मद्रोहियों के नाम १-२ पीढियों में सभी भूल जाते हैं ।
‘प्रत्येक युग में ‘धर्मसंस्थापना’ करना’ श्रीविष्णु का कार्य है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ आठवलेजी कलियुग के श्रीविष्णु के अवतार हैं ! उचित समय एवं उचित स्थिति आते ही श्रीविष्णु के अवतार सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी पृथ्वी पर ‘धर्मसंस्थापना’ करेंगे’, इसमें कोई संदेह नहीं है ।’ – सप्तर्षि
ऋषियों द्वारा साधकों को दिया गया ‘ज्ञानामृत, आनंदामृत एवं मार्गदर्शन’ के लिए उनके प्रति चाहे कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त की जाए, अल्प ही है
सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळ का यह लेख पढकर मैं आश्चर्यचकित रह गया ! इसमें दिया ज्ञान विश्व में किसी को नहीं होगा ! भारतीय संगीत के बडे-बडे विशेषज्ञ भी यह लेख पढकर चकित रह जाएंगे !
‘मुझे विगत २० वर्ष से सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी का सत्संग मिल रहा है । सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी मुंबई, ठाणे एवं रायगड जिलों में अध्यात्मप्रसार की सेवा करते थे, उस समय हिन्दू जनजागृति समिति के अंतर्गत सेवा में हमारा उनसे संपर्क होता था ।
साधकों ने भी ‘हम स्वयं उत्तरदायी साधक हैं’, इस भूमिका में जाकर विचार किया, तो उन्हें उन साधकों को समझना सरल होगा, उनकी समस्याएं भी ध्यान में आएंगी तथा उनके प्रति एक प्रकार की नकारात्मक अथवा कडवाहट की भावना अल्प होने में सहायता मिलेगी ।
कभी-कभी कष्ट की तीव्रता बहुत बढ जाने से नामजप करते समय बार-बार ध्यान विचलित होता है तथा उसे भावपूर्ण करने का चाहे कितना भी प्रयास करें, तब भी वह भावपूर्ण नहीं हो पाता ।
कुम्भमेला अर्थात हिन्दुओं का धार्मिक सामर्थ्य बढानेवाला पर्व ! प्रस्तुत ग्रन्थ में कुम्भपर्वक्षेत्र एवं उसकी महानता, कुम्भमेले की विशेषताएं, कुम्भक्षेत्र में करने-योग्य धार्मिक कृत्य एवं उनका महत्त्व, धर्मरक्षक अखाडों का महत्त्व, हिन्दू धर्म के उत्थान की दृष्टि से कुम्भमेले के कार्य आदि सम्बन्धी मौलिक विवेचन किया गया है ।