हिन्दू राष्ट्र के उद्गाता सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का अलौलिक चरित्र

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के मार्गदर्शन से देश-विदेश के विभिन्न पंथों के अनुयायी हिन्दू धर्म का महत्त्व और साधना समझते हैं, जिससे वे ‘जगद्गुरु’ माने जाते हैं । उनके जीवन चरित्र का संक्षिप्त परिचय इस लेख में प्रस्तुत किया जा रहा है ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की साधना का आरंभ, गुरुप्राप्ति एवं आदर्श गुरुसेवक

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी ने गुरुचरणों में तन-मन-धन समर्पित कर परिपूर्ण सेवा की । इसलिए, गुरु ने भी उन्हें कहा, ‘‘डॉक्टर, मैंने आपको ज्ञान, भक्ति और वैराग्य दिया !’’ ऐसे शिष्योत्तम डॉ. आठवलेजी के जीवन के ‘जिज्ञासु’ से ‘उत्तम शिष्य’ तक की यात्रा का संक्षिप्त वर्णन करनेवाला यह भाग !

साधकों की शंकाओं का समाधान कर उन्हें साधना के लिए प्रोत्साहित करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का अमूल्य मार्गदर्शन !

इस लेख में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा विभिन्न स्थानों पर किए गए मार्गदर्शन में समाहित कुछ चयनित सूत्र यहां दिए गए हैं ।

‘शनिगोचर’ के उपलक्ष्य में चेन्नई (तमिलनाडु) में शनिदेव एवं वाराहीदेवी होम हुआ संपन्न !

सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका के वाचक पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी ने किया होम का आयोजन ! वाराहीदेवी पीठ के गुरुजी श्री गणपति सुब्रह्मण्य स्वामी ने किया होम ! सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी की होम में रही वंदनीय उपस्थिति ! श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा होम के समय देवताओं … Read more

हिन्दू राष्ट्र के उद्गाता सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का जन्म एवं शैक्षिक जीवन

सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की ८३ वीं जयंती के अवसर पर गोवा में ‘सनातन राष्ट्र शंखनाद महोत्सव’ का आयोजन किया है । इस उपलक्ष्य में उनके जीवन चरित्र के विषय में यह लेखमाला आरंभ कर रहे हैं ।

विद्यार्थी संगठनों में सक्रियता दर्शानेवाले पत्रक

‘प्रमुख संगठक’ के रूप में प.पू. डॉ. आठवलेजी का नाम दर्शाता शिवसेना की ‘भारतीय विद्यार्थी सेना’ का पत्रक

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का इंग्लैंड प्रस्थान, नौकरी एवं शोधकार्य

मुंबई के विविध चिकित्सालयों में ५ वर्ष नौकरी करने के उपरांत  डॉ. आठवलेजी ने ४.७.१९७१ को मनोविकारों के लिए सम्मोहन उपचार-पद्धतियों के विषय में अधिक शोध करने हेतु इंग्लैंड प्रस्थान किया । उन्होंने वर्ष १९७१ से वर्ष १९७८ की कालावधि में ब्रिटेन में वास्तव्य किया ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी को अलिंगन देते हुए छायाचित्र देखकर भगवान श्रीराम एवं श्री हनुमान की भावभेंट का स्मरण होना

पू. हरि शंकर जैनजी के मन में परात्पर गुरु डॉक्टरजी के प्रति हनुमानजी की भांति उच्च कोटि का भक्तिभाव होना

समष्टि साधना का महत्त्व एवं उसके संदर्भ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का मार्गदर्शन

ईश्‍वर स्वयं एक ही समय सूक्ष्मातिसूक्ष्म एवं सर्वव्यापी भी होने के कारण, साधक की व्यष्टि अथवा समष्टि साधना मार्गाें के अनुसार वे उसे वैसी अनुभूति प्रदान करते हैं । ईश्‍वर से एकरूप होने के इच्छुक साधक को भी यदि ये दोनों अनुभूतियां हों, तो वह ईश्‍वर से शीघ्र एकरूप होता है ।

गोवा, फोंडा की श्रीमती ज्योति ढवळीकर सनातन के १३२ वें (समष्टि) संतपद पर विराजमान

रामनाथी स्थित सनातन आश्रम में आयोजित एक अनौपचारिक समारोह में यह घोषणा की गई । इस अवसर पर पू. (श्रीमती) ज्योति ढवळीकर के परिवार के कुछ सदस्य और साधक उपस्थित थे । इस अवसर पर सभी का भाव जागृत हुआ ।