ऋषिकेश, उत्तराखंड की हस्तरेखा विशेषज्ञ सुनीता शुक्ला द्वारा सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी की हस्तरेखाओं का किया विश्लेषण यहां दे रहे हैं –
१. सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी के बाएं हाथ की रेखाओं का विश्लेषण
‘व्यक्ति के बाएं हाथ की रेखाओं से उसके पिछले जन्म का बोध होता है । पिछले जन्म में व्यक्ति का स्वभाव, क्षमता, कौशल, कार्यक्षेत्र, प्रारब्ध, साधना इत्यादि की जानकारी मिलती है । सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी के बाएं हाथ का (पिछले जन्म के विषय में) विश्लेषण आगे दिया गया है ।
१ अ. सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी के पिछले जन्म की गुण-विशेषताएं : सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी पिछले जन्म में अत्यंत सुसंस्कृत, अनुशासित, व्यावहारिक एवं सृजनशील (रचनात्मक एवं नवनिर्माण करनेवाले व्यक्ति, creative) व्यक्ति थे । उनमें बहुत अच्छी बौद्धिक क्षमता, विचारों में सुस्पष्टता, प्रबल इच्छा-शक्ति एवं सृजनशीलता थी । पिछले जन्म में उनके पास लोगों का एक बडा संग्रह था । उनकी जीवनशैली सादगीपूर्ण तथा विचार उच्च थे । समाज में उनका नाम था । वे अन्यों के लिए स्वयं की संपत्ति खर्च करते थे । उन्होंने प्रसिद्धि से दूर रहकर मनुष्यजाति के लिए कार्य किया ।
१ आ. सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी के पिछले जन्म की साधना-यात्रा में उत्पन्न बाधाएं
१ आ १. प्रारब्ध एवं स्वभावदोषों के कारण साधना-यात्रा में बाधाएं उत्पन्न होना : पिछले कुछ जन्मों से उनकी आध्यात्मिक यात्रा चल रही थी । वे उसके लिए कठोर परिश्रम करते थे; परंतु कुछ बाधाओं के कारण वह यात्रा खंडित हो गई थी । उनका प्रारब्ध ही उसका कारण था । आक्रामकता, हठीलापन इत्यादि दोष उनकी साधना में बाधा बने थे । उनके बाएं हाथ पर स्थित मंगल ग्रह का उभार गहरा होने के कारण उनमें स्वयं के प्रति कुछ हीन भाव था । (सही है ! – सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी) वे अलिप्त रहने का प्रयास करते थे तथा अनेक कामनाओं से वे अलिप्त भी थे; परंतु वैवाहिक जीवन तथा उसके कुछ दायित्वों में भी वे संलिप्त थे । यह कर्मफलन्याय इस जन्म में भी बना हुआ है ।
१ आ २. बौद्धिकता एवं तार्किकता के कारण कुंडलिनी जागृत होने में बाधा उत्पन्न होना : वे मन से किया गया दृढ निश्चय समर्पणभाव तथा दृढता से पूर्ण करते थे; परंतु निर्णय लेते समय उनके मन एवं बुद्धि में संघर्ष होता था । (जी हां ! मुझमें आत्मविश्वास अल्प था । – सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी) मन एवं बुद्धि की दुविधा के कारण वे सुषुम्ना नाडी एवं सप्तचक्रों को सक्षम नहीं बना पाए । प्रेम, करुणा एवं समानता के भाव की अपेक्षा बौद्धिक एवं तार्किक बातों में अधिक रुचि होने के कारण उनकी कुंडलिनी जागृत होने में बाधा उत्पन्न हुई थी । वे ‘क्या उचित तथा क्या अनुचित’ इस दुविधा में फंसे हुए थे । उनके बाएं हाथ की मस्तकरेखा (बुद्धि से संबंधित रेखा) भले ही तीक्ष्ण एवं अखंडित हो, तब भी उनकी हृदयरेखा (मन से संबंधित रेखा) उतनी मात्रा में तीक्ष्ण न होने के कारण वे अपने ध्येय तक पहुंच नहीं पा रहे थे; उसके कारण वे निराश थे । उसके प्रति उनमें क्षोभ भी था । (सही है ! – सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी); परंतु शिवभक्त होने के कारण शिवजी की कृपा से उनकी साधनायात्रा जारी थी ।
२. सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी के दाहिने हाथ की रेखाओं का विश्लेषण
व्यक्ति के दाहिने हाथ की रेखाओं से उसके वर्तमान जन्म का बोध होता है । ‘व्यक्ति अपनी क्षमता का किस प्रकार उपयोग करता है, उसमें स्थित कमियों पर वह क्या समाधान निकालता है, उसकी साधना-यात्रा कैसी चल रही है, उसकी साधना में कौन सी बाधाएं हैं, इत्यादि की जानकारी मिलती है । सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी के दाहिने हाथ का (वर्तमान जन्म के विषय में) विश्लेषण आगे दिया गया है ।
२ अ. सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी के वर्तमान जन्म की विशेषताएं : सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी का स्वभाव विनम्र, अन्यों की पीडाओं के प्रति संवेदनशील, दयालु, सेवाभावी, भावनाशील, समझदार, किसी के प्रति पूर्वाग्रह न रखनेवाला, दृढ निश्चयी तथा प्रबल इच्छाशक्ति से युक्त है ।
२ आ. सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी के वर्तमान जन्म की बाधाएं
२ आ १. ‘क्या उचित, क्या अनुचित’ इसमें संलिप्त होना : वे अभी भी उनके पिछले जन्म की भांति ‘क्या उचित, क्या अनुचित’ इसी में संलिप्त हैं; परंतु पूर्व की अपेक्षा यह स्थिति अब बहुत अल्प हुई है । उसके लिए उन्होंने बहुत प्रयास किए हैं; परंतु उनके दाहिने हाथ पर संबंधित रेखाएं पूर्णरूप से नष्ट नहीं हुई हैं । (सही है ! – सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी) सिद्धि प्राप्त होने हेतु वे प्रयासरत हैं; परंतु यह साधनामार्ग की एक बाधा है तथा उसके कारण अनिष्ट शक्तियां कुछ मात्रा में इसमें हस्तक्षेप करती होंगी ।
२ आ २. आध्यात्मिक कष्ट अथवा शाप होना : कर्मफलन्याय के अनुसार उन्हें आध्यात्मिक कष्ट अथवा शाप हो सकता है; क्योंकि उनके मध्य की (शनि की) उंगली पर एक दाग दिखाई देता है । (जी हां ! वर्ष २०१४ में मुझे शनिपूजा करने के लिए कहा था तथा मैंने ६ महीने वह पूजा की । – सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी) यह एक आध्यात्मिक बाधा हो सकती है ।
२ आ ३. कुछ मात्रा में ‘मुझे महत्त्व मिले’, यह इच्छा होना : उनमें विद्यमान प्रबल इच्छाशक्ति, पूर्वजन्मों में की गई साधना तथा ईश्वर के साथ एकरूप होने की लालसा के कारण उनकी आध्यात्मिक उन्नति तीव्र गति से हुई; परंतु उन्हें अनाहत चक्र की शुद्धि करने हेतु प्रयास करने होंगे । उनमें कुछ मात्रा में ‘मुझे महत्त्व मिले’, यह इच्छा है तथा यह उनकी आध्यात्मिक यात्रा में बाधा है । (सही है ! सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी)
२ इ. निकट भविष्य में सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी के जीवन में बडे परिवर्तन आकर उन्हें प्रचुर कीर्ति मिलेगी : इस जन्म में भले ही उन्होंने साधना विलंब से आरंभ की हो; तब भी पूर्वजन्म में उनमें साधना की जो लगन थी, वह इस जन्म में भी होने से वे संतपद प्राप्त कर सके । उनकी आयु के २५ वें, ३५ वें एवं ५० वें वर्ष में उनके जीवन में बडे परिवर्तन आए होंगे । (२५ वें वर्ष में मुझे ‘पी.एच.डी.’ (विद्यावाचस्पति) की उपाधि हेतु प्रवेश मिला, ३५ वें वर्ष में मेरी साधना आरंभ हुई तथा ५० वें वर्ष में साधना में कुछ मात्रा में मेरा पतन हुआ । – सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी) निकट भविष्य में उनके जीवन में और एक बडा परिवर्तन आनेवाला है । उसका स्वरूप बाह्य अथवा आंतरिक होगा अथवा साधना को गति प्रदान करनेवाला कोई आशीर्वाद होगा । इस परिवर्तन में उनके इष्टदेवता के आशीर्वाद से बहुत कीर्ति प्राप्त होनेवाली है । यदि यह अवसर वे चूक जाते हैं, तो पुनः उस उच्च स्थिति पर पहुंचना उनके लिए कठिन होगा ।
२ ई. सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी में शिवतत्त्व हैं तथा शिवजी उनके मार्गदर्शक हैं : उनके मुख्य मार्गदर्शक भगवान शिव थे; इसके कारण उनमें शिवतत्त्व अधिक है । कदाचित ध्यान, सेवा, त्याग एवं तंत्रविद्या उनका साधनामार्ग रहा होगा । जीवन में शिवतत्त्व होने के कारण मोक्ष उनके जीवन का उद्देश्य है । कुल मिलाकर उन्हें करनेयोग्य कार्य बहुत अल्प हैं । उन्हें शिवजी के चरणों में सबकुछ अर्पण कर उनसे केवल मोक्ष मांगना है । (स्वीकार्य है ! – सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी) यह उनका अंतिम जन्म हो सकता है ।’
– हस्तरेखा विशेषज्ञ सुनीता शुक्ला, ऋषिकेश, उत्तराखंड (२३.४.२०२४)