प.पू. भक्तराज महाराजजी एवं परात्पर गुरुदेवजी के चित्र बनाते समय श्री. प्रसाद हळदणकर को हुई अनुभूतियां यहां दे रहे हैं –
१. दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में प्रकाशित एक साधक द्वारा बनाए गए गुरुदेवजी के चित्र देखकर अनेक वर्षाें से गुरुदेवजी का चित्र बनाने की इच्छा को प्रबल होना
‘१२.७.२०२० को दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में श्री. विजय जाधव (जळगांव, महाराष्ट्र) द्वारा बनाए चित्र प्रकाशित हुए थे । उन्हें देखने पर मेरे मन में अनेक वर्षाें से गुरुदेवजी का चित्र बनाने की सुप्त इच्छा को बल मिला । इसके लिए मैंने ‘भगवान से कुछ तो आंतरिक सान्निध्य बनेगा’, इस भाव से मैंने प्रयास करना सुनिश्चित किया । पहले मेरे मन में चौखट बनाकर चित्र बनाने का विचार आया । इस समय मुझे प्रतीत हुआ, जैसे गुरुदेवजी ने अंतर्मन से कहा, ‘यदि प्रत्येक चौखट अचूक बनी, तो चित्र भी अचूक बनेगा ।’ उसके पश्चात मैंने उस दिशा में प्रयास करना आरंभ किया ।
२. चित्र का प्रत्येक चरण पूर्ण होने पर अंदर से कृतज्ञता व्यक्त होना तथा गुरुदेवजी का चित्र बनाने पर ‘यह चित्र प.पू. भक्तराज महाराजजी के चित्र के बिना अधूरा है’, ऐसा प्रतीत होना
चित्र का प्रत्येक चरण पूर्ण होने पर बीच-बीच में मैं चित्र को हाथ जोडकर नमस्कार करता था तथा अंदर से कृतज्ञता व्यक्त हो रही थी । यह चित्र पूर्ण होने में तीन दिन लगे । ‘गुरुदेवजी का चित्र (इसमें उनके गले पर ‘ॐ’ है) बनाने पर यह चित्र प.पू. भक्तराज महाराजजी के चित्र के बिना अधूरा है’, ऐसा मुझे लगने लगा ।
३. प.पू. भक्तराज महाराजजी तथा गुरुदेवजी के चित्र बनाते समय, समय का भान न रहना
मैंने प.पू. बाबा का चित्र बनाने का प्रयास किया, उस समय उस चित्र को बनाना मेरे लिए बहुत कठिन हो रहा था । उसके कारण मेरे अंदर से बहुत आर्तता से प्रार्थना हो रही थी । वह चित्र पूर्ण होने में दो दिन लग गए । ये चित्र बनाते समय एक बार तो रात के ढाई तथा एक बार प्रातः ४ बज गए । चित्र बनाते समय मुझे समय का भान नहीं रहता था ।
४. चित्र बनाते समय ‘उसमें भगवान ही तत्त्व की जागृति कर रहे हैं’, इसका भान होना तथा चित्र बनाने का किसी भी प्रकार का अध्ययन तथा अनुभव न होते हुए भी केवल भगवान की कृपा से चित्र बनाना संभव हो पाना
प.पू. भक्तराज महाराजजी का चित्र बनाते समय मैंने केवल टोपी का आकार बनाया था । उसे देखकर मेरी पत्नी (श्रीमती प्रचीति हळदणकर [विवाह पूर्व की कु. वर्षा जाधव]) कहने लगी, ‘इसमें प.पू. बाबा का अस्तित्व प्रतीत होता है ।’ इससे ‘भले ही चित्र मैं बनाता हूं; परंतु उसमें तत्त्व की जागृति भगवान कर हैं’, इसका निरंतर भान होता था । मुझे ऐसे चित्र बनाने का किसी प्रकार का अध्ययन अथवा अनुभव नहीं है; परंतु केवल भगवान की कृपा से ही मैं ये चित्र बना पाया । अब इन चित्रों के पूर्ण होने पर उनकी ओर देखकर लगता है, ‘मैंने तो ये चित्र बनाए ही नहीं है’ तथा उससे मुझमें कृतज्ञभाव जागृत होता है ।
– श्री. प्रसाद हळदणकर, बेळगांव. (कर्नाटक)
इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक |