भक्तों पर अखंड कृपाछत्र बनाए रखनेवाले प.पू. भक्तराज महाराजजी !

सनातन के प्रेरणास्रोत प.पू. भक्तराज महाराजजी की जन्मशताब्दी के उपलक्ष्य में उनके शिष्य डॉ. जयंत आठवलेजी द्वारा समर्पित भावसुमनांजलि !

१. त्रैलोक्य के योगीराज अवतरित हुए भूतल पर !

प.पू. भक्तराज महाराजजी ने उनके एक भजन में अपने गुरु को संबोधित करते हुए कहा है, ‘त्रैलोक्य के योगीराज अवतरित हुए भूतल पर ।’ यह भजन बाबा पर भी लागू होता है । प.पू. भक्तराज महाराजजी (बाबा) गृहस्थाश्रमी होते हुए भी अंदर से योगीराज ही थे ! साधकों एवं भक्तों का उद्धार करने हेतु बाबा अवतरित हुए, वह दिन था ७ जुलाई १९२० ! उनके जन्मशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में मुझे गुरुस्तवन करने का सौभाग्य मिला; इसलिए मैं उनके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं !

२. प.पू. भक्तराज महाराजजी द्वारा शिष्यावस्था में लगन से की हुई गुरुसेवा

शिष्यावस्था में रहते हुए ‘गुरु’ तथा गुरुपद पर विराजमान होने के समय ‘भक्त’, इन २ ही शब्दों में मानो बाबा का संपूर्ण जीवन समाया हुआ था । शिष्य रहते समय गुरु यदि बिना चप्पल पहने बाहर जाने को निकलें, तो तुरंत ही गोद में उनकी चप्पल पकडकर उनके पीछे नंगे पैर चलना, भजनों के कार्यक्रम में ‘गुरु ने उठने के लिए नहीं कहा’; इसलिए निरंतर ८-१० घंटे भजन गाना, गुरु के सामने घंटों एक पैर पर खडे रहकर भजन गाना, गुरु के सोने के समय उनके द्वारा ‘अब रुको’ कहने तक निरंतर उनके चरण दबाते रहना जैसी बाबा की गुरुसेवा का कोई तोड नहीं है । बाबा ने इस प्रकार की गुरुसेवा से शिष्यत्व का एक बडा आदर्श हम सभी के सामने रखा है ।

३. प.पू. भक्तराज महाराजजी के जीवन की त्रिसूत्री : भजन, भ्रमण एवं भंडारा !

३ अ. भजन : प.पू. बाबा कहते थे, ‘भजन ही मेरा जीवन है ।’ बाबा के भजनों की विशेषता यह है कि आज इतने वर्ष उपरांत भी प्रत्येक साधक के लिए प्रत्येक प्रसंग में उन भजनों से उसकी साधना के लिए आवश्यक अर्थ निकलकर आता है ! इसीलिए ‘बाबा के भजन’ साधकों के लिए अनमोल धरोहर ही हैं । बाबा ने भजनों के माध्यम से केवल भक्तियोग ही नहीं, अपितु नामसंकीर्तनयोग, कर्मयोग, ज्ञानयोग आदि साधना पद्धतियों की भी शिक्षा दी ।

‘प.पू. बाबा के भजनों को केवल सुनने से ही उनमें विद्यमान चैतन्य के कारण अनिष्ट शक्तियों का कष्ट अल्प होकर वह दूर हो जाता है’, ऐसा अनेक साधकों ने अनुभव किया है ।

३ आ. भ्रमण : भक्तों को सत्संग एवं आनंद मिले तथा उनकी साधना हेतु मार्गदर्शन मिले; इसके लिए धूप-वर्षा, तूफान आदि किसी बात की चिंता किए बिना तथा आवश्यकता पडने पर बीमार होते हुए भी प.पू. बाबा अनेक किलोमीटर की यात्रा कर भक्तों के पास जाते थे । प.पू. बाबा के इस चैतन्यमय सान्निध्य की स्मृतियां आज भी भक्तों को भाव से रोमांचित किए बिना नहीं रहतीं ।

३ इ. भंडारा : एक बार बाबा के गुरु ने सभी को बताया, ‘‘कल दिनू के यहां भंडारा है ।’ (बाबा का पहले का नाम ‘दिनकर’ था; इसलिए अनेक लोग उन्हें ‘दिनू’ कहते थे ।) तब बाबा मन में कहने लगे, ‘मेरे पास तो पैसे नहीं हैं तथा घर में भंडारे के लिए आवश्यक सामग्री भी नहीं है । तो ऐसे में भंडारा कैसे होगा ? तब भी बाबा ने, ‘गुरु सबकुछ देख लेंगे’, यह विचार कर भंडारा करना सुनिश्चित किया । गुरु ने अनेक लोगों को भंडारे का निमंत्रण दिया । उसके उपरांत गुरुकृपा से भंडारे हेतु आवश्यक सामग्री का अपनेआप प्रबंध हुआ तथा भंडारे में किसी बात का अभाव भी नहीं रहा । गुरु की परीक्षा में बाबा उत्तीर्ण हुए । आगे जाकर पास में पैसे न होते हुए भी बाबा ने असंख्य भंडारे संपन्न किए तथा भक्तों को सिखाया, ‘गुरु के प्रति दृढ श्रद्धा रखें तथा गुरु के लिए सर्वस्व का त्याग करें । उसके उपरांत देखें, गुरु कृपा करते ही हैं !’

४. भक्तों से एकरूप प.पू. भक्तराज महाराजजी !

सामान्यरूप से महान संत-महात्मा जपजाप्य, ध्यान धारणा, समाधि आदि में व्यस्त रहते हैं तथा कुछ ही समय भक्तों का मार्गदर्शन करते हैं; परंतु बाबा को भक्तों के बिना चैन नहीं आता था, भक्तों से वे इतना एकरूप थे ।

५. भक्तों को विभिन्न पद्धतियों से सिखानेवाले प.पू. भक्तराज महाराजजी !

अधिकांश संत केवल मार्गदर्शन के माध्यम से भक्तों को सिखाते हैं । भक्तों को सिखाने की बाबा की विभिन्न पद्धतियां थीं । वे मार्गदर्शन के माध्यम से तो सिखाते ही थे; अपितु अपने सहज आचरण से, व्यंग कर, तो कभी गालियां देकर भी वे भक्तों को सिखाते थे । केवल इतना ही नहीं, अपितु भक्त यदि चूकें करें, तो बाबा उन्हें मारते भी थे । भले ही ऐसा हो; परंतु भक्तों पर क्रोधित होने में उनके प्रेम की नमी तथा भक्तों के कल्याण की लालसा प्रतीत होती थी । इसीलिए आज भी बाबा के स्मरण मात्र से ही भक्तों की आंखें भावाश्रुओं ने नम होती ही रहती हैं ।

६. प.पू. भक्तराज महाराजजी के आशीर्वाद से सनातन का कार्य ‘निरंतर बढता ही रहेगा’

प.पू. भक्तराज महाराजजी के आशीर्वाद में कितना सामर्थ्य है, यह ध्यान में आने हेतु सनातन के कार्य की संक्षिप्त जानकारी दे रहा हूं ।

६ अ. प.पू. भक्तराज महाराजजी द्वारा सनातन के कार्य हेतु दिए हुए आशीर्वाद तथा उसकी फलोत्पत्ति के रूप में सनातन का बढता जा रहा कार्य : अनेक संत एवं नाडी-पट्टिकाओं (नाडी-भविष्य) के अनुसार वर्ष २००७ से मेरा महामृत्युयोग चल रहा है । मैं विगत १२ वर्षाें से मृत्यु के मुख में ही हूं । थकान के कारण मैं अपने कक्ष से कहीं बाहर भी नहीं गया । इतना ही नहीं, अपितु मुझे पैदल चलना तो दूर; किसी के आधार के बिना खडा रहना ही अब संभव नहीं होता । ऐसी स्थिति में प.पू. बाबा के आशीर्वाद से सनातन संस्था की ओर से अभी तक जो कार्य हुआ है, उसकी संक्षिप्त जानकारी दे रहा हूं । यह जानकारी मैं अहंकार से नहीं, अपितु प.पू. बाबा के आशीर्वाद में कितना सामर्थ्य है, यह ध्यान में आए, इसलिए बता रहा हूं । वर्ष १९९१ में प.पू. बाबा के आशीर्वाद से सनातन संस्था की स्थापना हुई । उन्होंने ही संस्था का नामकरण किया था । प.पू. बाबा के द्वारा सनातन के कार्य हेतु दिए हुए आशीर्वाद तथा उनकी फलश्रुति आगे दी गई है ।

६ अ १. प.पू. बाबा के भजन : बाबा के भजनों से चैतन्य मिलने के कारण, साथ ही भजनों में विद्यमान चैतन्य के कारण अनिष्ट शक्तियों का कष्ट अल्प होता है; इसलिए सर्वत्र के साधक साधना के लिए ‘पूरक’ इस रूप में भजन सुनते हैं तथा उसके कारण वे सेवा कर पाते हैं ।

६ अ २. गुरुकृपायोग : प.पू. बाबा से मैंने जो कुछ भी सीखा, उसके अनुसार मैंने ‘साधना कैसे करनी चाहिए ?’, इसके संदर्भ में एक ग्रंथ लिखा । मैंने वह ग्रंथ प.पू. बाबा को दिखाकर उनसे पूछा, ‘‘इस साधनामार्ग को क्या नाम दूं ?’’ इसपर उन्होंने कहा, ‘‘नामसंकीर्तनयोग !’’ मैंने उनसे पूछा, ‘‘इस साधनामार्ग में स्वभावदोष निर्मूलन, अहं निर्मूलन, नामजप, सत्संग, सत्सेवा, भावजागृति, त्याग एवं प्रीति, ये आठ अंग हैं तथा उनमें से एक है ‘नामजप !’ इनमें से सभी प्रकार की साधना के कारण शीघ्र गुरुकृपा होने में सहायता मिलती है; इसलिए क्या हम इस साधनामार्ग को ‘गुरुकृपायोग’, नाम दें ?’’ उस पर बहुत आनंदित होंकर प.पू. बाबा ने कहा, ‘‘हां ! यही नाम दें !’’ प.पू. बाबा के इस आशीर्वाद से आज सहस्रों साधक गुरुकृपायोग के अनुसार साधना कर रहे हैं ।

६ अ ३. प.पू. बाबा द्वारा सिखाई गई व्यष्टि एवं समष्टि साधना : साधना के दो प्रकार होते हैं – एक व्यष्टि साधना तथा दूसरा प्रकार है समष्टि साधना ! सनातन व्यष्टि एवं समष्टि साधना सिखाता है । व्यक्तिगत साधना हेतु अर्थात ईश्वरप्राप्ति हेतु ‘व्यष्टि साधना’ तथा समाज के जिज्ञासुओं की प्रगति हो तथा उससे ईश्वरीय राज्य की स्थापना हो, इसके लिए उन्होंने ‘समष्टि साधना’ सिखाई । समष्टि साधना हेतु ही उन्होंने मुझे भारत के अनेक स्थानों पर तथा अमेरिका जाने के लिए भी कहा था, यह बात अब मेरे ध्यान में आई । सनातन व्यष्टि एवं समष्टि साधना सिखाता है । समष्टि साधना के कारण ही पूरे विश्व के सहस्रों साधक साधना कर रहे हैं ।

६ अ ४. ग्रंथ लेखन हेतु आशीर्वाद ! : वर्ष १९९२ में प.पू. बाबा मुझसे कहने लगे, ‘मेरे गुरु ने मुझे ‘तू किताबों पर किताबें लिखेगा’, यह जो आशीर्वाद दिया है, उसे अब मैं आपको देता हूं ।’ उस आशीर्वाद के फलस्वरूप ही अक्टूबर २०२४ तक सनातन द्वारा संकलित ३६६ ग्रंथों की १३ भारतीय तथा ४ विदेशी भाषाओं में ९७ लाख ७२ सहस्र प्रतियां प्रकाशित हुई हैं । समाज में इन ग्रंथों को पसंद किए जाने का मुख्य कारण यह है कि ये ग्रंथ आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में हैं तथा उनमें विभिन्न विषयों को लेकर मन में उठनेवाले प्रश्नों के, साथ ही ‘क्यों तथा कैसे ?’, इनके उत्तर दिए गए हैं । अभी भी १०,००० ग्रंथों का प्रकाशन होना शेष है । प.पू. बाबा की कृपा से यह कार्य अगली पीढियों तक बढते रहने के लिए आवश्यक साधक तैयार हो रहे हैं ।

६ अ ५. रामनाथी आश्रम हेतु आशीर्वाद : वर्ष १९९३ में गोवा के श्री रामनाथ देवस्थान में बाबा का गुरुपूर्णिमा महोत्सव संपन्न हुआ । उस समय श्री रामनाथ देवस्थान के बाजू में स्थित स्थान की ओर उंगली से निर्देश करते हुए बाबा ने कहा था, ‘‘यह सनातन के भावी आश्रम का नियोजित स्थान है । भविष्य में यह आश्रम विश्वदीप बनेगा !’ वास्तव में आज इसी स्थान पर सनातन का आश्रम बना हुआ है । भारत से, साथ ही अन्य ४५ देशों के जिज्ञासु तथा साधक साधना का मार्गदर्शन लेने हेतु इस आश्रम में आते हैं ।

६ अ ६. श्रव्य चक्रिकाएं तथा दृश्य-श्रव्य चक्रिकाएं : अभी तक सनातन संस्था ने ‘विभिन्न देवताओं के नामजप कैसे करें ?’, यह सिखानेवाली मराठी भाषा में ६५७७, हिन्दी भाषा की ३१९२ श्रव्य चक्रिकाएं तथा ‘धार्मिक कृतियां कैसे करनी चाहिए ?’, यह सिखानेवाली त्योहार इत्यादि की ६८ तथा ‘देवालय में दर्शन कैसे करें ?’, ‘जन्मदिवस कैसे मनाएं ?’ इत्यादि की १३८ दृश्य-श्रव्य चक्रिकाएं तैयार की हैं । उनमें से कुछ दृश्य-श्रव्य चक्रिकाओं का प्रसारण विभिन्न दूरदर्शन वाहिनियों से किया गया है ।

६ अ ७. संपूर्ण भारत में धर्मप्रसार के कार्य हेतु आशीर्वाद : प.पू. बाबा ने मुझे वर्ष १९९२ से लेकर १९९५ की अवधि में महाराष्ट्र, गोवा एवं कर्नाटक, इन राज्यों में चरणबद्ध पद्धति से साधना का प्रसार करने हेतु आशीर्वाद दिया तथा आगे जाकर भारत में सर्वत्र प्रसार करने के लिए कहा । उनके आशीर्वाद के बल पर आज विभिन्न उपक्रमों के माध्यम से धर्मप्रसार का कार्य प्रतिदिन बढता ही जा रहा है, इसके कुछ उदाहरण आगे दिए गए हैं –

अ. प.पू. बाबा की प्रेरणा से मुंबई के निकट देवद, साथ ही गोवा में आश्रमों की स्थापना हुई तथा उससे प्रेरणा लेकर मिरज, कर्नाटक, केरल एवं वाराणसी में भी आश्रम बनाए गए । अनेक स्थानों पर सेवाकेंद्र भी हैं । विदेशों के साधक गोवा के रामनाथी आश्रम आते हैं ।

आ. पूरे भारत में ४७७ स्थानों पर सत्संग चल रहे हैं, साथ ही समाज के जिज्ञासुओं के लिए प्रतिवर्ष लगभग ४० से अधिक ‘साधना-शिविरों’ का आयोजन किया जाता है ।

इ. प्रतिवर्ष देश-विदेशों में कुल मिलाकर लगभग १०० ‘गुरुपूर्णिमा महोत्सव’ मनाए जाते हैं, साथ ही कुंभपर्व तथा अनेक राज्यों में लगनेवाले मेलों में धर्मप्रसार किया जाता है ।

ई. भारत के विभिन्न राज्यों में धर्मसभाओं का आयोजन हो रहा है ।

उ. प्रतिवर्ष गोवा में ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ का आयोजन किया जाता है, साथ ही पूरे वर्ष अनेक ‘प्रांतीय हिन्दू अधिवेशन’ आयोजित किए जाते हैं ।

६ अ ८. सनातन संस्था के साधकों की अभूतपूर्व आध्यात्मिक प्रगति : सनातन का एक भी साधक सकाम भक्ति करनेवाला नहीं है । सभी में ईश्वरप्राप्ति की लगन है । २०.९.२०२४ तक ६० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त अर्थात जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त सनातन के १०४३ साधक संतपद की ओर अग्रसर हैं । १२८ साधकों ने संतपद, १४ साधकों ने सद्गुरुपद प्राप्त किया है, जबकि १ साधक परात्पर गुरुपद पर विराजमान हैं ।

६ अ ९. ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिक : मराठी, हिन्दी, कन्नड एवं अंग्रेजी, इन ४ भाषाओं में ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिक प्रकाशित होते हैं । दैनिक के ८ पृष्ठों में २ से ३ पृष्ठ अध्यात्म एवं साधना से संबंधित होते हैं ।

६ अ १०. विभिन्न जालस्थल : जालस्थलों के माध्यम से भी बडे स्तर पर धर्मप्रसार हो रहा है ।

६ अ ११. अनेक संत सनातन के कार्य से जुडे हैं ।

६ आ. विदेश के कार्य हेतु आशीर्वाद ! : वर्ष १९९५ में प.पू. बाबा मुझे कहने लगे, ‘‘अब तुम प्रसार करने के लिए अमेरिका चले जाओ ।’’ उसपर मैंने कहा ‘‘अमेरिका में कोई मेरा परिचित नहीं है तथा अमेरिका जाने के लिए मेरे पास पैसे भी नहीं हैं ।’’ तब उन्होंने कहा, ‘‘जाने दो । अब अमेरिका ही तुम्हारे पास आएगा ।’’ उसके कारण अब अमेरिका ही नहीं; अपितु विश्व के ४५ से अधिक देशों के साधक साधना सीखने के लिए रामनाथी आश्रम आ रहे हैं ।

६ आ १. विदेशों के एस.एस.आर.एफ. (स्पिरिच्युअल साइंस रिसर्च फाउंडेशन) के साधकों की अभूतपूर्व आध्यात्मिक प्रगति : २०.९.२०२४ तक विदेशों के ४ साधक संत तथा १ साधक ने सद्गुरुपद प्राप्त किया है तथा ६० प्रतिशत, साथ ही उससे अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करनेवाले २३ साधक संतपद की ओर अग्रसर हैं ।

६ इ. महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय : प्राचीन काल में भारत में नालंदा एवं तक्षशिला, ये दो बडे विश्वविद्यालय थे । ‘इतिहास बताने की अपेक्षा इतिहास बनाना चाहिए’, ऐसी एक शिक्षा होने से वर्ष २४.३.२०१४ में ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की स्थापना की गई ।

अध्यात्म विश्वविद्यालय के संगीत विभाग के द्वारा किए गए शोधकार्य में बाबा के भजनों में प्रचुर मात्रा में चैतन्य होने की बात प्रमाणित हुई है ।

अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से विभिन्न विषयों पर शोधकार्य चल रहे हैं । अक्टूबर २०१६ से अक्टूबर २०२४ की अवधि में २० राष्ट्रीय तथा ९६ अंतरराष्ट्रीय, ऐसे कुल ११६ वैज्ञानिक परिषदों में शोधनिबंध प्रस्तुत किए गए हैं । इन परिषदों में उपस्थित अनेक मान्यवरों ने इन शोधनिबंधों की प्रशंसा की है । उनमें से ४ अंतरराष्ट्रीय परिषदों में हमारे शोधनिबंधों को ‘सर्वाेत्कृष्ट शोधनिबंध’ का पुरस्कार प्राप्त हुआ है ।

१. ९ सितंबर २०१८ (दक्षिण कैरोलिना, अमेरिका) : ‘क्या समाजसेवा के कारण आध्यात्मिक उन्नति होती है ?’ – प्रस्तुतकर्ता श्री. कृष्ण मंडावा

२. १६ सितंबर (पुरी, ओडिशा) : ‘उच्च आध्यात्मिक स्तर प्राप्त व्यक्ति ही नेतृत्व कर सकता है !’ – प्रस्तुतकर्ता श्री. शंभु गवारे

३. २० सितंबर २०१९ (बेंगळूरु) : ‘उद्योगों का आध्यात्मिक स्तर पर समाज पर होनेवाला परिणाम !’ – प्रस्तुतकर्त्री श्रीमती शिल्पा मगदूम

४. १५ नवंबर २०१९ (जयपुर) : ‘तनावग्रस्त विश्व में आनंद एवं मन की शांति की खोज’ – प्रस्तुतकर्त्री डॉ. स्वाती मोदी

६ ई. सनातन के सकल कार्य हेतु आशीर्वाद : फरवरी १९९५ में एक भक्त के समक्ष बाबा ने कहा था, ‘‘सनातन को मैं चलाऊंगा !’’ वर्तमान में उनके वे शब्द अक्षरशः सत्य सिद्ध हो रहे हैं । आज सनातन पर विभिन्न संकट आने पर भी सनातन का कार्य बढता ही जा रहा है तथा इस कार्य के लिए कभी भी किसी बात का अभाव नहीं रहा है ।

७. प.पू. भक्तराज महाराज की कृपा की प्रत्यक्ष प्रतीति करानेवाली कुछ विशेष घटनाएं

    आज बाबा भले ही देहरूप में हमारे समक्ष नहीं हैं; परंतु तब भी हम सभी बाबा की कृपा की प्रतीति ले रहे हैं ।

७ अ. प.पू. भक्तराज महाराजजी के छायाचित्र में अपनेआप आए परिवर्तन : वर्ष २००६ में सनातन के रामनाथी आश्रम के मेरे कक्ष के पूजाघर में बाबा का छायाचित्र रखा गया था । अगस्त २०१० में उस छायाचित्र में अपनेआप परिवर्तन हुए । उस छायाचित्र में ‘मुखमंडल का हल्का श्वेत-पीला तथा थोडा सा अस्पष्ट होना’, यह निर्गुण तत्त्व की ओर अग्रसर होना दर्शाता है, जबकि ‘प्रभामंडल घना तथा गुलाबी’ होना धर्मप्रसार हेतु आवश्यक कार्यकारी शक्ति का प्रकट होना दर्शाता है ।

७ आ. चरण पादुकाओं के रूप में रामनाथी आश्रम में प.पू. भक्तराज महाराजजी का आगमन : पणजी, गोवा की प.पू. बाबा की भक्त श्रीमती स्मिता राव ने अप्रैल २०१९ में अंत:प्रेरणा से उनके पास रखी प.पू. बाबा की चरण पादुकाएं रामनाथी आश्रम में रखने हेतु प्रदान कीं । हम सभी का यह भाव है कि इन चरण पादुकाओं के रूप में साक्षात बाबा ही आश्रम में पधारे हैं ।

उक्त घटनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि प.पू. बाबा मानो हमें यह बता रहे हैं, ‘तुमपर मेरा ध्यान है, तुम चिंता मत करो !’

७ इ. देश-विदेशों के साधकों को प.पू. भक्तराज महाराजजी के संदर्भ में होनेवाली अनुभूतियां : केवल भारत ही नहीं, अपितु विदेश के अनेक जिज्ञासुओं तथा साधकों ने बाबा को कभी देखा भी नहीं है; परंतु तब भी बाबा का छायाचित्र देखने पर उनका भाव जागृत होता है, साथ ही उन्हें प.पू. बाबा के संबंध में अनेक अनुभूतियां होती हैं ।

८. श्री गुरुचरणों में प्रार्थना !

    श्री गुरुदेवजी की महिमा का कितना भी गुणगान किया जाए, अल्प ही है । ‘हम सभी पर इसी प्रकार प.पू. बाबा की कृपा अखंड बनी रहे तथा अध्यात्मप्रसार का कार्य करने हेतु वे हमें निरंतर शक्ति देते रहें’, उनके चरणों में यह प्रार्थना करते हुए मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं ।’

– शिष्य डॉ. जयंत आठवले

इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक