रथारूढ महाविष्णु का गायन, वादन एवं नृत्य द्वारा महिमा का गुणगान ही ब्रह्मोत्सव ! श्रीविष्णु रूप में रथ में विराजमान सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के श्रीचरणों में इस ब्रह्मोत्सव के उपलक्ष्य में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के साधकों द्वारा कला के माध्यम से भाव अर्पण किया । नृत्य, गायन एवं वादन सेवा इतनी भावपूर्ण हुई कि उससे उपस्थित साधकों का भी भाव जागृत हुआ ! इस संपूर्ण समारोह में लगाई गई सभी नामधुन एवं भजन सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर सहित अन्य साधकों ने गाए थे ।
१. सभी का भाव जागृत करनेवाली नृत्यसेवा !
‘अच्युताष्टकम्’ इस श्रीविष्णुस्तुति पर १२ साधिकाओं ने भावनृत्य प्रस्तुत किया । इस नृत्य के समय श्रीविष्णु के दशावतार के रूप दिखाते समय सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का वर्ष २०१८ में हुए जन्मोत्सव का शेषशायी श्रीविष्णु रूप भी प्रस्तुत किया । इस नृत्य का संयोजन महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की नृत्य अभ्यासिका श्रीमती सावित्री वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने किया ।
२. भगवान की अंतःकरणपूर्वक स्तुति करनेवाली गायनसेवा !
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की संगीत समन्वयक सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर (संगीत विशारद, आध्यात्मिक स्तर ६२ प्रतिशत), श्रीमती अनघा जोशी (बी.ए. (संगीत), आध्यात्मिक स्तर ६२ प्रतिशत) ने ‘आत्मारामा आनंदरमणा…’ यह गीत प्रस्तुत किया । उन्हें कु. मयुरी आगावणे, कु. रेणुका कुलकर्णी एवं श्रीमती भक्ति कुलकर्णी ने साथ दी । इस अवसर पर श्री. गिरिजय प्रभुदेसाई ने तबला, श्री. मनोज सहस्रबुद्धे (आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत) ने सितार एवं श्री. शैलेश बेहरे ने मंजीरावादन किया ।
३. हृदयस्पर्शी वादनसेवा !
तत्पश्चात श्री. मनोज सहस्रबुद्धे ने वादन सेवा के माध्यम से श्री महाविष्णु की आर्त स्तुति की । उन्होंने सितार पर ‘पूर्वी’ राग का वादन किया । श्री. गिरिजय प्रभुदेसाई ने तबले पर उन्हें साथ दी । ‘पूर्वी’ सायंकालीन प्रहर का राग है ।