आनेवाले भक्तों का सर्व प्रकार से ध्यान रखनेवाला ब्रह्मोत्सव समारोह का प्रबंधन एवं सनातन के साधकों के स्व-अनुशासन के हुए दर्शन !

इस वर्ष सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का ८१ वां जन्मोत्सव था ! ‘इस वर्ष महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं गोवा राज्यों के सहस्रों साधकों को जन्मोत्सव समारोह में उपस्थित रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ !

मूलतः ‘सनातन के कार्यक्रम अत्यंत अनुशासित ढंग से होते हैं’, यह बात न केवल सनातन के साधक, अपितु समाज के मान्यवर, पुलिस एवं प्रशासन को भी ज्ञात है । इसीलिए इस समारोह के लिए भले ही अनेक जिलों से सहस्रों साधक उपस्थित रहनेवाले थे, तब भी यह समारोह सनातन की प्राचीन तथा अनुशासित पद्धति के अनुसार भावपूर्ण वातावरण में संपन्न होगा, इसमें कोई संदेह न था । ब्रह्मोत्सव के लिए महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक आदि राज्यों के १० सहस्र से अधिक साधक आए थे । वाहनतल के साथ ही कुल १३ एकड क्षेत्र में संपूर्ण समारोह की व्यवस्था की गई थी । साधक भाव की स्थिति में एवं बिना किसी अडचन के ब्रह्मोत्सव अनुभव कर सकें, इसलिए ब्रह्मोत्सव स्थल पर साधकों की उत्तम व्यवस्था की गई थी ।

श्रद्धालुओं के वाहनों की व्यवस्था !

१. महाराष्ट्र एवं कर्नाटक राज्यों से १०५ से अधिक बसें तथा ६०० से अधिक चार-पहिया वाहनों से साधक ‘ब्रह्मोत्सव’ स्थल पर आए थे ।

२. विविध जिलों से साधक आनेवाले थे, इसलिए उनकी सुविधा के लिए कार्यस्थल के १ किलोमीटर की दूरी से कुछ अंतराल पर कार्यस्थल के दिशादर्शक फलक लगाए गए थे ।

३. सभा मंडप के ४ प्रवेशद्वार थे । किस जिले के साधकों को उनका वाहन कहां लगाना (पार्क) है ? उन्हें किस प्रवेशद्वार से आना है ? किस जिले के साधकों की बैठक व्यवस्था कहां है ? यह पहले से ही सुनिश्चित किया गया था ।

४. साधकों ने सभा मंडप में जिस प्रवेशद्वार से प्रवेश किया, कार्यक्रम के उपरांत उसी प्रवेशद्वार से साधकों को बाहर जाने के लिए कहा गया । इस कारण साधकों को कार्यक्रम संपन्न होने पर घर जाते समय अपने वाहन ढूंढने में अडचन नहीं आई ।

५. ‘ब्रह्मोत्सव’ के लिए आयताकार (रेक्टेंगुलर) मैदान की परिधि पर ७६ सहस्र ३२० वर्ग फुट के मंडप में साधकों के बैठने की व्यवस्था की गई थी । सभा मंडप के मध्य भाग में श्रीविष्णु स्वरूप सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी एवं उनकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणियां श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के दिव्य रथ था ।

६. ब्रह्मोत्सव निकट से देख पाने हेतु १६ फुट Ñ १२ फुट आकार के ६ ‘आउटडोर एलइडी डिस्प्ले’ लगाए गए थे । उस पर कार्यक्रम का प्रसारण किया गया ।

समारोह के उपरांत प्रत्येक साधक को महाप्रसाद का पैकेट एवं पानी की बोतल दी गई । पंक्तिबद्ध होकर उसे प्रसाद के रूप में लेते साधक । और दाएं रास्ते में अनेक स्थानों पर लगाए गए वाहनतल की जानकारी देनेवाले दिशादर्शक फलक

‘ब्रह्मोत्सव’ सनातन संस्था का सबसे बडा समारोह !

१. वर्ष १९९५ में प.पू. भक्तराज महाराजजी (प.पू. बाबा) का अमृत महोत्सव समारोह इंदौर स्थित भक्तवात्सल्याश्रम की सामनेवाली भूमि पर संपन्न हुआ था । तब प.पू. बाबा के शिष्य डॉ. जयंत आठवलेजी ने उस समारोह का आयोजन किया था । १० सहस्र लोगों के लिए मंडप, ३ सहस्र लोगों के लिए भोजन मंडप इत्यादि २ दिवसीय भव्य आयोजन उन्होंने किया था; परंतु उस समय प.पू. बाबा के भक्तों की संख्या बहुत थी ।

२. वर्ष १९९६ में सांगली में सनातन संस्था की गुरुपूर्णिमा संपन्न हुई । तब सनातन के ४ सहस्र साधक उपस्थित थे ।

३. ११ मई २०२३ को संपन्न हुए ‘ब्रह्मोत्सव’ में सनातन के १० सहस्र से अधिक साधक उपस्थित थे ।


समारोह के उपलक्ष्य में सनातन के साधकों के अनुशासन एवं साधकत्व के हुए दर्शन !

सनातन संस्था के उत्तरदायी साधक साधकों पर जितनी असीम प्रीति करते हैं, विविध कार्यपद्धतियों के माध्यम से उन्हें उतना ही अनुशासित भी करते हैं । स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन प्रक्रिया के द्वारा भी साधकों को स्व-अनुशासनबद्ध जीवन व्यतीत करना सिखाया जाता है । इस समारोह के माध्यम से सनातन के साधकों द्वारा इस अनुशासन का, उत्तरदायी साधकों द्वारा बताई गई सूचनाओं का भावपूर्ण एवं कडाई से पालन करने की वृत्ति के दर्शन हुए । श्रीगुरुदेवजी के प्रति श्रद्धावान ऐसे अनुशासनबद्ध साधक ही सनातन की वास्तविक शक्ति हैं !

अ. फर्मागुडी से कार्यस्थल तक का मार्ग संकरा था । इसलिए वाहनों की पंक्ति (लाइन) लगी थी । तब भी नगर के चौक पर ‘ट्रैफिक जाम’ होने के पश्चात जिस प्रकार वाहनों के हॉर्न बजाए जाते हैं तथा देर होने से लोग त्रस्त हो जाते हैं, वैसा वातावरण नहीं था । सर्व वाहनों में सवार साधक संयम से आगे के वाहनों के आगे बढने की प्रतीक्षा कर रहे थे ।

आ. समारोह संपन्न होने के पश्चात श्रीगुरुदेवजी विराजित दिव्य रथ के दर्शन लेने के लिए साधकों को बुलाया गया था । तब भी ‘शीघ्र ही उन्हें वापस जाना है’, इस विचार से हडबडी करने की अपेक्षा जिस प्रकार जिले के नामों की उद्घोषणा की जाती थी, उसी क्रम से साधक भावपूर्ण दर्शन कर रहे थे । इस प्रकार १० सहस्र साधकों ने अल्प कालावधि में निकटता से रथ के दर्शन लेकर प्रस्थान किया ।

– कु. सायली डिंगरे, श्री. सागर निंबाळकर, श्री. अभिजीत नाडकर्णी एवं जगदीश इंगोल


ब्रह्मोत्सव के कार्यस्थल का ‘ड्रोन’ द्वारा लिया हुआ विहंगम दृश्य !

समारोह का अद्वितीय अनुशासन दर्शानेवाले सैकडों वाहनों की अनुशासनबद्ध पंक्तियां ! वाहनतल की व्यवस्था भी जिला वार की गई थी ! ब्रह्मोत्सव का मुख्य मंडप ! मध्यभाग में श्रीगुरुदेवजी का दिव्य रथ एवं व्यासपीठ ! चारों ओर साधकों के लिए की गई बैठक-व्यवस्था !