भूलकर देहभान रंग जाएं हरि के रंग । आनंद के सागर में उठी भक्ति की तरंग ।।

ब्रह्मोत्सव की रथयात्रा में इस प्रकार ध्वज पथक, मंजीरा पथक में सम्मिलित साधक नारायण नाम की धुन पर झूमे ! यात्रा के आरंभ में धर्मध्वज, तदुपरांत मंगलकलश सिर पर उठानेवाली साधिका, साधिका-साधक का ध्वजपथक, मंजीरा पथक, श्रीगुरु का दिव्य रथ, उनके पीछे पुनः ध्वजपथक, मंजीरा पथक, इस प्रकार यह आनंद समारोह साधकों के मनमंदिर में बस गया !

अपूर्व भाव का अद्वितीय समारोह !

ब्रह्मोत्सव के प्रारंभ में मैदान के एक ओर लगा हुआ परदा खुला और उपस्थितों के हाथ अपनेआप ही जुड गए । साक्षात श्रीगुरूदेवजी का स्वर्णिम रंग के दिव्य रथ से कार्यस्थल पर आगमन हुआ । श्रीविष्णु भगवान के रूप में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी सहित उनकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के सबको दर्शन हुए । सप्तर्षियों की आज्ञा से श्रीगुरुदेवजी का रथ खींच रहे साधकों को देखकर अनेक साधक स्वयं भी मानस रूप से उस सेवा में सम्मिलित हुए ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी प्रत्येक साधक की ओर देखकर हाथ जोडकर नमस्कार कर रहे थे । साधक भी उन्हें देखकर मनोभाव से नमन कर रहे थे । इस समय साधकों को देखकर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी के नेत्रों में आए भावाश्रु देखकर साधक भी भावविभोर हो गए । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के नेत्रों में भी भावगंगा का अवतरण हो गया था । तीनों ही गुरुओं को अपनी आंखों से प्रत्यक्ष अनुभव करना एक अपूर्व भाव का क्षण था । ‘जितनी साधकों की संख्या, उतनी ही संख्या में गुरुदेवजी के प्रति विशिष्ट भाव’, ऐसा यह सात्त्विक समारोह संपन्न हुआ । जैसे-जैसे दिव्य रथ आगे बढ रहा था, वैसे-वैसे सर्व साधकों की भावावस्था शिखर पर पहुंच रही थी । ‘विष्णुवैभवं विश्वरक्षकं…’, ‘नारायणं भजे नारायणं…’ आदि भजनों के कारण इस रथोत्सव का रूपांतरण एक भक्तिउत्सव में हो गया ।


कृतज्ञता ! कृतज्ञता !! कृतज्ञता !!

श्रीविष्णु स्वरूप सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कृपा से संपन्न हुआ यह दिव्य एवं भव्य ‘ब्रह्मोत्सव’ इसी देह और इन्हीं नेत्रों से देखने का महत्भाग्य साधकों को मिला’, इसके लिए हे ईश्वर आपके चरणों में अनन्य भाव से कृतज्ञता ! कृतज्ञता !! कृतज्ञता !!!

हमारे अंत:करण का भक्तिभाव श्री गुरुदेवजी के चरणों में भावसुमनांजलि के रूप में सदैव अर्पित होने दीजिए ।

‘महान ब्रह्मांडगुरुदेवजी का अवतारी तत्त्व एवं कृपाशीर्वाद हम साधकों को निरंतर मिलता रहे, ऐसी आपके पावन चरणों में शरणागत भाव से प्रार्थना है ।

  • सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैैं । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है ।
  • इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक