विभिन्न क्षेत्रों के मान्यवरों से आध्यात्मिक धागे से जुडे सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी !

सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी में ऐसा कुछ है कि एक बार उनके पास गया व्यक्ति उन्हीं का हो जाता है ! उसे पुनः-पुनः गुरुदेवजी से मिलने की इच्छा होती है । यह है सभी के प्रति गुरुदेवजी की निरपेक्ष प्रीति ! इसी निरपेक्ष प्रीति के कारण जिज्ञासु अथवा मान्यवर पहली भेंट में ही उनके साथ किस प्रकार जुड जाते हैं, इस उपलक्ष्य में यह देखेंगे !

साधकों को कला संबंधी ज्ञान सहित अध्यात्म के विविध पहलू सिखानेवाले एवं कला के माध्यम से साधकों की साधना करवा लेनेवाले एकमेवाद्वितीय सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी !

‘गुरु-शिष्य’ के पदक (लॉकेट) संबंधी सेवा करते समय मैंने ३ रेखाचित्र बनाकर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी को दिखाए । तब उनके मार्गदर्शनानुसार कलाकृतियों में परिवर्तन करते समय मुझे सीखने के लिए मिले सूत्र यहां दिए हैं ।

श्रीविष्णुतत्त्व की अनुभूति देनेवाले कलियुग के दिव्य अवतारी रूप : सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी !

श्रीविष्णुस्वरूप सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी का जन्मोत्सव तो साधकों के लिए ‘अमृत से भी मधुर’ अनुपम एवं दिव्य पर्व है । इस दिन साधकों के अंतर्मन में भावभक्ति की शीतल धारा प्रवाहित होकर उन्हें आत्मानंद एवं आत्मशांति की अनुभूति होती है । ऐसे इस दैवी पर्व के उपलक्ष्य में श्रीविष्णु स्वरूप गुरुदेवजी की महिमा हम अपने हृदयमंदिर में स्वर्णिम अक्षरों से अंकित कर लेंगे ।

गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में सनातन के गुरुओं द्वारा संदेश

अब हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने का समय निकट आ गया है; परंतु भविष्य में संपूर्ण राष्ट्ररचना अध्यात्म पर आधारित होने हेतु आज से ही सक्रिय होना, धर्मसंस्थापना का कार्य है । श्री गुरु के इस ऐतिहासिक धर्मसंस्थापना के कार्य में दायित्व लेकर सेवा करें !

वर्तमान की सर्वश्रेष्ठ समष्टि साधना का लाभ उठाएं !

गुरुकार्य में, धर्मकार्य में एवं हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य में यथाशक्ति सहभागी होनेवाले जीवों का उद्धार होना निश्चित है । भारत को धर्माधिष्ठित राष्ट्र घोषित करने के लिए, अर्थात भारत में रामराज्य की स्थापना के लिए प्रयास करना ही वर्तमान काल की सर्वश्रेष्ठ समष्टि साधना है ।

हिन्दुओ, प्रत्येक क्षेत्र में अपनी क्षमतानुसार धर्मसंस्थापना का कार्य गुरुसेवा के रूप में करें !

आधुनिक युग में धर्मसंस्थापना का यही कार्य गुरुतत्त्व को अधिक प्रिय है । धर्मसंस्थापना केवल धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना नहीं, धर्मग्लानि से ग्रस्त राष्ट्र और समाज के प्रत्येक घटक को धर्मयुक्त बनाना भी है ।

उत्तर भारत के युवा साधकों को १० वीं एवं १२ वीं की परीक्षा में सफलता

सनातन संस्था के साधकों के परीक्षा में उत्तीर्ण बेटीयां

अष्टसात्विक भाव क्यों जागृत नहीं होते ?

भक्त ईश्वरप्राप्ति तो चाहते हैं, किंतु संसार-व्यवहारके सुखोंको छोडने वे सिद्ध नहीं होते । यह भी चाहिये और वह भी चाहिये, ऐसा नहीं चल सकता । क्यों नहीं चल सकता ? क्यों कि संसार-व्यवहार का सुख चाहिये, तबतक मन पूर्णत: ईश्वरमें नहीं लग सकता ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के करकमलों से श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को उत्तराधिकार पत्र प्रदान !

समारोह में धातु पर उकेरा गया उत्तराधिकार पत्र सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को प्रदान किया । सनातन की गुरुपरंपरा के ये अनमोल क्षण साधकों ने भावपूर्ण स्थिति में अनुभव किए । श्री. विनायक शानभाग ने उत्तराधिकार पत्र का वाचन किया ।

१० सहस्र से अधिक साधकों की उपस्थिति में एवं चैतन्यमय वातावरण में मनाया गया सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का दिव्य ब्रह्मोत्सव !

सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ८१ वें जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में फर्मागुडी स्थित ‘गोवा अभियांत्रिकी महाविद्यालय’ के मैदान में ‘दिव्य ब्रह्मोत्सव’ संपन्न हुआ । रथारूढ भगवान श्रीविष्णु की नृत्य, गायन एवं वादन द्वारा स्तुति करना अर्थात ब्रह्मोत्सव !