परिपूर्ण सेवा करनेवाले एवं पितृवत प्रेम करनेवाले श्री.अरविंद सहस्रबुद्धे एवं चिकाटी से व्यष्टि एवं समष्टि साधना करनेवालीं श्रीमती वैशाली मुंगळे संतपद पर विराजमान !

पू. सहस्रबुद्धेजी के जीवन में साधना के कारण हुए परिवर्तन, उनके द्वारा स्थिरता से सर्व कठिन प्रसंगों का सामना करना, सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के प्रति उनकी श्रद्धा आदि प्रसंग सुनकर उपस्थित लोगों का भाव जागृत हुआ ।

गंगास्नान,श्रीहरिका नामोच्चारण क्या मनुष्यको पापमुक्त करते हैं ?

साधनाको कोई पर्याय नहीं है; कोई भी सुगम, छोटा मार्ग (short-cut) नहीं है । चित्तशुद्धिके लिये भक्तियोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग आदि साधनाएं शास्त्राेंमें बतायी गयी हैं । वैसा आचरण कर बडा लाभ होगा; केवल गंगास्नान करनेसे अथवा हरिनामोच्चारणसे उतना और वैसा लाभ नहीं होगा ।

साधना में प्रगति होने हेतु ‘शरणागतभाव’ का अनन्यसाधारण महत्त्व होने से ‘शरणागति’ निर्माण होने के सर्वाेच्च श्रद्धास्रोत अर्थात सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी !

शरणागत साधक के स्वभावदोष एवं अहं के निर्मूलन का दायित्व भगवान (गुरु) स्वीकारते हैं । ‘शरणागति’ चित्त को शुद्ध एवं विशाल बनानेवाली कृति है ।

‘दोनों हथेलियों की एकत्रित मुद्रा’ कर शरीर पर से कष्टदायक शक्ति का आवरण निकालने की पद्धति !

गुरुकृपा से ही शरीर पर से आवरण निकालने की इन पद्धतियों को ढूंढ पाए । इसके लिए हम साधक श्री गुरु के श्रीचरणों में कृतज्ञता व्यक्त करते हैं ।

‘मीनार (टॉवर) मुद्रा’ द्वारा शरीर पर आया आवरण निकालने की पद्धति

सहस्रारचक्र पर पकडी हुई ‘मीनार’ मुद्रा (‘टॉवर’ की मुद्रा), साथ ही ‘पर्वतमुद्रा’ के कारण अनिष्ट शक्तियों का कष्ट शीघ्र दूर होने में सहायता मिलना

‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ के लिए आए हिन्दुत्वनिष्ठों को साधना का महत्त्व समझाने का अवसर मिलना !

आज के समय में बहुत ही अल्प लोग साधना करते हैं । अधिकतर लोगों को ‘साधना करनी होती है’, यही ज्ञात नहीं है । हिन्दुत्वनिष्ठ हिन्दुत्व का कार्य मन से करते हैं; परंतु उनकी साधना न होने से वह कार्य बहुत कुछ प्रभावी सिद्ध नहीं होता । उसके कारण उनकी शक्ति का व्यय तो होता है; किंतु उससे कुछ लाभ नहीं होता ।

सनातन संस्था द्वारा पूरे देश में ७२ स्थानों पर ‘गुरुपूर्णिमा महोत्सव’ भावपूर्ण वातावरण में संपन्न !

माया के भवसागर से शिष्य एवं भक्त को धीरे से बाहर निकालनेवाले, उससे आवश्यक साधना करवानेवाले तथा कठिन समय में उसे निरपेक्ष प्रेम से आधार देकर संकटमुक्त करनेवाले गुरु ही होते हैं । ऐसे परमपूजनीय गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन होता है गुरुपूर्णिमा !

गुरुमहिमा !

किसी को सुंदर पत्नी, धन, पुत्र-पौत्र, घर एवं स्वजन आदि सर्व प्रारब्धानुसार सरलता से प्राप्त हुआ हो; परंतु यदि उनका मन गुरुदेवजी के श्री चरणों में रममाण (आसक्त) न हो, तो उसे ये सर्व प्रारब्ध-सुख मिलकर क्या लाभ होगा ?

विभिन्न संतों में विद्यमान प्रतीत अलौकिक तेज

बिना स्नान किए भी केवल मुख पर हाथ फेरते ही लाल-गुलाबी एवं तेजस्वी दिखाई देनेवाले प.पू. भक्तराज महाराज !

‘अनंत’में जानेकी यात्राकी सिद्धता

जीवनमें सुख तो जौ (यव) धान्य के एक दानेके बराबरका है, तो दु:ख पहाड जितना है । इन दु:खोंकी पुनरावत्तियां टालनेके लिये किसी साधनासे अंतिम यात्राकी सिद्धता की, तो ‘अनंत’में विलीन होकर जन्म-मृत्युकी यात्राओंका अंत होगा ।