सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का ‘ब्रह्मोत्सव’ मनाने के विषय में सप्तर्षियों द्वारा पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से बताई गई महिमा !

‘२३.२.२०२३ को सप्तर्षि नाडीपट्टिका के वाचक पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से हुए नाडीवाचन क्रमांक २२२ में ‘वर्ष २०२३ में गुरुदेवजी का जन्मोत्सव किस प्रकार मनाया जाए ?’, इस विषय में सप्तर्षियों द्वारा बताई गई महिमा आगे दे रहे हैं ।

१. वर्ष २०२३ में गुरुदेवजी का जन्मोत्सव ‘ब्रह्मोत्सव’ के रूप में मनाएं  !

अ. गत वर्ष अर्थात २०२२ में हुए जन्मोत्सव के समय गुरुदेवजी बाहर से भाडे पर मंगवाए गए एक रथ पर आरूढ हुए थे । इस वर्ष (वर्ष २०२३ में) होनेवाले गुरुदेवजी के जन्मोत्सव के समय गुरुदेवजी लकडी के रथ में विराजमान होंगे । इसलिए साधकों से श्रीविष्णु तत्त्व आकर्षित करनेवाला एक सुंदर लकडी का रथ बनवाया जाए ।

आ. भूतल पर गुरुदेवजी का यह रथोत्सव देखने के लिए आकाश में त्रिमूर्ति, त्रिदेवी, देवी-देवता, ८८ सहस्र ॠषि, यक्ष, किन्नर, गंधर्व, इस प्रकार सभी देव-ऋषिगण उपस्थित रहेंगे । इस वर्ष का गुरुदेवजी का जन्मोत्सव केवल ‘रथोत्सव’ नहीं, अपितु साक्षात ‘श्रीविष्णु का ब्रह्मोत्सव’ होगा । जिस प्रकार तिरुपति में श्रीविष्णु का ब्रह्मोत्सव मनाया जाता है, उसी प्रकार का उत्सव गुरुदेवजी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित करें ।

इ. जिस प्रकार श्रीविष्णु के रथ में भूदेवी एवं श्रीदेवी होती हैं, ठीक उसी प्रकार गुरुदेवजी के रथ में उनकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी भूदेवी की अवतार श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा निलेश सिंगबाळजी एवं श्रीदेवी की अवतार श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी भी बैठें ।

नाडीपट्टिका वाचन करते हुए पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी

२. ब्रह्मोत्सव की तिथि एवं समय की विशिष्टता

सभी देवी-देवता, सप्तर्षि एवं ऋषिगण की सभा में श्रीविष्णु के चौथे अवतार श्रीनरसिंह एवं  श्री महालक्ष्मी के मध्य जो संवाद हुआ, ठीक उसी के अनुसार हमें ११ मई २०२३ को गुरुदेवजी का जन्मोत्सव ‘ब्रह्मोत्सव’ के रूप में मनाने के लिए कहा गया है । त्रेतायुग में श्रीविष्णु ने नवमी तिथि को श्रीराम अवतार धारण किया । द्वापरयुग में श्रीविष्णु ने अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण अवतार धारण किया था एवं अब इस कलियुग में श्रीविष्णु ने सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के रूप में सप्तमी तिथि को (टिप्पणी) जन्म लिया है । गुरुदेवजी का जन्मनक्षत्र ‘उत्तराषाढा’ है ।  तिरुपति बालाजी का जन्म ‘श्रवण’ नक्षत्र में हुआ था । आज हम जो ब्रह्मोत्सव मना रहे हैं, उस दिन की विशिष्टता यह है कि आज षष्ठी एवं सप्तमी, ये दोनों तिथियां एकत्र आई हैं, साथ ही गुरुदेवजी का उत्तराषाढा जन्मनक्षत्र का समय समाप्त होकर तिरुपति बालाजी का ‘श्रवण’ नक्षत्र आरंभ हुआ है । श्रीनरसिंह एवं श्री महालक्ष्मी की आज्ञा है, ‘जिस समय ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी तिथि होगी एवं जिस समय आकाश में श्रवण नक्षत्र का काल आरंभ होगा, ठीक उसी समय श्रीविष्णु के अवतार गुरुदेवजी का ‘ब्रह्मोत्सव’ मनाया जाए ।’

टिप्पणी – ‘पहले अनेक वर्ष ‘मेरा जन्मदिन षष्ठी को है’, ऐसा मुझे लगता था । जबकि महर्षि ने कहा है, ‘मेरा जन्मदिन सप्तमी को है’, यह मेरे ध्यान में आया है ।’ – डॉ. जयंत आठवले

श्री. विनायक शानभाग

३. ब्रह्मोत्सव में तीन गुरुओं को किस रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए ?

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी उगते सूर्य के समान भगवे रंग के रेशमी वस्त्र धारण करें । श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी भूदेवी से संबंधित हरे रंग की रेशमी साडी एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी श्रीदेवी से संबंधित पीले रंग की रेशमी साडी धारण करें ।

४. रेशमी वस्त्र धारण करने का आध्यात्मशास्त्रीय आधार

रेशम का धागा शुक्र ग्रह से संबंधित है । शुक्र ग्रह यश, समृद्धि एवं कीर्ति से संबंधित है, साथ ही रेशम के धागे पर ‘लक्ष्मीकटाक्ष’ है, अर्थात जो व्यक्ति रेशम के वस्त्र की ओर देखता है, उसे
श्री महालक्ष्मीजी का आशीर्वाद मिलता है एवं इसलिए देवी-देवताओं की मूर्तियों को रेशमी वस्त्र पहनाने की पद्धति है ।

५. मैदान की रक्षा के लिए हनुमानजी, गरुड एवं आदिशेष सूक्ष्म से मैदान में उपस्थित रहेंगे !

श्रीराम अवतार में शिव हनुमानजी के रूप में धर्मसंस्थापना के कार्य में सहायता के लिए पधारे थे एवं श्रीकृष्ण अवतार में महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन के रथ पर चिरंजीव हनुमानजी बैठे थे । उसी प्रकार श्रीविष्णु के अवतार गुरुदेवजी के रथ पर ध्वज के निकट हनुमानजी सूक्ष्म रूप से उपस्थित रहेंगे । गोमंतक के जिस भूभाग पर श्रीविष्णु का रथ चलेगा, उस मैदान की रक्षा अनेक दिनों से गरुड एवं आदिशेष कर रहे हैं । इस मैदान में सबसे पहले ही गरुड एवं आदिशेष सूक्ष्म रूप से उपस्थित हैं । अनिष्ट शक्तियों की छाया मैदान पर न पडे; इसलिए गरुड ने सूक्ष्म से अपने पंख संपूर्ण मैदान पर फेलाए हैं ।

६. सभी साधकों द्वारा भूदेवी एवं श्रीदेवी के साथ ही श्रीविष्णु के जी भरकर भावपूर्ण दर्शन करने से उन्हें ईश्वर के आशीर्वाद मिलेंगे !

श्रीविष्णु का रथ शुभयोग प्रदान करनेवाला ‘मोक्षरथ’ है । यह वैकुंठ से भक्तों के लिए मानवी रूप में पधारे भगवान का सुवर्णयोग प्रदान करनेवाला रथ है । रथारूढ भूदेवी एवं श्रीदेवी के साथ ही श्रीविष्णु के दर्शन लेने से सर्व भक्तों के ताप, दैन्य, पीडा, भूत-पिशाचबाधा, दारिद्र्य, रोग, दुःख एवं ग्रहबाधा दूर होंगे । गत अनेक वर्षाें से साधकों ने अनिष्ट शक्तियों के विविध प्रकार के कष्ट सहन किए हैं । वे कष्ट दूर करने के लिए एवं आशीर्वाद देने के लिए गुरुदेवजी रथ पर विराजमान होकर साधकों को दर्शन देंगे । सभी साधकों द्वारा भूदेवी एवं श्रीदेवी के साथ ही श्रीविष्णु के जी भरकर भावपूर्ण दर्शन करने परउन्हें ईश्वर के आशीर्वाद मिलेंगे ।’

– श्री. विनायक शानभाग (आध्यात्मिक स्तर ६७ प्रतिशत), चेन्नई, तमिलनाडु. (२३.२.२०२३)

‘तिरुपति बालाजी’ का ‘ब्रह्मोत्सव’ 


श्रीविष्णु उत्सवप्रिय हैं; इसलिए तिरुपति में गत १ सहस्र वर्षाें से प्रत्येक वर्ष भूदेवी एवं श्रीदेवी के साथ ही श्री वेंकटेश्वरदेव का उत्सव मनाया जाता है । इन ९ दिनों के उत्सव को ‘ब्रह्मोत्सव’ कहा जाता है । इस उत्सव में श्रीदेवी एवं भूदेवी के साथ ही श्रीविष्णु ‘स्वर्णरथ’ में आरूढ होते हैं । ‘सभी भक्तों को दर्शन मिले’, इसीलिए ब्रह्मोत्सव मनाने की पद्धति रूढ हुई । ब्रह्मोत्सव में से ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ है ‘सर्वाेच्च’; इसलिए ब्रह्मोत्सव अर्थात सर्वाेच्च उत्सव । श्रीविष्णु के लिए मनाए जानेवाले सभी उत्सवों में ‘ब्रह्मोत्सव’ सर्वाेच्च है ।

‘सभी साधक गुरुदेवजी का ब्रह्मोत्सव निर्विघ्न रूप से देख पाएं’, इसलिए महर्षि श्रुंगी ने वर्षा एवं चक्रवात को रोक रखा !  – सप्तर्षि (पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से)

‘श्रुंगी ऋषि द्वारा किए गए ‘पुत्रकामेष्टी याग’ के कारण भगवान श्रीविष्णु श्रीराम के रूप में दशरथ महाराज के घर पधारे । श्रुंगी ऋषि के आगमन से रोमपाद राजा के राज्य से अकाल दूर होकर वर्षा हुई । श्रुंगी ऋषि की विशेषता यह है कि ‘उनके आगमन से वर्षा होना अथवा न होना’, ऐसा हो सकता है । ‘सर्व साधक गुरुदेवजी का ब्रह्मोत्सव निर्विघ्न रूप से देख पाएं, साथ ही गुरुदेवजी एवं उनके रथ के दर्शन ले पाएं’, इसलिए श्रुंगी ऋषि ब्रह्मोत्सव के दिन मैदान में खडे थे । उन्होंने वर्षा को मैदान से २१ कि.मी. दूर एवं चक्रवात को १ सहस्र २०० कि.मी. दूर रोक रखा था । (‘बंगाल की खाडी में उत्पन्न हुआ ‘मोखा’ नामक चक्रवात ९.५.२०२३ को वेग से तट पर आघात कर सकता है’, ऐसा भारतीय मौसम विभाग ने बताया था । अंत में ‘मोखा’ चक्रवात २ दिन बंगाल की खाडी में स्थित अंदमान द्वीपसमूह के निकट रुक गया ।’ – संकलनकर्ता) ‘सभी को सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी के दर्शन हों एवं कार्यक्रम स्थल पर वर्षा के कारण कोई भी समस्या न आए’, इसलिए मैदान में सूक्ष्म से खडे रहकर वर्षा को रोकनेवाले श्रुंगी ऋषि एवं श्रीविष्णु के अवतार सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के श्रीचरणों में हम सप्तर्षि कृतज्ञ हैं ।’ – सप्तर्षि (पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से, १२.५.२०२३, सवेरे ११.३०)

(‘श्रीविष्णु स्वरूप गुरुदेवजी के ब्रह्मोत्सव में वर्षा के कारण समस्याएं निर्माण न हों’, इसलिए कार्य करनेवाले श्रुंगी ॠषि के श्रीचरणों में हम सनातन के सभी साधक कृतज्ञ हैं ।’ – संकलनकर्ता)