सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के चरणों में मान्यवरों द्वारा अर्पित कृतज्ञता सुमन !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ब्रह्मोत्सव में अनेक मान्यवर उपस्थित थे । उनमें से धनबाद, झारखंड के उद्योगपति एवं सनातन के संत पू. प्रदीप खेमकाजी, उनकी पत्नी पू. (श्रीमती) सुनीता खेमकाजी, देहली के उद्योगपति एवं सनातन के संत पू. संजीव कुमारजी, ‘पितांबरी’ उद्योगसमूह के प्रबंध संचालक श्री. रवींद्र प्रभुदेसाई एवं मडिकेरी, कर्नाटक के अधिवक्ता कृष्णमूर्ति पंजीतडका आदि ने समारोह के अंतिम सत्र में भावपूर्ण मनोगत व्यक्त किया ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी केवल मेरे ही नहीं, अपितु सर्व साधकों के रक्षणकर्ता हैं । – उद्योगपति और सनातन के संत पू. प्रदीप खेमका, झारखंड

पू. प्रदीप खेमका

‘मेरे शरीर की प्रत्येक कोशिका निरंतर ‘श्री गुरवे नमः’ यही नामजप करती रहती है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी केवल मेरे ही नहीं, अपितु सभी साधकों के रक्षक हैं । मेरा जीवन एक अधिकोष के प्रबंधक के समान है । अधिकोष में बहुत राशि होती है; परंतु प्रबंधक का उस पर कोई अधिकार नहीं होता । वैसे मेरे अनेक व्यवसाय हैं; परंतु वे सभी व्यवसाय गुरुकृपा से संभाले जाते हैं । अनेक व्यवसायों में मैं अनेक दिनों तक जाता भी नहीं हूं; तब भी गुरुदेवजी सब देखभाल करते हैं । गुरुदेवजी के चरणों में एक ही भाव अर्पित करना चाहता हूं,

अंसुवन के धारों से नित पांव पखारूं मैं ।
गुरुदेव के चरणों में नित शीश झुकाऊं मैं ।।

समारोह में उपस्थित रहने का अवसर देने के लिए तीनों गुरुओं के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता ! – पू. (श्रीमती) सुनीता खेमका, झारखंड

पू. (श्रीमती) सुनीता खेमका

साधना प्रारंभ करने से पहले मुझे अकेलापन लगता था । साधना प्रारंभ करने पर वह पूर्णतः दूर हो गया । अब बाहर के लोग मुझसे पूछते हैं, आप अकेली कैसे रहती हैं ? क्या आपको अकेलापन नहीं लगता ? तब मैं कहती हूं, ‘‘मुझे सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का अस्तित्व निरंतर अनुभव होता है । मुझे लगता है कि मैं श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजीके साथ सेवा कर रही हूं ।’’ इस समारोह में उपस्थित रहने का अवसर देने के लिए तीनों गुरुओं के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी द्वारा बताए गए ‘गुरुकृपायोग’ में भारत को विश्वगुरु बनाने का सामर्थ्य ! – श्री. रवींद्र प्रभुदेसाई (आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत), प्रबंधकीय संचालक, ‘पितांबरी’ उद्योग समूह, ठाणे

श्री. रवींद्र प्रभुदेसाई

१. ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी द्वारा बताए गुरुकृपायोग में भारत को विश्वगुरु बनाने का सामर्थ्य है । ‘संसार की ८०० करोड जनसंख्या के लिए उतने ही साधनामार्ग हैं’ और ‘जितने व्यक्ति उतनी प्रकृतियां, उतने साधनामार्ग’ यह साधना का अद्भुत सिद्धांत सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजीने बताया है । इस सिद्धांत के कारण हिन्दू धर्म में कितनी साधना स्वतंत्रता है, यह स्पष्ट होता है एवं हिन्दू धर्म की महानता भी ध्यान में आती है । १ सहस्र वर्ष में कोई एक ही सनातन संस्था जैसी संस्था बनी है ।

२. सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाना, यह साधना का तत्त्व बताया है । उसके अनुसार ही मैंने पितांबरी के शोध एवं विकास (रिसर्च एंड डेवलपमेंट) विभाग को कार्य करने के लिए कहा है । अध्यात्म में इतनी शक्ति है कि साधना के कारण आनंदप्राप्ति होती है और प्रारब्ध परिवर्तित हो सकता है । शिक्षा अथवा प्रबंधन की अपेक्षा अध्यात्म के तत्त्व श्रेष्ठ हैं ।

३. हमें इस कार्यक्रम में आने का संदेश मिला, तब बीमार माताजी का स्वास्थ्य सुधर गया । महामार्ग पर सहस्रों वाहनों के कारण मार्ग बंद (ट्रैफिक जाम) होते हुए केवल हमारे वाहन को आने का मार्ग मिला । यह सब गुरुकृपा से हुआ है ।

४. मैं कोरोना के कारण बीमार था । मेरा आत्मविश्वास ही नष्ट हो गया था, तब सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी मेरे स्वप्न में आए । उन्होंने मेरा आत्मविश्वास बढाया एवं एक प्रकार से मेरा पुनर्जन्म ही हुआ ।

५. हमने ‘पितांबरी’ को गुरुचरणों में अर्पित किया है । वे ही पितांबरी और प्रभुदेसाई परिवार का योगक्षेम वहन कर रहे हैं । वे ही हमारा कल्याण भी करेंगे ।

गुरुदेवजी ने हमें अनमोल साधना सिखाई ! – पू. संजीव कुमार, देहली

पू. संजीव कुमार

मुझे आज सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के श्रीविष्णु रूप में तथा श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के क्रमशः ब्रह्मा एवं महेश के रूप में दर्शन हुए । इन तीनों गुरुओं के चरणों में सूक्ष्म ज्ञान की अनुभूति होती है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कृपा से मेरी अनेक समस्याएं समाप्त हो गई हैं । सनातन के साधकों की तोड नहीं है । उनके माध्यम से गुरुदेवजी का ही व्यापक रूप कार्यरत है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने हमें अनमोल साधना सिखाई तथा इतने अच्छे साधक दिए, इसके लिए उनके चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने साधकों के लिए मोक्षद्वार खोला है ! – अधिवक्ता कृष्णमूर्ति, कर्नाटक (आध्यात्मिक स्तर ६४ प्रतिशत)

अधिवक्ता कृष्णमूर्ति

‘इतने बडे भावजागृतिकारक समारोह में मैं उपस्थित रह पाया, इसलिए मेरा मन भर आया है । जब मुझे हिन्दुत्वनिष्ठों के लिए अभियोग लडते समय प्रतिवादियों से कौन से प्रश्न पूछने हैं ?, यह नहीं सूझता, तब सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की शरण जाता हूं । मैं १२ अप्रैल २०२३ की रात मड्डीकेरी से चारपहिया वाहन से जा रहा था, तब कुछ लोगों ने मुझ पर प्राणघातक आक्रमण किया । उस समय बंदूक की गोली मेरे सिर से २-३ सें.मी. दूरी से निकली । मेरे वाहन की गति अल्प होने के कारण मुझे गोली नहीं लगी । उस समय वाहन अल्प गति से चलाने की बुद्धि मुझे गुरुदेवजी ने ही दी । मेरा नामजप निरंतर नहीं होता, तब भी गुरुदेवजी मेरा कितना ध्यान रखते हैं । अतः उनके चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता व्यक्त करता हूं । उनकी कृपा से मैं हिन्दुत्व का कार्य अधिकाधिक कर पाऊं, ऐसी उनके चरणों में प्रार्थना करता हूं ।’

इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक