।। श्रीकृष्णाय नम: ।।
प्रश्न – ‘गंगा नदीमें स्नान किया तो सारे पाप धुल जाते हैं’, ऐसा कहते हैं । यह भी सुना है कि भागवतपुराणमें बताया है कि किसी को केवल बुलानेके लिये हरिका नाम लिया गया तो भी सभी पापोंका नाश होता है । इतना सुगम उपाय होते हुवे अलग अलग साधना क्यों करें ?
उत्तर – ‘ मैंने गंगामें डुबकी लगाई, अब मेरे सारे पाप धुल गये’ अथवा ‘मैंने श्रीहरिका नाम लिया, अब मेरे सारे पाप नष्ट हुवे’ ऐसा दृढ विश्वास कितनोंको होता है? किसीको भी निश्चिति नहीं होती । सबके मनमें शंका रहती है! श्रद्धा और विश्वास ही नहीं, तो फल कैसे मिलेगा? भगवान् श्रीकृष्णने भगवद्गीतामें ‘संशयी मनुष्य नष्ट होता है’ ऐसा बताया है –
अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मन:।। अ.४ श्लो ४०
अर्थ – अज्ञानी और श्रद्धारहित और संशयग्रस्त (मनुष्य) नष्ट होता है । संशयी मनुष्यको इहलोक नहीं (लाभदायक होता) , परलोक नहीं (लाभदायक होता) और सुख (भी) नहीं मिलता ।
दूसरी बात यह है कि हरिनाम लेनेसे मनुष्यके पाप नष्ट हाेंगे ऐसा भागवतपुराणमें बताया है, यह सच है। किंतु उस मनुष्यकी प्रवृत्तियां सुधर जायेंगी, उसका स्वभाव परिवर्तित होगा, उसकी चित्तशुद्धि होगी, ऐसा वहां नहीं कहा है । तब यदि यह मान लिया कि पहले के पाप नष्ट हो गये हैं तो भी मूल स्वभाव पहलेका ही रहनेसे उससे पुन: पाप होंगे ही ।
पाप न हो, इसके लिये स्वभाव सुधारना पडता है, चित्तशुद्धि करनी होती है; और उसके लिये साधना करनी ही पडती है । साधनाको कोई पर्याय नहीं है; कोई भी सुगम, छोटा मार्ग (short-cut) नहीं है । चित्तशुद्धिके लिये भक्तियोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग आदि साधनाएं शास्त्राेंमें बतायी गयी हैं । वैसा आचरण कर बडा लाभ होगा; केवल गंगास्नान करनेसे अथवा हरिनामोच्चारणसे उतना और वैसा लाभ नहीं होगा ।
– अनंत आठवले. २२.०४.२०२३
।। श्रीकृष्णापर्णमस्तु ।।
पू. अनंत आठवलेजी के लेखन का चैतन्य न्यून न हो इसलिए ली गई सावधानी
लेखक पू. अनंत आठवलेजी के लेखन की पद्धति, भाषा एवं व्याकरण का चैतन्य न्यून (कम) न हो; इसलिए उनका लेख बिना किसी परिवर्तन के प्रकाशित किया गया है । – संकलनकर्ता |