१. ‘दोनों हथेलियों की एकत्रित मुद्रा’ का पता कैसे लगा ?
‘वर्ष २०२१ में एक बार सनातन के रामनाथी आश्रमें यज्ञ शुरू था । तब मुझे लगा, ‘यज्ञ की आहुति देनेवाले यजमानों पर कष्टदायक (काली) शक्ति का आवरण आया है ।’ मैंने उनपर से आवरण निकालने का प्रयत्न किया; परंतु वह दूर नहीं हो रहा था । तब मुझे ध्यान में आया कि ‘अनिष्ट शक्तियां ऊपर से कष्टदायक शक्ति का प्रवाह छोड रही हैं । इसलिए उन पर कष्टदायक शक्ति का आवरण दूर नहीं हो रहा और इसके लिए पहले ऊपर से आनेवाला कष्टदायक शक्ति का प्रवाह रोकना होगा ।’ फिर भगवान ने मुझे सुझाया, ‘एक (दाईं) हथेली सिर पर १ – २ सें.मी. के अंतर पर अपनी दिशा में आए ऐसा रखें और दूसरी (बाईं) हथेली पहली हथेली की विपरीत दिशा में, अर्थात ऊपर की दिशा में आएगी, ऐसे रखें । (छायाचित्र १ देखें)’ इस नई मुद्रा को मैंने ‘दोनों हथेलियों की एकत्रित मुद्रा’, ऐसा नाम दिया है । मैंने वह मुद्रा कर ‘महाशून्य’ का नामजप किया । तब १० मिनटों में ही ऊपर से आनेवाला कष्टदायक शक्ति का प्रवाह रुक गया और साथ ही यजमानों पर आया आवरण भी बहुत कम हो गया ।
१ अ. ‘दोनों हथेलियों की एकत्रित मुद्रा’का परिणाम : यज्ञ के यजमान के लिए उस नई मुद्रा से उपाय करते समय मुझे ध्यान में आया कि ‘उस मुद्रा में ऊपर की दिशा में हथेलियां रखने से उपाय होकर अनिष्ट शक्तियों द्वारा छोडी जा रही कष्टदायक शक्ति का प्रवाह रोक दिया गया एवं अपनी दिशा में जो हथेली थी उससे मुझ पर, अर्थात मैं जो उपाय कर रहा था उससे यज्ञ के यजमानों के लिए उपाय होकर उन पर आवरण अल्प हो गया ।’ इसप्रकार इस नई ‘दोनों हथेलियों की एकत्रित मुद्रा’ पता चली ।
२. ‘दोनों हथेलियों की एकत्रित मुद्रा’से आवरण निकालने की आवश्यकता
पहले अनिष्ट शक्ति शरीर पर आवरण लाती थी, तब वह आवरण किसी चक्र पर अथवा अधिक से अधिक २ चक्रों पर होता था । तब ‘मुठ्ठी से आवरण निकालना’ (‘शरीर पर आया कष्टदायक शक्ति का आवरण दोनों हाथों की मुठ्ठियों में एकत्र करना और शरीर से दूर फेंकना’ (छायाचित्र २ एवं छायाचित्र २अ देखें)), यह पद्धति लाभदायक होती थी ।
तदुपरांत सूक्ष्म के युद्ध का स्तर बढ गया । तब अनिष्ट शक्ति शरीर पर किसी एक अथवा दो चक्रों पर आवरण न लाते हुए सिर से छाती तक अथवा सिर से कमर तक आवरण लाकर अनुक्रम में ४ चक्र (सहस्रार से अनाहतचक्र) अथवा ६ चक्र (सहस्रार से स्वाधिष्ठान चक्र) आवरण से निरंतर भारित करने लगीं । उस समय ‘मनोरा (टॉवर) मुद्रा’ शरीर पर घुमाना’ इस पद्धति का ही उपयोग करना पडा । वह मुद्रा अर्थात दोनों हाथों के बीच की उंगलियाें का सिरा एकदूसरे से जोडकर और कलाई सिर के दोनों ओर टिकाकर ‘मनोरा मुद्रा’ (छायाचित्र ३ देखें) करना और वह मुद्रा कुंडलिनीचक्रों पर से (सहस्रार ते स्वाधिष्ठान चक्र पर से) ‘ऊपर से नीचे एवं नीचे से ऊपर’ ऐसे ७ – ८ बार घुमाएं ।
तत्पश्चात सूक्ष्म के युद्ध का स्तर और अधिक बढ गया । तब अनिष्ट शक्तियां केवल एक बार ही व्यक्ति पर आवरण लाकर शांत नहीं बैठतीं, अपितु उस व्यक्ति पर कष्टदायक शक्ति का प्रवाह निरंतर छोडने लगती हैं । इससे तब ‘मुठ्ठी से आवरण निकालना’ अथवा ‘मनोरा मुद्रा’ शरीर पर घुमाकर आवरण निकालना’, इन दोनों पद्धतियों का उपयोग नहीं होता था; कारण कष्टदायक शक्ति का प्रवाह सतत आते रहने से कितना भी आवरण निकालें, तब भी वह समाप्त ही नहीं होता था । इसलिए व्यक्ति की ओर आनेवाला कष्टदायक शक्ति का प्रवाह पहले रोकना होता है । इसके लिए ‘दोनों हथेलियों की एकत्रित मुद्रा’का उपयोग होता है ।
३. ‘दोनों हथेलियों की एकत्रित मुद्रा’ से शरीर पर से आवरण निकालने की पद्धति
प्रथम ‘प्राणशक्तिवहन उपाय पद्धति’से (‘शरीर एवं शरीर के चक्रों पर से हाथ की उंगलियां घुमाकर उंगलियों से प्रक्षेपित होनेवाली प्राणशक्ति द्वारा आध्यात्मिक कष्ट अथवा विकार के लिए कारणीभूत शरीर पर बाधा उत्पन्न करनेवाला स्थान ढूंढना । तदुपरांत उस स्थान पर अडचनों की तीव्रता अनुसार हाथ की उंगलियों की मुद्रा एवं नामजप ढूंढकर उनसे उपाय करना’) ‘कौनसा जप करना है ?’ यह ढूंढें । (इसके लिए सनातन का ग्रंथ ‘विकार-निर्मूलन के लिए प्राणशक्ति (चेतना) वहन संस्था की बाधाएं कैसे ढूंढें’ पढें ।) शरीर से आवरण निकालते समय ढूंढा हुआ नामजप सतत करें । शरीर से आवरण निकालने के लिए ‘दोनों हाथेलियों की एकत्रित मुद्रा’ करें और वह मुद्रा कुंडलिनीचक्रों पर से (सहस्रार से स्वाधिष्ठानचक्र पर से) ‘ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर’ इसप्रकार ७ – ८ बार करें । प्रत्येक चक्र पर आने पर वहां लगभग आधा मिनट रुकें । मुद्रा चक्रों पर से घुमाते समय शरीर से २ से ३ सें.मी. का अंतर रखें ।
इस पद्धति से आवरण निकालने पर शरीर पर के आवरण के कारण आया हुआ जडत्व अथवा दाब बहुत अल्प हो गया है, ऐसा अनुभव होगा । फिर जो भी शेष आवरण रह गया है, उसे हम ‘मुठ्ठी से आवरण निकालना’ (सूत्र २ देखें ।) इस पद्धति से अथवा आवश्यकता लगे तो ‘मनोरा मुद्रा’का उपयोग कर पूर्णरूप से दूर कर सकते हैं ।
४. ‘दोनों हथेलियों की एकत्रित मुद्रा’के ध्यान में आए कुछ लाभ
४ अ. सेवा करते समय कक्ष में ऊपर से आनेवाला कष्टदायक शक्ति का प्रवाह रोक पाना, साथ ही पाताल से अर्थात भूमि से आनेवाले कष्टदायक शक्ति का प्रवाह भी रोक पाना : हम संगणक पर सेवा करते समय कभी-कभी ऐसा ध्यान में आता है कि संगणक बार-बार बंद हो रहा है अथवा जो सेवा कर रहे हैं उसमें बार-बार त्रुटि (एरर्) आ रही है । इसके साथ ही कुछ और सेवा करते समय उसमें बार-बार अडचनें आ रही हैं । तब सूक्ष्म से देखा, तो अनिष्ट शक्ति अपनी सेवा के माध्यम पर ऊपर से कष्टदायक शक्ति छोड रही है । उस समय वह कष्टदायक शक्ति रोकने के लिए भी ‘दोनों हथेलियों की एकत्रित मुद्रा’का उपयोग होता है । तब
‘अपनी एक हथेली ऊपर की दिशा में और दूसरी हथेली भूमि की दिशा में आए’, ऐसी मुद्रा कर उसे अपने सामने रखें (छायाचित्र ४ देखें) (संभव हो तो हम सेवा कर रहे माध्यम, उदा. संगणक अथवा किसी यंत्र पर भी प्रत्यक्ष उपाय कर सकते हैं । तब ‘दोनों हथेलियों की एकत्रित मुद्रा’ संगणक अथवा उस यंत्र पर रखें । इससे संगणक अथवा यंत्र पर भी उपाय होंगे, इसके साथ ही ऊपर से आनेवाली कष्टदायक शक्ति का प्रवाह भी रोक दिया जाएगा ।) जहां से अनिष्ट शक्ति निकालनी है, उस दिशा में हथेली करें एवं कष्ट की आवश्यकतानुसार ‘शून्य, महाशून्य, निर्गुण अथवा ॐ’ इनमें से कोई नामजप करें । हमें कक्ष में हलकापन लगने लगे तो यह उपाय करना रोक दें ।
इसके साथ ही कभी-कभी अनिष्ट शक्ति पाताल से, अर्थात भूमि से कष्टदायक शक्ति छोडती रहती है । इस कष्टदायक शक्ति को रोकने के लिए भी छायाचित्र ४ में दिखाए अनुसार की गई मुद्रा का उपयोग कर सकते हैं । उस समय भूमि से आनेवाली कष्टदायक शक्ति भूमि की दिशा की हथेली और नामजप से रोकी जाती है ।
४ आ. हमारे सामने से हम पर आनेवाली कष्टदायक शक्ति रोक पाना और हमारे सामने के कष्टदायक शक्ति का पर्दा दूर कर पाना : कभी-कभी अनिष्ट शक्ति हमारे सामने से हम पर कष्टदायक शक्ति छोडती है । इसके साथ ही कभी-कभी अनिष्ट शक्तियां ने हमारे सामने कष्टदायक शक्ति का पर्दा निर्माण किया होता है । तब ‘दोनों हथेलियों की एकत्रित मुद्रा’का उपयोग होता है । इसमें ‘अपनी एक हथेली अपनी दिशा में आएगी और दूसरी हथेली हमारे सामने की दिशा में आएगी’ इसप्रकार से यह मुद्रा करें (छायाचित्र ५ देखें), इसके साथ ही आवश्यक नामजप भी करें । उस समय अपने शरीर को हल्कापन लगने तक यह उपाय करें । गुरुकृपा से ही शरीर पर से आवरण निकालने की इन पद्धतियों को ढूंढ पाए । इसके लिए हम साधक श्री गुरु के श्रीचरणों में कृतज्ञता व्यक्त करते हैं ।’
– (सद़्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (९.७.२०२३)
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