‘लव जिहाद’ में फंसी हिन्दू महिलाओ, क्या आपको इस्लामी कानूनों के विषय में यह ज्ञात है ?

कई बार ऐसा दिखाई देता है कि मुसलमान से प्रेम करनेवाली हिन्दू महिला पहले अपना धर्म बदलती है । किसी मौलवी के पास ले जाकर उसका धर्मांतरण किया जाता है । उससे कोई सत्य प्रतिज्ञापत्र लिया जाता है, जिस पर लिखा होता है, ‘मैं अपनी इच्छा से धर्म बदल रही हूं और मेरे माता-पिता के पास जाने की मेरी इच्छा नहीं है ।

हिन्दुओं के मंदिरो को प्रशासन और सरकार के अधीन रहना चाहिए क्या ? – मद्रास उच्च न्यायालय का मदुराई खंडपीठ को प्रश्न

धर्मनिरपेक्ष कहलाने वाली सरकारों को मंदिरों के समान चर्च और मस्जिदों पर भी नियंत्रण रखना चाहिए !

बंगलुरू के महाविद्यालय में सिख छात्रा को पगडी निकालने के लिए कहने पर सिख धर्मीय नाराज

‘एक सिख की पगडी पर कितनी श्रद्धा होती है यह हम जान रहे हैं; लेकिन न्यायालय के आदेश से हमारे हाथ बंधे हैं’, ऐसा प्रशासन ने लडकी के पिता को बताया ।

कुतुब मीनार परिसर में मस्जिद और मंदिर के वाद को लेकर देहली के न्यायालय ने केंद्र सरकार को ज्ञापन भेजा है !

साकेत जिला न्यायालय ने संस्कृति और पुरातत्व मंत्रालय देहली के महानिदेशक को ज्ञापन जारी कर कुतुब मीनार क्षेत्र में २७ हिन्दू और जैन मंदिरों को तोडकर निर्माण की गई ‘कुव्वत-उल्-इस्लाम’ मस्जिद के विरोध में प्रविष्ट एक याचिका पर उत्तर मांगा है ।

लोकतंत्र के एक महत्त्वपूर्ण स्‍तंभ न्‍यायव्‍यवस्‍था की परिवारवाद !

हमें आपने देश के लोकतंत्र में परिवारवाद केवल राजकीय क्षेत्र तक ही मर्यादित नहीं रह गई, अपितु उच्‍च न्‍यायालय एवं सर्वोच्‍च न्‍यायालय में भी एक प्रकार की परिवारवाद चालू है । उच्‍च एवं सर्वोच्‍च न्‍यायालय में कार्यरत न्‍यायाधीशों को ही नए न्‍यायाधीशों को चुनने का दिया अधिकार, जिसे कॉलेजियम पद्धति’ भी कहा जाता है, वह इस परिवारवाद की अपेक्षा अलग कुछ नहीं ।

लव जिहाद के बढते प्रसंग और उनके समाधान

हमारा धर्म और संस्कृति बचेगी तो देश बचेगा; क्योंकि यदि कट्टरता बढती है, तो पुलिस व्यवस्था, प्रशासन, न्यायपालिका समेत पूरा देश संकट में पड जाएगा । देश की संप्रभुता के लिए वास्तव में यह एक बडी चुनौती है ।

प्लास्टिक के राष्ट्रध्वज और तिरंगे के रंगोंवाले मास्क की बिक्री करनेवालों पर कार्यवाही कीजिए ! – हिन्दू जनजागृति समिति

राष्ट्रध्वज का यह अनादर रोकने के लिए हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा मुंबई उच्च न्यायालय में जनहित याचिका (१०३/२०११) प्रविष्ट की गई थी । इस संबंध में सुनवाई करते हुए न्यायालय ने प्लास्टिक के राष्ट्रध्वज द्वारा होनेवाला अपमान रोकने का आदेश सरकार को दिया था ।

मनु, चाणक्य और बृहस्पति द्वारा विकसित भारतीय न्याय व्यवस्था ही भारत के लिए योग्य !

उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति ने यह विचार व्यक्त किए होंगे, तो भी भारत के तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी, ढोंगी आधुनिकतावादी यह स्वीकार नहीं करेंगे और इस विचार को ‘स्वयं को अधिक समझता है’ इस मनोदशा में विरोध करेंगे !

हरिद्वार में हुई धर्म संसद में वक्ताओं के कथित आपत्तिजनक विधानों के कारण उच्चतम न्यायालय के ७६ अधिवक्ताओं का मुख्य न्यायाधीश का पत्र

हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों के विषय में, साथ ही उनके ऊपर होनेवाले आक्रमणों के विषय में इस प्रकार का पत्र लिखने की सद्बुद्धि इन अधिवक्ताओं को कभी क्यों नही होती या कानून और सुव्यवस्था केवल अन्य धर्म के लोगों के लिए ही होती है , ऐसा उन्हें लगता है ?