‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से किए जा रहे अभूतपूर्व आध्यात्मिक शोध कार्य में सम्मिलित हों !

साधक, पाठक, हितचिंतक, वास्तुशास्त्र के अध्येता एवं शोध कार्य करनेवालों से विनम्र निवेदन !

वर्तमान में अनेक लोग संतों के अनुभव से सिद्ध हुए ज्ञान की अपेक्षा वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से प्राप्त जानकारी पर अधिक विश्वास रखते हैं । उसके कारण वर्ष २०१४ से सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से आधुनिक वैज्ञानिक परिभाषा में अध्यात्म का महत्त्व विशद करने हेतु वैज्ञानिक स्तर पर शोधकार्य किया जा रहा है । ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल औरा स्कैनर)’, ‘पी.आई.पी.’ (पॉलीकॉन्ट्रास्ट इंटरफेरेंस फोटोग्राफी), ‘बायो-वेल जी.डी.वी.’ (Bio-well GDV) एवं ‘आर.एफ.आई. (रेजोनेंट फिल्ड इमेजिंग)’, इन आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों एवं प्रणालियों, साथ ही ‘पेंडुलम्’ (लोलक) की सहायता से नवीनतापूर्ण शोधकार्य किया जा रहा है । इसमें हिन्दू धर्म के आचार-पालन, यज्ञ, अनुष्ठान, मंत्रपाठ आदि धार्मिक कृत्यों; देश-विदेश के तीर्थस्थल, संतों के समाधिस्थल तथा संतों से संबंधित ऐतिहासिक स्थल; विभिन्न स्थानों की मिट्टी एवं जल; सात्त्विक संगीत, नृत्य, वाद्यवादन आदि कलाएं इत्यादि के माध्यम से किया जा रहा विविधांगी शोध कार्य अंतर्भूत है । इस शोध कार्य का पंचज्ञानेंद्रियों, मन एवं बुद्धि से परे ज्ञान अर्थात सूक्ष्म परीक्षण से जोडकर विश्लेषण किया जा रहा है । इसके कारण बुद्धिजीवी समाज के मन पर अध्यात्म का महत्त्व अंकित करने में सहायता मिल रही है । इस आध्यात्मिक शोधकार्य के कुछ विशेषतापूर्ण विषय आगे दिए हैं ।

१. ‘व्यक्ति की साधना का उसके द्वारा उपयोग की जानेवाली वस्तुओं पर कितना तथा कैसे परिणाम होता है ?’, इसका अध्ययन करना 

जब कोई व्यक्ति साधना करने लगता है, तब उसमें विद्यमान सत्त्व, रज एवं तम, इन गुणों के स्तर पर धीरे-धीरे परिवर्तन आने लगते हैं । जैसे-जैसे व्यक्ति की साधना बढती जाती है, वैसे-वैसे उसमें सात्त्विकता बढती जाती है तथा इसका सकारात्मक परिणाम उसकी देह, उसके द्वारा उपयोग की जानेवाली वस्तुओं, उसके वास्तु इत्यादि पर होता है तथा वे भी सात्त्विकता से भारित हो जाती हैं । व्यक्ति की साधना का उसके  द्वारा उपयोग की गई वस्तुओं पर जो परिणाम होता है, उसका अध्ययन करने हेतु सर्वसामान्य व्यक्ति, आध्यात्मिक कष्ट से पीडित साधक, आध्यात्मिक कष्टरहित साधक, ६० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त साधक एवं संतों द्वारा उपयोग की गई वस्तुएं, उदा. कक्ष में लगा पंखा, दीप, अलमारी, पलंग, पटल (टेबल) इत्यादि के संदर्भ में शोध कार्य करना ।

२. व्यक्ति के केश एवं नाखूनों के संदर्भ में शोध कार्य

व्यक्ति के केश एवं नाखूनों में भी उसके स्पंदन समाहित होते हैं । उसके कारण उसके केश एवं नाखूनों के संदर्भ में शोध कार्य करने से अध्यात्म के नए-नए पहलू उजागर होने में सहायता मिलती है । इसके लिए सर्वसामान्य व्यक्ति, आध्यात्मिक कष्ट से पीडित साधक, आध्यात्मिक कष्टरहित साधक, ६० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर के साधक तथा संतों के केश एवं नाखूनों के संदर्भ में शोध कार्य करना ।

३. व्यक्ति के अक्षरों के संबंध में शोधकार्य

व्यक्ति में विद्यमान सत्त्व, रज एवं तम, इन गुणों का परिणाम उसके अक्षरों पर होता है । साथ ही अच्छे अक्षर अथवा खराब अक्षर, व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध एवं अशुद्ध अक्षर, इनमें विद्यमान स्पंदन भी भिन्न-भिन्न होते हैं । जैसे-जैसे व्यक्ति की साधना बढती जाती है, वैसे-वैसे उसका सकारात्मक परिणाम उसके अक्षरों पर होने लगता है । आगे जाकर वह कैसे भी अक्षर लिखे, तब भी वो सात्त्विक ही होते हैं । इन सभी पहलुओं के संबंध में शोधकार्य करना ।

४. विभिन्न प्रकार के वास्तु पर शोध कार्य

हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा लिखित वास्तुशास्त्र के ग्रंथों में विभिन्न प्रकार के वास्तु का निर्माण कैसे करना चाहिए, इसका समग्र ज्ञान दिया गया है । कलियुग में वास्तुशास्त्रों के नियमों को अनदेखा कर अपनी इच्छा के अनुसार निर्माण-कार्य किया जाता है । इसके दुष्परिणाम उस वास्तु में रहनेवाले लोगों पर, साथ ही आस-पास के वातावरण पर भी होता है । समाज में इन वास्तुदोषों पर विभिन्न प्रकार के तात्कालिक उपाय खोजनेवाले, साथ ही उन्हें करनेवाले अनेक लोग हैं; परंतु सात्त्विकता की दृष्टि से वास्तु का अध्ययन करनेवाले अथवा उस संदर्भ में शोध कार्य करनेवाले कोई नहीं हैं । ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से निम्न विषयों पर इस प्रकार का शोधकार्य किया जा रहा है –

४ अ. अनेक तल्लों के भवनों के वास्तु से प्रक्षेपित स्पंदनों का अध्ययन : पहले की भांति एक तल्ला, दो तल्ला, तीन तल्ला भवन, साथ ही उससे अधिक तल्ले वाले विभिन्न भवन ।

४ आ. वास्तु में रहनेवाले व्यक्तियों का वास्तु पर आध्यात्मिक दृष्टि से होनेवाला परिणाम : वास्तु का व्यक्ति पर परिणाम होता है यह तो सर्वज्ञात है; परंतु व्यक्ति का भी (उसमें विद्यमान स्पंदनों का) वास्तु पर परिणाम होता है, इस विषय में समाज अनभिज्ञ है । सर्वसामान्य व्यक्ति, व्यावसायिक, राजनेता, साधक, संत इत्यादि विभिन्न व्यक्तियों के वास्तु का, उदा. संतों का आवास, आश्रम, साधकों का आवास, ‘हॉटल’ इत्यादि के संदर्भ में शोध कार्य करना ।

५. विभिन्न विषयों के ग्रंथों एवं पुस्तकों पर शोध कार्य

ग्रंथों एवं पुस्तकों से विशिष्ट प्रकार के स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं । उन्हें पढनेवालों पर इन स्पंदनों का परिणाम होता है । इस शोध कार्य के अंतर्गत वेद, महाभारत, दासबोध, कथा-उपन्यास, कविता एवं अन्य विभिन्न विषयों पर आधारित ग्रंथों एवं पुस्तकों के संबंध में शोध कार्य करना ।

आप अपनी रुचि, कौशल एवं उपलब्ध समय के अनुसार (पूर्णकालीन, अर्धकालीन अथवा कुछ महिनों तक) इन अभिनव शोध कार्य में सम्मिलित हो सकते हैं । इसके लिए जिलासेवक के माध्यम से निम्न सारणी के अनुसार अपनी जानकारी mav.research2014@gmail.com इस संगणकीय पते पर भेजें । साधक जिलासेवक के माध्यम से यह जानकारी भेजें ।

विश्व में कहीं भी अभी तक इस प्रकार के आध्यात्मिक दृष्टिकोण से शोध कार्य नहीं किया गया है । अतः इस अभिनव शोध कार्य में सम्मिलित हों !  


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कुम्भ पर्व की महिमा

(कुम्भ पर्व क्षेत्र एवं कुम्भ मेलों की विशेषताओं सहित)

 

कुम्भ मेला विश्व का सबसे बडा धार्मिक पर्व है । कुम्भ मेला हिन्दुओं के धार्मिक तथा सांस्कृतिक अमरत्व का प्रतीक है । कुम्भ मेला हिन्दू धर्म के अंतरंग का दर्शन कराता है ।

  • ऐसे कुम्भ पर्व की उत्पत्ति कैसे हुई ?
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