कुम्भ पर्व में साधु-संत जो ‘राजयोगी (शाही) स्नान’ करते हैं, उस पानी पर उसके आध्यात्मिक दृष्टि से क्या परिणाम होते हैं ?, इस संदर्भ में शोध कार्य !

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण से किया गया वैज्ञानिक परीक्षण

कुम्भ पर्व अत्यंत पुण्यकारी होने के कारण कुम्भ पर्व के समय प्रयाग, हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्वर-नासिक में स्नान करने से अनंत पुण्यलाभ मिलता है । इसीलिए करोडों श्रद्धालु एवं साधु-संत उस स्थान पर एकत्रित होते हैं । कुम्भ मेले में पर्व के दिन विभिन्न अखाडों के साधु-संतों द्वारा सुनिश्चित किए क्रम से स्वयं के अखाडे के सहसंतों एवं शिष्यों के साथ किए जानेवाले स्नान को ‘राजयोगी (शाही) स्नान’ कहते हैं ।

‘कुम्भ पर्व में साधु-संतों द्वारा ‘राजयोगी स्नान’ करने के उपरांत उस जल पर आध्यात्मिक दृष्टि से क्या परिणाम होते हैं ?’, इसका विज्ञान की दृष्टि से अध्ययन करने हेतु ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से एक परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के लिए ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण का उपयोग किया गया । उस उपकरण से वस्तु, वास्तु एवं व्यक्ति में विद्यमान सकारात्मक एवं नकारात्मक ऊर्जा की गणना की जाती है । इन परीक्षणों में प्राप्त परिणामों की प्रविष्टियां आगे दी हैं –

१. परीक्षण के परिणामों की प्रविष्टियों का विवेचन

यू.ए.एस. उपकण द्वारा परीक्षण करते समय, श्री. आशीष सावंत

इस परीक्षण में प्रयाग के पवित्र त्रिवेणी संगम के जल का निम्न ३ दिन ‘यू.ए.एस.’ उपकरण से परीक्षण किए गए ।

अ. राजयोगी स्नान से पूर्व  : १४.१.२०१९ को (मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व)

आ. पर्वकाल में साधु-संतों द्वारा त्रिवेणी संगम में राजयोगी स्नान करने के उपरांत : १५.१.२०१९ को (मकर संक्रांति के दिन)

इ. १७.१.२०१९ को (मकर संक्रांति के २ दिन उपरांत)

श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे

१ अ. प्रयाग के त्रिवेणी संगम के जल की प्रविष्टियां : प्रयाग के त्रिवेणी संगम के जल में नकारात्मक ऊर्जा नहीं पाई गई । त्रिवेणी संगम के जल में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा की प्रविष्टियां आगे दी गई हैं ।

उक्त सारणी से निम्न सूत्र ध्यान में आते हैं –

१ अ १. प्रयाग के त्रिवेणी संगम के जल में मूलतः ही चैतन्य का होना  : राजयोगी (शाही) स्नान के एक दिन पूर्व (१४.१.२०१९ को) त्रिवेणी संगम के जल में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा १.४ मीटर थी । प्रयाग क्षेत्र गंगा, यमुना एवं सरस्वती (यह नदी अदृश्य है) के पवित्र ‘त्रिवेणी संगम’ पर बसा तीर्थस्थल है । इस पवित्र संगम के कारण ही इस क्षेत्र को ‘प्रयागराज’ अथवा ‘तीर्थराज’ कहा गया है । जहां सात्त्विक नदियों का संगम होता है, उस स्थान के वातावरण में सात्त्विकता अधिक होती है ।

१ अ २. राजयोगी (शाही) स्नान के उपरांत त्रिवेणी संगम के जल में विद्यमान चैतन्य में वृद्धि होना : राजयोगी (शाही) स्नान के उपरांत पानी में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा १.५८ मीटर थी, इसका अर्थ है कि एक दिन पूर्व की तुलना में वह अधिक है । यह विशेषतापूर्ण है । राजयोगी स्नान के समय साधु-संतों से प्रक्षेपित चैतन्य के कारण त्रिवेणी संगम के जल के चैतन्य में वृद्धि हुई । इससे राजयोगी (शाही) स्नान का आध्यात्मिक महत्त्व ध्यान में आता है ।

१ अ ३. पर्वकाल में करोडों श्रद्धालुओं द्वारा स्नान करने के उपरांत भी त्रिवेणी संगम के जल में विद्यमान चैतन्य बने रहना : १७.१.२०१९ को त्रिवेणी संगम के जल में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल १.३५ मीटर था । गंगाजी परमपवित्र नदी है । पर्वकाल में करोडों श्रद्धालु गंगास्नान करते हैं, तब भी गंगाजी का जल प्रदूषित नहीं होता, उसके विपरीत उसकी पवित्रता टिकी रहती है । गंगाजी के जल में ईश्वरीय तत्त्व (चैतन्य) को आकृष्ट करने की क्षमता है । उसके कारण गंगाजी का जल सदैव ही पवित्र होता है ।’

– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा.