मंत्रोच्चारण, अग्निहोत्र, यज्ञ एवं साधना के द्वारा ही पर्यावरण का वास्तविक संतुलन बनाया रखा जा सकता है ! – शॉन क्लार्क

 

  • ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ एवं ‘स्पिरिच्युयल साइंस रिसर्च फाऊंडेशन’ की अेर से ‘संयुक्त राष्ट्रसंघ’ में ‘पर्यावरण में परिवर्तन’ के विषय पर शोध का प्रस्तुतिकरण ! 

  • महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के मार्गदर्शन में किया गया शोधकार्य संशोधन ! 

 

बाकू (अजरबइजान) – प्राचीन भारतीय शास्त्रों के अनुसार कालचक्र के अनुसार विश्व ऊपर-नीचे होता रहता है । रज-तमोगुण की प्रबलता बढने के कारण उसका नकारात्मक प्रभाव पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश इन पंचमहाभूतों पर पडता है । उसके फलस्वरूप पृथ्वी पर प्राकृतिक आपदाएं बढती हैं । इसके लिए विश्वस्तर पर केवल स्थूल उपायों के प्रयास ही किए जा रहे हैं; परंतु वे पर्याप्त नहीं हैं । उसके लिए आध्यात्मिक स्तर पर भी प्रयास होने अति आवश्यक हैं । मंत्रोच्चारण, अग्निहोत्र, यज्ञ, साधना आदि के द्वारा जीवन की तथा पर्यावरण की आध्यात्मिक शुद्धि हो सकती है तथा उसके द्वारा पर्यावरणाचे संतुलन बनाया रखा जा सकता है, ऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के श्री. शॉर्न क्लार्क ने किया ।

अजरबइजान की राजधानी बाकू में ‘संयुक्त राष्ट्रसंघ’ की अेर से आयोजित अंतरराष्ट्रीय परिषद ‘सीओपी २९’ में वे ऐसा बोल रहे थे । ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ एवं ‘स्पिरिच्युयल साइंस रिसर्च फाऊंडेशन’की ओर से परिषद में उपस्थित श्री. शॉर्न क्लार्क ने ‘सामाजिक सजगता के कारण क्या पर्यावरण ही हानि को अल्प किया जा सकता है ?’, इस विषय पर शोध का प्रस्तुतिकरण करते हुए यज्ञ के कुछ वीडियोज तथा छायाचित्र भी प्रस्तुत किए । यह शोधकार्य सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के मार्गदर्शन में किया गया है ।

श्री. शॉन क्लार्क ने आगे कहा कि,

१. आध्यात्मिक शुद्धता का अर्थात अर्थात् सात्त्विकता का पंचमहाभूतों पर परिणाम होता है, यह अब तक अनेक उदाहरणों से सिद्ध हुआ है । नियंत्रित वातावरण में किए गए एक प्रयोग में ‘मंत्रोच्चारण के कारण लौ की ऊंचाई बढती है’, ऐसा ध्यान में आया ।

२. दूसरा उदाहरण यह है कि मुंबई की दो सदनिकाओं से ली गई पानी से भरी हुई बोतलों के प्रभामंडल की ‘युनिवर्सल औरा स्कैनर’ से गणना की गई । जिस सदनिका में रहनेवाले नागरिक साधना (उपासना) कर रहे थे, उनके घर से ली गई पानी के बोतल का प्रभामंडल सकारात्मक तथा जिस सदनिका के नागरिक साधना नहीं करते थे, उनके घर से ली गई बोतल का प्रभामंडल नकारात्मक दिखाई दिया । इससे मानवीय आचरण का प्रभाव पंचमहाभूतों तथा वातावरण पर पडता है, यह ध्यान में आता है ।

३. वर्तमान में पृथ्वी पर पर्यावरण में आ रहे परिवर्तन ९८ टक्के चक्रिय (साइक्लिकल) परिवर्तनों के कारण आए हैं, जबकि केवल २ प्रतिशत मानवीय कारणों से आ रहे हैं । पैरिस में संपन्न परिषद में पर्यावरण में आ रहे परिवर्तनों के विषय में जो कुछ भी प्रारूप तथा अनुमान लगाए गए थे, उससे कहीं अधिक गति से तथा तीव्रता से पर्यावरण की हानि होती हुई दिखाई दे रही है । वर्ष २००६ में ही इस विषय पर शोधकार्य करनेवाले ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ने ‘पर्यावरण की इस तीव्र हानि का कारण केवल स्थूल नहीं है, अपितु आध्यात्मिक भी है’, ऐसा अनुमान निकाला गया था ।

वातावरण में आ रहे परिवर्तनों की तीव्रता क्षीण करने का ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’का प्रयास विशेष प्रशंसनीय !

‘सीओपी २९’ परिषद में ‘प्राचीन भारतीय शास्त्रों पर आधारित आध्यात्मिक सूत्रों की सहायता से वातावरण में आनेवाले परिवर्तनों की तीव्रता क्षीण करने का ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’का यह प्रयास विशेष प्रशंसनीय है ।’, ऐसा मत ‘आई.एस्.ओ.एन्’ के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी श्री. संतोष गुप्ता तथा पर्यावरण विशेषज्ञ ‘कर्मा लेकलैंड’ के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी श्री. आश्वनी खुराना ने व्यक्त किया ।

विगत ८ वर्षाें में ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ ने २० राष्ट्रीय तथा ९६ अंतरराष्ट्रीय विज्ञान परिषदों में शोधनिबंध प्रस्तुत किए हैं । इनमें से १४ अंतरराष्ट्रीय विज्ञान परिषदों में विश्वविद्यालय को ‘उत्कृष्ट प्रस्तुतिकरण’ के पुरस्कार प्राप्त हुए हैं ।