संतों के छायाचित्रमय (फोटोवाला) जीवनचरित्र से संबंधित ग्रंथों का महत्त्व रेखांकित करनेवाला महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय का शोध !
‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की संपूर्ण जीवनयात्रा उजागर करनेवाले छायाचित्रमय जीवनदर्शन भाग १ से ६, ये सभी ग्रंथ अप्रतिम हैं । इन ग्रंथों को हाथ में लेने से अथवा उनकी ओर देखकर ही बहुत चैतन्य प्रतीत होता है । इन ग्रंथों को पढते समय साधक भावविभोर हो जाते हैं तथा भावविश्व में रम जाते हैं । अनेक लोगों ने इन ग्रंथों में प्रकाशित छायाचित्रों एवं लेखों से प्रचुर मात्रा में चैतन्य प्रक्षेपित होने की अनुभूति की है ।
‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के छायाचित्रमय जीवनदर्शन’ ग्रंथ के संदर्भ में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण तथा पेंडुलम का उपयोग कर शोध किया गया । ‘यू.ए.एस.’ उपकरण तथा पेंडुलम का उपयोग कर वस्तु, वास्तु तथा व्यक्ति में विद्यमान नकारात्मक एवं सकारात्मक ऊर्जा की गणना की जा सकती है । इस शोध का विवरण आगे दिया है –
१. ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के छायाचित्रमय जीवनदर्शन’ग्रंथों में प्रचुर मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा (चैतन्य) होना
इस परीक्षण में ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का छायाचित्रमय जीवनदर्शन’ भाग १ से ६, इन ग्रंथों का तथा तुलनात्मक दृष्टि से समाज के वैसे ही एक ग्रंथ का ‘यू.ए.एस.’ उपकरण का उपयोग कर परीक्षण किया गया । उसकी प्रविष्टियां आगे दी हैं –
टिप्पणी – छायाचित्रमय जीवनदर्शन भाग १ से ६ ग्रंथों में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल २३३७ मीटर से अधिक है; परंतु उसकी अचूक गणना करने में परीक्षण स्थल की भूमि अधूरी सिद्ध हुई । इसलिए उसकी अचूक गणना हेतु पेण्डुलम का उपयोग किया गया ।
टिप्पणी १ – ‘ऑरा स्कैनर’ ने १४० अंश (डिग्री) का कोण बनाया । ‘ऑरा स्कैनर’ यदि १८० अंश (डिग्री) का कोण बनाए, तभी प्रभामंडल की गणना की जा सकती है ।
उक्त प्रविष्टियों से निम्न सूत्र ध्यान में आते हैं –
अ. तुलना हेतु लिए गए समाज के एक संत के ग्रंथ में अधिक मात्रा में नकारात्मक ऊर्जा तथा अल्प मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा है ।
आ. ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का छायाचित्रमय जीवनदर्शन’ भाग १ से ६, इन ग्रंथों में लेशमात्र भी नकारात्मक ऊर्जा नहीं है; अपितु उत्तरोत्तर अधिक मात्रा में बढनेवाली सकारात्मक ऊर्जा है । इन ग्रंथों के मुखपृष्ठों की अपेक्षा उनके अंतिम आवरण पृष्ठों में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा का स्तर अधिक है तथा ग्रंथों के अंदर के पृष्ठों में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा का स्तर उससे भी अधिक है; जो विशेषतापूर्ण है । इसका कारण यह है कि ग्रंथों के मुखपृष्ठों से सगुण, अंतिम आवरण पृष्ठों से सगुण-निर्गुण तथा ग्रंथ के अंदर के पृष्ठों से निर्गुण-सगुण स्तर के स्पंदन प्रक्षेपित हो रहे हैं । सगुण, सगुण-निर्गुण एवं निर्गुण-सगुण स्तर के स्पंदन अधिकाधिक सूक्ष्म होने से वे अधिक प्रभावशाली हैं ।
२. ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का छायाचित्रमय जीवनदर्शन’ ग्रंथों में प्रचुर मात्रा में चैतन्य होने का कारण
किसी ग्रंथ से प्रक्षेपित होनेवाले स्पंदन विभिन्न घटकों पर निर्भर होते हैं । उदा. ग्रंथ लिखने का उद्देश्य, ग्रंथ का विषय तथा उसकी रचना, ग्रंथ की भाषा एवं लिपी, लेख का व्याकरण एवं संकलन, लेख का आध्यात्मिक स्तर उसे आध्यात्मिक कष्ट होना अथवा न होना, ग्रंथ-निर्मिति से संबंधित विभिन्न स्तरों पर की जानेवाली कृतियां, उदा. मुद्रितशोधन, संरचना, मुखपृष्ठ एवं अंतिम आवरण पृष्ठ की संकल्पना तथा उनपर प्रकाशित चित्र एवं लेख इत्यादि । संक्षेप में कहा जाए, तो ये सभी घटक जितने सात्त्विक होंगे, उस ग्रंथ से सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होने का स्तर उतना ही अधिक होता है । परीक्षण में प्राप्त परिणामों से ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का छायाचित्रमय जीवनदर्शन’ ग्रंथों में कितनी प्रचुर मात्रा में चैतन्य (सकारात्मक ऊर्जा) कार्यरत है, यह ध्यान में आता है । इन चैतन्यमय ग्रंथों का वाचन करते समय साधकों एवं पाठकों के मन एवं बुद्धि पर बहुत सकारात्मक परिणाम होते हैं, साथ ही उन्हें उनके भाव के अनुसार ग्रंथों के संदर्भ में आध्यात्मिक अनुभूतियां भी होती हैं । परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का छायाचित्रमय जीवनदर्शन ग्रंथ’ साधकों के लिए, साथ ही आनेवाली अनेक पीढियों के लिए चैतन्य के अखंड स्रोत हैं ।’
– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा (४.६.२०२४)
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