गुरुपूर्णिमा निमित्त सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणिया श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी का शुभ संदेश !

गुरु को व्यापक धर्मकार्य प्रिय है । वह लगन से करना सच्ची ‘गुरुभक्ति’ है । यह कार्य करते समय कोई भी संदेह न रखना सच्ची गुरुनिष्ठा है एवं ‘यह धर्मकार्य परिपूर्ण करने से मेरी आत्मोन्नति निश्चित ही होगी’, यही ‘गुरु के प्रति’ श्रद्धा है ! इसीलिए गुरुपूर्णिमा से श्री गुरु के प्रति निष्ठा, श्रद्धा एवं भक्ति बढाएं ।

दिव्य कार्य करें दिव्य विभूति । आइए देखें वे क्षणमोती !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने प्रत्येक कार्य पहले स्वयं किया तथा उनकी बारीकियों का अध्ययन किया है । कार्य सूत्रबद्ध होने के लिए कार्यपद्धतियां बनाईं तथा तत्पश्चात ही वह साधकों को सिखाया । इसलिए अनेक साधक विविध क्षेत्रों में कार्य करने हेतु तैयार हो गए हैं । दिव्य कार्य दिव्य विभूतियों के हाथों से ही होता है । इस दिव्य कार्य के छायाचित्र स्वरूप में कुछ क्षणमोती यहां दिए हैं ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी द्वारा अध्यात्म-क्षेत्र में किया गया कार्य !

अध्यात्मप्रसार के कार्य की व्यापकता बढने के उपरांत परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने २३.३.१९९९ को सनातन संस्था की स्थापना की । सनातन संस्था का उद्देश्य है वैज्ञानिक परिभाषा में हिन्दू धर्म के अध्यात्मशास्त्र का प्रसार कर धर्मशिक्षा देना

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा साधकों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति हेतु ‘गुरुकृपायोग’ साधनामार्ग की निर्मिति

कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग इत्यादि जिस किसी भी मार्ग से साधना करें, तब भी ईश्वरप्राप्ति हेतु गुरुकृपा के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है । शीघ्र गुरुप्राप्ति हेतु तथा गुरुकृपा निरंतर होने हेतु परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने ‘गुरुकृपायोग’ नामक सरल साधनामार्ग बताया है ।

श्रीविष्णु के अवतार सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के जन्मोत्सव के दिन पंढरपुर से रामनाथी आश्रम में लाई कुछ वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाई जाना तथा उसी दिन पंढरपुर के श्री विठ्ठल मंदिर के तहखाने में श्रीविष्णु बालाजी की मूर्ति मिलना

इस घटना के माध्यम से मानो साक्षात भगवान ही यह बता रहे हैं, ‘सनातन संस्था के साधकों को प्राप्त मोक्षगुरु सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी प्रत्यक्ष श्रीमन्नारायणस्वरूप ही हैं । वे ही श्रीविष्णु के अवतार हैं ।

मेरे द्वारा अनुभव किए गए, अत्यधिक गुणवान एवं अन्यों को अपने समान बनानेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी !

प.पू. डॉक्टरजी मेरे जीवन में आए और मुझे जीवन का ध्येय समझ में आया तथा उनकी कृपा से मुझे वहां साधना एवं सेवा करने का अवसर मिला । मेरी साधना के प्रारंभिक काल में उन्होंने मुझे व्यवहार एवं साधना की प्रत्यक्ष सीख प्रदान कर तैयार किया ।

‘आध्यात्मिक मानवतावाद एवं अंतरधर्मीय सुसंवाद’ के प्रवर्तक स्वामी श्री. आनंद कृष्णा का इंडोनेशिया में स्थित सात्त्विक आश्रम तथा उनके साधक !

स्वामी श्री. आनंद कृष्णा सिंधी वंश के हैं तथा इंडोनेशिया उनका जन्मस्थल है । वे इंडोनेशिया के ‘आध्यात्मिक मानवतावाद, साथ ही अंतरधर्मीय सुसंवाद’ के प्रवर्तक हैं । उन्होंने प्रचुर लेखनकार्य भी किया है ।

बांग्लादेश के हिन्दुओं की रक्षा हेतु धर्मनिष्ठता तथा अपनी लडाकू वृत्ति के कारण निरंतर लडनेवाले पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोषजी !

सनातन संस्था के धर्मप्रचारक श्री. अभय वर्तक एवं साधक श्री. गिरीश पुजारी ने पू. घोषजी से सद्भावना भेंट की । बीमार पू. घोषजी के साथ किए वार्तालाप में बांग्लादेश के हिन्दुओं की रक्षा हेतु जागृत उनकी जाज्ज्वल्य लगन दिखाई दी । यही सच्ची धर्मनिष्ठता तथा लडाकूवृत्ति है ।

अनेक शारीरिक कष्ट होते हुए भी लगन के साथ हिन्दुत्व का कार्य करनेवाले वाराणसी व्यापार संगठन के अध्यक्ष श्री. अजीत सिंह बग्गा ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर जन्म-मृत्यु के चक्र से हुए मुक्त !

श्री. बग्गा कर्मयोगी हैं । समाज की ओर निरपेक्ष भाव से देखना, उनकी भक्ति का उदाहरण है । उनमें अहं अल्प होने के कारण ही वे निरपेक्ष भाव से समाज एवं राष्ट्र हेतु कार्य करते हैं ।

‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति हमें अंतिम सांस तक कृतज्ञ रहना चाहिए !’ – श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी

‘शब्दों का अस्तित्व जहां समाप्त होता है, वही ‘कृतज्ञता है !’ हम ‘भाव’ को शब्दों में बांध सकते हैं । उसे व्यक्त भी किया जा सकता है; परंतु कृतज्ञता शब्दों के परे है, इसलिए वह भाव से भी उच्च  है