पितृपक्ष में महालय श्राद्ध कर पितरों का आशीर्वाद प्राप्‍त करें !

श्राद्धविधि करने से पितृदोष के कारण साधना में आनेवाली बाधाएं दूर होकर साधना में सहायता मिलती है । ‘सभी पूर्वज संतुष्‍ट हों और साधना के लिए उनके आशीर्वाद मिलें’, इसके लिए पितृपक्ष में महालय श्राद्ध करना चाहिए ।

साधको, दुर्घटना से रक्षा होने हेतु प्रतिदिन नामजप आदि उपाय करें !

‘सनातन का राष्‍ट्र एवं धर्म जागृति के कार्य जैसे जैसे बढ रहे हैं, वैसे वैसे इन कार्यों में बाधा लाने हेतु अनिष्ट शक्‍तियां बडी मात्रा में कार्यरत हुई हैं ।

साधको, सकारात्मकता के महत्त्व को समझो तथा उसके लिए प्रयास कर सभी प्रकार की समस्याओं पर विजय प्राप्त करने हेतु सक्षम बनो !

सकारात्मक व्यक्ति का मन आनंदित एवं उत्साहित होने के कारण उसका शरीर उसे उतनी ही सकारात्मकता से उसका साथ देता है । किसी भी प्रकार के संकटों अथवा शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से वह व्यक्ति बडी सहजता से बाहर निकल जाता है

साधकों, स्वयं की सेवाओं के दायित्ववाले साधकों को समझ लें !

दायित्ववाले साधकों ने यदि हमें बताई गई सेवाओं की समीक्षा की तथा साधना के प्रयासों के विषय में हमें निरंतर बताया, तो हमने इन सभी बातों को साधना की दृष्टि से स्वीकार कर उस दिशा में प्रयास किए, तो हमारी ही आध्यात्मिक प्रगति शीघ्र होगी ।

भगवान श्रीकृष्ण की अष्टनायिकाएं

भगवान श्रीकृष्‍ण की अष्‍टनायिकाएं तथा उनके बच्चे तो एक फलाफूला गोकुल था । भगवान श्रीकृष्‍ण तथा उनकी अष्टनायिकाओं को कुल ८० पुत्र तथा ६ पुत्रिया थीं ।

परिपूर्ण सेवा लगन से करनेवाले हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. श्रीराम लुकतुके ने प्राप्त किया ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर !

समिति के साधकों के लिए आयोजित कार्यक्रम में श्री. लुकतुके ने समिति के कार्य से संबंधित अनुभव विशद किए । तदनंतर सद्गुरु पिंगळेजी ने यह आनंद-समाचार सभी को सुनाया ।

लगन से सेवा करनेवाली मथुरा सेवाकेंद्र की सनातन की साधिका कु. मनीषा माहुर (आयु २९ वर्ष) ने प्राप्त किया ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर !

‘समष्टि में श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी जैसी बनने का लक्ष्य रखकर प्रयास करनेवाली कु. मनीषा माहुर !

कोटि-कोटि प्रणाम !

५ अगस्त को हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु चारुदत्त पिंगळेजी का ५७ वां जन्मदिन

नाथपंथी तत्त्वज्ञान से होते हैं सामाजिक समरसता के दर्शन !

नाथपंथी साधना-उपासना से आनंद की प्राप्ति कर लें । नाथ आज भी सम्मेलनों के माध्यम से संवाद कर रहे हैं यही इस संप्रदाय की विशेषता है ! संजीवन समाधि लेकर भी नाथ कार्यरत हैं, इसका यह प्रतीक है ! अवधूत अवस्था में होने के कारण उनके कार्य की कक्षा बढने की यह प्रत्यक्षानुभूति है !