पूर्णत्व को प्राप्त महान संत प.पू. भक्तराज महाराजजी के सत्संग का मिला सौभाग्य !

प.पू. भक्तराज महाराज (प.पू. बाबा) समान पूर्णत्व को पहुंचे महान संत के सत्संग का सौभाग्य पू. शिवाजी वटकरजी को मिला । इन सत्संगों में पू. वटकरजी को सीखने के लिए मिले सूत्र और हुई अनुभूतियां उन्होंने कृतज्ञभाव से यहां प्रस्तुत की हैं ।

चैतन्य का वर्षाव करनेवाली प.पू. भक्तराज महाराजजी की गाडी के विषय में हुई अनुभूतियां !

‘देवद आश्रम में प.पू. भक्तराज महाराज (प.पू. बाबा) द्वारा उपयोग में लाया ‘रथ’ (गाडी) है । प.पू. बाबा का रथ, देवद आश्रम के साधकों के लिए चैतन्य का वर्षाव ही है । प.पू. बाबा भले ही अब स्थूल से नहीं हैं, तब भी ‘वे रथ के माध्यम से स्थूल से भी हैं’, ऐसी अनुभूति अनेक साधकों को हो रही है ।

‘संयम रखकर सफलता की प्रतीक्षा करना’ तपस्या ही है !

आज की अंधकारभरी रात के गर्भ में ही कल का उषःकाल छिपा होता है । हमने यदि दृढतापूर्वक उस उषःकाल की प्रतीक्षा की, तभी जाकर हमें साधना के आगे के प्रयासों का भी मार्ग दिखाई देने लगता है । अतः साधक श्रद्धा एवं संयम रखकर साधना में अग्रसर रहें ।

व्यवसाय करते हुए साधना में संतपद प्राप्त करनेवाले कतरास, झारखंड के सफल उद्योगपति एवं सनातन संस्था के ७३ वें (समष्टि) संत पू. प्रदीप खेमकाजी (आयु ६४ वर्ष) !

कतरास, झारखंड के सफल उद्योगपति एवं सनातन संस्था के ७३ वें (समष्टि) संत पू. प्रदीप खेमकाजी से सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर (आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत) द्वारा उनकी साधना से संबंधित सुसंवाद एवं उनकी साधना यात्रा आगे दी है ।

साधक श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का इसी नाम से उल्लेख करें !

सनातन के साधक सप्तर्षियों का आज्ञापालन कर यदि ‘श्रीसत्शक्ति’ एवं ‘श्रीचित्‌शक्ति’, इन शब्दों का उच्चारण करेंगे, तो जिस प्रकार ‘शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध एवं उनसे संबंधित शक्तियां एकत्र होती हैं’, इस अध्यात्म के सिद्धांत के अनुसार उन शब्दों से दैवी शक्ति कार्यरत होकर वह साधकों को मिलेगी ।

कलियुग की सर्वश्रेष्ठ नामजप साधना, नामजप की वाणियां एवं ध्वनि-प्रकाश विज्ञान

आधुनिक विज्ञान भले ही इस बात से अनभिज्ञ हो; परंतु अध्यात्मशास्त्र ने मनुष्य की ४ देह बताई हैं । इन ४ देहों की वैखरी, मध्यमा, परा एवं पश्यंति, ये ४ वाणियां बढते क्रम में उच्च कोटि की बनती जाती है ।

साधको, ‘उचित विचार प्रक्रिया के साथ परिपूर्ण कृति करना’ साधना का समीकरण है, अतः उसके अनुरूप प्रयास कर साधना में निहित शुद्ध आनंद अनुभव करें !

साधको, ‘हमारा प्रत्येक कृत्य एवं उसके पीछे के विचार की ओर भगवान की दृष्टि है’, इसे ध्यान में लेकर निष्ठापूर्वक  साधना करें !’

सनातन संस्था की ओर से राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में युवा शिविर संपन्न !

युवकों को साधना एवं अध्यात्मशास्त्र की जानकारी मिले, उनके व्यक्तित्व एवं कौशल का विकास हो; इसके लिए यहां के ३ शहरों में सनातन संस्था की ओर से ‘युवा साधना एवं कौशल विकास शिविर’ का आयोजन किया गया ।

‘साधना की (ईश्वर के लिए कुछ किया) तथा उससे हानि हुई’, क्या विश्व में ऐसा एक भी उदाहरण है ?

यदि प्रत्येक व्यक्ति को धर्मशिक्षा दी गई, तो ‘जीवन की सार्थकता का क्या अर्थ है ?’, यह ज्ञात होने पर व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र का उत्थान हो सकता है !

श्रीकृष्ण के आंतरिक सान्निध्य में रहनेवालीं रत्नागिरी की श्रीमती विजया पानवळकर सनातन के १२६ वें संतपद पर हुईं विराजमान !

साधना में निरंतरता, दृृढता तथा श्रीकृष्ण के निरंतर आंतरिक सान्निध्य में रहनेवालीं यहां की सनातन की साधिका श्रीमती विजया वसंत पानवळकर (आयु ८४ वर्ष) सनातन के १२६ वें संतपद पर विराजमान हुईं ।