साधको, दुर्घटना से रक्षा होने हेतु प्रतिदिन नामजप आदि उपाय करें !

साधकों को सूचना

(सद़्‍गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ

‘सनातन का राष्‍ट्र एवं धर्म जागृति के कार्य जैसे जैसे बढ रहे हैं, वैसे वैसे इन कार्यों में बाधा लाने हेतु अनिष्ट शक्‍तियां बडी मात्रा में कार्यरत हुई हैं । ये अनिष्ट शक्‍तियां साधना एवं समष्‍टि सेवा करनेवाले साधकों को शारीरिक, मानसिक एवं आध्‍यात्मिक; इस प्रकार तीनों स्‍तर पर कष्ट देने का प्रयास कर रही हैं । इन कष्टों में से एक है, पिछले कुछ दिनों से साधकों के साथ दुर्घटनाएं होने की मात्रा बढी है, उदा. वाहन चलाते समय फिसलकर गिरने से चोट लगना, प्रसाधनगृह अथवा अन्‍यत्र पैर फिसलकर गिरने से अस्‍थिभंग होना अथवा घायल होना आदि प्रकार के कष्ट के कारण साधकों को अनेक दिन विश्राम करना पड रहा है । इस कारण उन्हें गुरुकार्य करने में बाधाएं आ रही हैं । अनिष्ट शक्‍तियां साधकों को कष्ट देने के चाहे कितने भी प्रयास कर लें, तब भी अनिष्ट शक्‍तियों की अपेक्षा ईश्‍वर अनंत गुना सामर्थ्‍यवान हैं । इसलिए वे साधकों की रक्षा करेंगे ही । परंतु साधकों को अनिष्ट शक्‍तियों के आक्रमणों से बचने हेतु साधना एवं आध्‍यात्मिक स्‍तर के उपाय में वृद्धि करना अत्‍यावश्‍यक है ।

भिन्न प्रकार की दुर्घटनाओं से रक्षा होने हेतु साधकों को उपास्‍य देवता की प्रार्थना करनी चाहिए एवं व्यक्तिगत नामजप के साथ ही आगे दिया गया नामजप करें ।

१. नामजप : महाशून्‍य

२. न्‍यास : होठों के सामने १ – २ सें.मी. दूरी पर दाएं हाथ की हथेली रखना

३. कालावधि : १ माह प्रतिदिन १ घंटा

सभी साधकों को उपरोक्त नामजप १ माह प्रतिदिन १ घंटा करने पर उसके परिणाम का ब्योरा लिया जाएगा एवं ‘आगे यही नामजप जारी रखना है, अथवा अन्य ?’, वह निश्चित कर साधकों को पुनः सूचना दी जाएगी ।’

– (सद़्‍गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, पीएच.डी., महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय, गोवा. (२.८.२०२४)

बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्तियों से हो रही पीडा के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपचार वेदादि धर्मग्रंथों में वर्णित हैं ।