‘भगवान श्रीकृष्ण की अष्टनायिकाएं तथा उनके बच्चे तो एक फलाफूला गोकुल था । भगवान श्रीकृष्ण तथा उनकी अष्टनायिकाओं को कुल ८० पुत्र तथा ६ पुत्रिया थीं । २६ अगस्त को ‘श्रीकृष्ण जन्माष्टमी’ के उपलक्ष्य में श्रीकृष्ण की अष्टनायिकाओं की जानकारी दे रहे हैं ।’
१. रुक्मिणी
ये विदर्भ देश की राजकन्या थीं एवं कुंडिणपुर के राजा भीष्मक की पुत्री ! उनका भाई रुक्मी जरासंध के पक्ष का था । शिशुपाल रुक्मि का निकट मित्र था । उसने भगिनी रुक्मिणी का शिशुपाल के साथ विवाह करने की ठान ली थी । रुक्मिणी को वह पसंद नहीं था । उन्होंने मन ही मन श्रीकृष्ण को अपना लिया था । उन्होंने सुदेव नामक विश्वसनीय ब्राह्मण के हाथों श्रीकृष्ण को पत्र भेजा । श्रीकृष्ण ने सभी के सामने रुक्मिणी का हरण कर
लिया । उसके उपरांत दोनों का यथोचित विवाह संपन्न हुआ । रुक्मिणी श्रीकृष्ण की पटरानी थीं । उनसे प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, सुदेष्ण, चारुदेह, सुचारु, चारुगुप्त, भद्रचारु, चारुचंद्र, विचारू एवं चारु, इस प्रकार १० पुत्र तथा चारुमति नामक कन्या, ऐसे कुल ११ बच्चे थे ।
२. जांबवती
ऋक्षराज जांबवत की पुत्री थी । वह बहुत सुंदर थी । ऋक्षराज एवं श्रीकृष्ण के मध्य ‘स्वयंतक’ मणि के लिए २८ दिनों तक युद्ध हुआ, जिसमें ऋक्षराज पराजित हुआ । उसने स्वयंतक मणि तथा अपनी पुत्री श्रीकृष्ण को दे दी । उसे सांब, सुमित्र, पुरुजीत, शतजीत, सहस्रजीत, विजय, चित्रकेतु, वसुमत, द्रविड एवं ऋतु, ये १० पुत्र तथा एक पुत्री थी । श्रीकृष्ण के देहोत्सर्ग (देहत्याग) का ज्ञात होते ही उसने अग्निप्रवेश किया ।
३. सत्यभामा
‘स्वयंतक’ मणि के स्वामी राजा सत्राजीत ने श्रीकृष्ण पर मणि चुराने का आरोप लगाया; परंतु आगे जाकर श्रीकृष्ण के निर्दाेष सिद्ध होने पर उसने उसकी सुंदर एवं गुणी पुत्री सत्यभामा श्रीकृष्ण को दी । श्रीकृष्ण ने उसकी सहायता से नरकासुर का वध किया तथा उसके लिए नंदनवन से हरसिंगार वृक्ष लेकर आएा । उसे भानु, सुभानु, स्वभानु, प्रभानु, भानुमत, चंद्रभानु, बृहद्भानु, अतिभानु, श्रीभानु, प्रतिभानु जैसे पुत्र तथा सौभरिका, ताम्रपर्णी एवं जरंधरा, ये ३ पुत्रियां मिलकर १३ बच्चे थे ।
४. कालिंदी
यह पूर्वजन्म में सूर्यकन्या थी । उसने यमुनातट पर श्रीकृष्ण की प्राप्ति हेतु कठोर तप किया । श्रीकृष्ण पांडवों से मिलने इंद्रप्रस्थ गए हुए थे । लौटते समय श्रीकृष्ण से उसकी भेंट हुई । उसका मनोदय जानकर श्रीकृष्ण ने उसके साथ विवाह किया । उसे श्रुत, कवी, वृष, वीर, सुबाह, भद्र, शांति, दर्श, पूर्णमास एवं सोमक, ये १० पुत्र हुए ।
५. मित्रविंदा
यह अवंती देश के राजा जयसेन तथा श्रीकृष्ण की बुआ राजाधिदेवी की पुत्री थी ! श्रीकृष्ण ने उसके स्वयंवर में आकर मित्रविंद का हरण कर उससे विवाह किया । उसे वृक, हर्ष, अनिल, गृध्र, वर्धन, उन्नाद, महाश, पावन, वंही, क्षुधि ये १० पुत्र थे ।
६. सत्या
यह कोसल देश के नग्नजित राजा की पुत्री थी ! विवाहयोग्य होने पर नग्नजित ने उसका भी स्वयंवर रचा । ७ मदोन्मत्त बैलों के लगाम लगाकर उनसे जो हल चलाएगा, उस वीर को सत्या देने की ‘परीक्षा’ थी । श्रीकृष्ण ने यह परीक्षा जीत ली । सत्या ने श्रीकृष्ण के गले में वरमाला पहनाई । उसे वीर, चंद्र, अश्वसेन, चित्रगु, वेगवत, वृष, आम, शंकु, वसु, कुंती जैसे १० पुत्र थे ।
७. भद्रा
वसुदेव की बहन श्रुतकीर्ति को कैकय देश के राजा धृष्टकेतु को दे दिया गया था । उन्हें भद्रा नाम की पुत्री हुई । श्रीकृष्ण की बुआ ने अपने भांजे से उसका विवाह करा दिया । इसे संग्रामजीत, बृहत्सेन, शूर, प्रहरण, अरिजित, जय, सुभद्रा, वाम, आयु एवं सत्यक नाम के १० पुत्र तथा १ पुत्री थी ।
८. लक्ष्मणा (लक्षणा)
यह मद्रदेश के राजा की पुत्री थी ! उसके विवाहयोग्य होते ही राजा ने उसका स्वयंवर रचा । उसमें मत्स्ययंत्र का भेद करने की ‘परीक्षा’ थी । इस स्वयंवर में जरासंध, शिशुपाल, भीम, अर्जुन, दुर्योधन, कर्ण एवं अंबष्ट जैसे महारथी प्रतियोगी थे । सभी ने प्रयास किया; परंतु किसी को सफलता नहीं मिली । केवल अर्जुन का बाण ही मत्स्य का स्पर्श कर पाया । श्रीकृष्ण ने मत्स्ययंत्र को भेद कर ‘परीक्षा’ जीती तथा वरमाला श्रीकृष्ण के गले में पडी । राजा ने बडे थाट-बाट से विवाह संपन्न किया । उसे प्रघोष, गात्रवत, सिंह, बल, प्रबल, उर्ध्वग, महाशक्ति, सह, ओज एवं अपराजित ये १० पुत्र थे ।
– श्री. दा. वि. कुलकर्णी (साभार : मासिक ‘धार्मिक’)