राधा कौन है ?

१. श्रीकृष्‍ण से संबंधित २ प्रमाणभूत ग्रंथों में ‘राधा’ के नाम का उल्लेख न होना

श्रीकृष्‍ण का सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन अलौकिक, अद़्‍भुत एवं आदर्श था । श्रीकृष्‍ण के जीवनचरित्र में ‘श्रीकृष्‍ण-राधा’ की इस कथा को अत्यंत विकृत स्वरूप में रखकर श्रीकृष्ण का अनादर करने का प्रयास किया गया है’, ऐसा कहना अनुचित नहीं है । कुछ लोगों ने कहा है, ‘राधा श्रीकृष्‍ण की बहन थीं’ । कुछ लोग कहते हैं, ‘श्रीकृष्‍ण ने राधा से विवाह किया था’, तो कुछ लोग कहते हैं, ‘राधा विवाहित थीं; परंतु श्रीकृष्‍ण से उनका संबंध था ।’ कुछ लोग उनकी दास्यभक्ति का वर्णन कर श्रीकृष्‍ण की दास्यभक्ति करनेवाली राधा को ‘सर्वोच्‍च’ स्‍थान पर विराजमान होने की बात कहते हैं । कुछ लोगों ने ‘राधा’ शब्द की संधि करते हुए कहा, ‘रा’ का अर्थ है ‘रास’, जबकि ‘धा’ का अर्थ है ‘दौडना’ । इसका अर्थ ‘रासलीला हेतु निमंत्रण मिलते ही, जो दौडी चली जाती है, उसे ‘राधा’ कहते हैं । ऐसी कथाओं के कारण सर्वसामान्य लोगों के मन में, ‘श्रीकृष्‍ण राधा के बिना अधूरे हैं’, यह धारणा उत्पन्न हुई ।

‘हरिवंशपुराण’, यह श्रीकृष्ण का जीवनचरित्र बतानेवाला प्रमाणभूत ग्रंथ है । इस ग्रंथ में कहीं पर भी ‘राधा’ नाम का उल्लेख नहीं है । श्रीकृष्‍ण के सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन का दर्शन करानेवाला प्रमाणभूत ग्रंथ है ‘महाभारत’ ! इस ग्रंथ में भी कहीं पर भी राधा का उल्लेख नहीं मिलता ।

२. ‘राधा’ एक स्‍त्री नहीं, ‘राधा’ ‘भगवान की शक्ति’ है !

भगवान ‘चेतना’ हैं, जबकि राधा ‘प्रकृति’ हैं । प्रकृति ही शक्ति है ! वह विश्व को उत्पन्न करती है । इसलिए विश्व पर प्रकृति की सत्ता है, भगवान की नहीं ! जिसकी सत्ता होती है, सभी लोग पहले उसे ही नमस्कार करते हैं; इसलिए पहले राधा का तथा उसके पश्चात श्रीकृष्‍ण का उल्लेख किया जाता है । इसलिए ‘राधाकृष्‍ण’ शब्‍द का प्रयोग प्रचलित हुआ । कोई भी ‘कृष्‍णराधा’, ऐसा नहीं बोलते ।

कुछ पुराणों में राधा का जो उल्लेख मिलता है, उसे एक रूपक के रूप में किया गया होगा । राधा को उत्‍कट प्रेम-भक्ति का प्रतीक (रूपक) माना गया । श्रीकृष्‍ण एवं राधा के रूप में प्रेम एवं भक्ति का जो संगम हुआ है, इसीलिए जानकारों ने भगवान के मुख में ‘मेरे स्वरूप का आधा अंग राधा है’, ऐसा वक्तव्य डाल दिया है ।

‘ब्रह्मवैवर्त’ पुराण में हमें राधा-कृष्‍ण के विवाह का वर्णन करनेवाले श्लोक मिलते हैं । पुराणकारों ने प्रेमभक्ति की महिमा बढाने के लिए ही राधा के चरित्र की रचना की । इसमें हमें राधा का अर्थ ‘ईश्वर की शक्ति’, ऐसा लेना है । हमने यदि अर्थ जान लिया, तो ‘राधा एवं कृष्‍ण का परस्पर क्या संबंध है ?’, यह हमारे ध्यान में आएगा । उसी प्रकार से कहीं-कहीं राधा एवं श्रीकृष्ण के संबंध का विकृत पद्धति से जो वर्णन किया गया है, उसकी सहजता से अनदेखी की जा सकती है ।

संक्षेप में कहा जाए, तो ‘राधा’ किसी स्‍त्री का नाम नहीं है । राधा नामक स्त्री का कभी भी कोई अस्तित्व नहीं था । भगवान का अर्थ है चेतना तथा राधा का अर्थ है प्रकृति ! इसका अर्थ है भगवान की शक्ति ! प्रकृति एवं चेतना के एकत्र आने पर सृष्टि आकार लेती है । यह बात लोगों की समझ में आए; इसके लिए रूपक के माध्यम से ‘राधाकृष्‍ण’ का संबंध बताया गया, इसे हमें दृढतापूर्वक ध्यान में रखना चाहिए । उसके कारण कोई भी संभ्रम उत्पन्न नहीं होगा ।

– श्री. दुर्गेश जयवंत परुळकर, हिन्दुत्वनिष्‍ठ व्‍याख्‍याता तथा लेखक, डोंबिवली, महाराष्ट्र. (श्री. दुर्गेश परुळकर लिखित ‘योगेश्‍वर श्रीकृष्‍ण’, सनातन के मराठी ग्रंथ से)