अब तक हमने ‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ और ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप करते हुए साधकों को हुई अनुभूतियां एवं उनका विश्लेषण पढा । आज हम महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी द्वारा ‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ और ‘श्री निर्विचाराय नमः’ इन नामजपों का किया गया तुलनात्मक अध्ययन इस लेख में दे रहे हैं ।
१. नामजप से समझ में आनेवाली अनुभूतिजन्य विशेषताएं, उनकी मात्रा, प्राप्त होनेवाली निर्विचार स्थिति की मात्रा एवं नामजप की क्रियाशीलता
उपरोक्त सारणी से निम्न सूत्र देखने में आते हैं ।
अ. ‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ और ‘श्री निर्विचाराय नमः’ इन नामजपों में ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप में शांति के स्पंदन सबसे अल्प (१० प्रतिशत) तथा ‘ॐ निर्विचार’ नामजप में शांति के स्पंदन सबसे अधिक (२० प्रतिशत) है । शांति के स्पंदनों द्वारा नामजप का निर्गुण स्तर निश्चित होता है । नामजप में जितने शब्द अल्प, उतना उनके निर्गुण स्तर में वृद्धि होती है । ‘निर्विचार’ नामजप में एक ही शब्द है; परंतु ‘ॐ निर्विचार’ नामजप में दो शब्द होते हुए भी उनमें शांति के स्पंदन अधिक है; क्योंकि उनमें निर्गुण स्तर का अक्षर ‘ॐ’ है । साथही ‘निर्विचार’ नामजप मन और बुद्धि के स्तर पर कार्य करता है तथा ‘ॐ निर्विचार’ नामजप अंतर्मन में कार्य करता है ।
आ. आनंद प्राप्त होने की मात्रा ‘ॐ निर्विचार’ और ‘निर्विचार’ इन नामजपों में थोडी-सी अधिक है ।
इ. ‘सत्यम्-शिवम्-सुंदरम्’ इन गुणों के कारण चैतन्य मिलता है । ‘निर्विचार’ नामजप में सर्वाधिक (३० प्रतिशत) चैतन्य हैे; क्योंकि ‘निर्विचार’ शब्द को अर्थ है और उसका परिणाम साध्य होता है । ‘निर्विचार’ नामजप करना कठिन होने से उसे देवता का स्वरूप देकर सरल ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप सिद्ध किया गया है । प्रत्यक्ष में वह देवता नहीं है । इसलिए ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप में ‘निर्विचार’ नामजप की तुलना में अल्प मात्रा में (२० प्रतिशत) चैतन्य है । जिन्हें ‘निर्विचार’ नामजप का निर्गुण स्तर पर परिणाम साध्य करना है; परंतु उन्हें वह नामजप करना कठिन हो रहा हो, तो उनके लिए ‘ॐ निर्विचार’ नामजप तैयार किया गया है ।
‘ॐ निर्विचार’ नामजप में शब्दों का मीलन अनुचित है । इसका कारण यह कि उन दोनों शब्दों के स्पंदन एकदूसरे से नहीं मिलते । ‘निर्विचार’ नामजप निर्गुण स्थिति निर्माण करने के लिए है; परंतु उसे ‘ॐ’ जोडने पर यह अतिरिक्त शब्द और उस शब्द के साथ कार्यरत होनेवाली उसकी शक्ति के कारण उस नामजप को जडत्व प्राप्त होता है । इस जडत्व के कारण उसका परिणाम भी अल्प होता है । संक्षेप में यह नामजप ‘निर्गुण’ स्तर से ‘निर्गुण-सगुण’ स्तर पर आता है । इसलिए इस नामजप में चैतन्य अल्प मात्रा में (१० प्रतिशत) है ।
२. नामजपों का सगुण-निर्गुण स्तर
३. नामजप सहजता से होने के लिए पूरक आध्यात्मिक स्तर
जैसे साधक के आध्यात्मिक स्तर में वृद्धि होती है, वैसे उसकी यात्रा सगुण स्तर से निर्गुण स्तर की ओर होती है । इसका अर्थ साधक शक्ति, भाव, चैतन्य, आनंद और शांति इन स्तरों में से शक्ति के स्तर से शांति की स्तर की ओर अर्थात निर्गुण स्तर की ओर यात्रा करता है । इसलिए साधक जिस स्तर पर होता है, उस स्तर का नामजप करना उसे सुलभ होता है । यहां दिए तीनों नामजपों में से ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप में निर्गुण स्पंदन अल्प मात्रा में होने से अल्प स्तर के साधकों के लिए वह जप करना सुलभ होगा ।
उपरोक्त सारणी से समझ में आता है कि ‘निर्विचार’ नामजप का परिणाम साध्य करने के लिए सबसे अल्प समय लगा, तो ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप का परिणाम साध्य होने के लिए सर्वाधिक समय लगा । ‘अनेक से एक में आना’, यह अध्यात्म में प्रगति करने के लिए एक तत्त्व है । नामजप के अनेक शब्दों में से एक शब्द की ओर आने पर परिणाम शीघ्र साध्य होते हैं, यह इससे समझ में आता है ।
४. सारांश
उपरोक्त विश्लेषण से समझ आता है कि दिए हुए ३ नामजपों में से ‘निर्विचार’ नामजप करना अधिक उचित है ।
१. ‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ और ‘श्री निर्विचाराय नमः’ इन नामजपों में से ‘निर्विचार’ नामजप सर्वश्रेष्ठ है, ऐसा कहा है, उसी प्रकार आध्यात्मिक स्तर के अनुसार कौनसा नामजप करना सरल होगा, यह भी दिया है । साधक की क्षमता के लिए ‘आध्यात्मिक स्तर’ एक निकष भले ही हो, तब भी भाव, लगन, साधनामार्ग इत्यादि अन्य निकष भी लागू होते हैं । इसलिए किसी व्यक्ति के लिए स्तर के अनुसार कोई नामजप भले ही लागू हो (उदा. श्री निर्विचाराय नमः), तब भी उसे उसमें विद्यमान लगन के कारण अथवा उसका ‘ज्ञानयोग’ साधनामार्ग होने से, वह उससे भी उच्च स्तर का (उदा. ॐ निर्विचार) नामजप भी कर सकता है ।
२. इसलिए साधक प्रथम स्तर के अनुसार यहां दिया गया नामजप ७ दिन तक करके देखे । तदुपरांत वह उससे ऊपर के स्तर का नामजप अगले ७ दिन करके देखे । ऐसा करते-करते वह तीनों नामजप, प्रत्येक नामजप ७ दिन इस प्रकार से करके देखे । जो नामजप करना सहजता से साध्य होगा, वह नामजप कर सकता है ।
३. कुछ मास (महिने) स्वयं को सहजता से संभव हो, वह नामजप करने के उपरांत पुनः ‘उसके ऊपर के स्तर का नामजप करना स्वयं को संभव है क्या ?’, उसका प्रयोग
करें । ‘निर्विचार’ नामजप सर्वश्रेष्ठ होने से उस नामजप तक पहुंचने का प्रत्येक को प्रयास करना है ।’
– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, पीएच.डी, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (२२.६.२०२१)
‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप करने का महत्त्व !‘मन जब तक कार्यरत है, तब तक मनोलय नहीं होता । मन निर्विचार करने के लिए स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन, भावजागृति इत्यादि के भले ही कितने भी प्रयत्न किए, तब भी मन कार्यरत रहता है । इसके साथ ही किसी देवता का नामजप अखंड करने से भी मन कार्यरत रहता है । तब मन में भगवान का स्मरण, भाव इत्यादि आते हैं । इसके विपरीत ‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप अखंड करने पर, मन को दूसरा कुछ भी स्मरण नहीं रहता । इसका कारण यह है कि अध्यात्म में ‘शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध एवं उससे संबंधित शक्ति एकत्र रहती है’, इस नियम के अनुसार इस नामजप के कारण मन उस शब्द से एकरूप होकर निर्विचार हो जाता है, अर्थात प्रथम मनोलय, तदुपरांत बुद्धिलय, फिर चित्तलय और अंत में अहंलय होता है । इससे निर्गुण स्थिति में शीघ्र पहुंचने में सहायता होगी ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले |