रामनाथी (गोवा) – निरंतर सेवारत रहनेवालीं, प्रेमभाव एवं लगन आदि विविध गुणों के कारण जिज्ञासुओं को साधना के लिए प्रेरित करनेवालीं मूलतः महाराष्ट्र के वर्धा की, परंतु वर्तमान में वाराणसी में पूर्णकालीन सेवा करनेवालीं सनातन की साधिका श्रीमती सुमती सरोदे ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हुईं । ७ दिसंबर को एक सत्संग में सनातन की श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी ने यह शुभसमाचार दिया । इस अवसर पर हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक संत पू. नीलेश सिंगबाळजी की भी वंदनीय उपस्थिति थी । इस आनंदमय क्षण में पू. नीलेश सिंगबाळजी ने श्रीमती सरोदे को भेंटवस्तु प्रदान कर सम्मानित किया । इस समारोह में श्रीमती सरोदे के पुत्र श्री. सुमित और श्री. अमित सरोदे, बहू श्रीमती आदिती अमित सरोदे एवं ६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त नातीन कु. ओजस्वी तथा अन्य परिजन भी उपस्थित थे ।
हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक संत पू. नीलेश सिंगबाळजी ने बताई श्रीमती सरोदे की गुणविशेषताएं
१. परिस्थिति का सहजता से स्वीकार करना
वाराणसी की वास्तु का नवीनीकरण चल रहा था । कोरोना के कारण परिस्थिति कठिन थी । कर्मचारी जब वहां आते थे, तब साधकों की व्यवस्था किसी दूसरे स्थान पर करनी पडती थी । ऐसा होते हुए भी उस काल में श्रीमती सरोदे ने मन से सेवा की । अलग-अलग परिस्थिति का सहजता से स्वीकार करना उनकी बडी विशेषता है !
२. पहले ही संपर्क में जिज्ञासुओं को साधना से जोडना
श्रीमती सरोदे पहले ही संपर्क में सामनेवाले व्यक्ति को साधना से जोडती हैं । यह उनका एक दैवीय गुण है । प्रासंगिक साधना करनेवाली एक साधिका के घर श्रीमती सरोदे पहली बार ही गई थीं । उस साधिका के पति खेती करते हैं । श्रीमती सरोदे ने उन्हें अर्पण का महत्त्व बताया । उसके उपरांत उनके माध्यम से अन्य किसान भी धर्मकार्य से जुड गए । अब वे सभी किसान उनकी खेती में उगनेवाली सब्जी पूर्णकालीन धर्मप्रसार की सेवा करनेवाले साधकों के भोजन के लिए अर्पण करते हैं । हम जिसे अनेक वर्षाें से साध्य नहीं कर सके, वह श्रीमती सरोदे ने पहली ही भेंट में साध्य किया ! उत्तर भारत में जिज्ञासुओं से चल-दूरभाष से संपर्क कर उन्हें साधना बताना, यह मुख्य सेवा होती है । उसमें श्रीमती सरोदे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं ।