दत्तगुरु की काल के अनुसार आवश्यक उपासना

दत्त जयंती निमित्त भगवान दत्तात्रेय के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !

१. कालानुसार आवश्यक उपासना

     अपनी आध्यात्मिक उन्नति हेतु उपासना और धर्माचरण करना, अर्थात ‘व्यष्टि साधना’ । वर्तमान कलियुग में समाज में रज-तम गुणों की प्रबलता अधिक है । अतः समाज की सात्त्विकता बढाने के लिए अपनी साधना और धर्माचरण के साथ समाज को भी साधना एवं धर्माचरण करने हेतु प्रवृत्त करना आवश्यक होता है । इसी को ‘समष्टि साधना’ कहते हैं । भगवान दत्तात्रेय (दत्त) की उपासना में पूर्णता आने के लिए भगवान दत्तात्रेय के भक्तों को व्यष्टि और समष्टि दोनों स्तर पर साधना करना आवश्यक है ।

२. दत्तात्रेय की उपासना के सन्दर्भ में समाज को धर्मशिक्षा देना

     अधिकांश हिन्दुओं को अपने देवता, आचार, संस्कार, त्योहार आदि के विषय में आदर और श्रद्धा होती है; परन्तु अनेक लोगों को अपनी उपासना का धर्मशास्त्र ज्ञात नहीं होता । यह शास्त्र समझकर धर्माचरण उचित ढंग से करने पर अधिक लाभ होता है । इस कारण, दत्तात्रेय की उपासना से संबंधित विविध कृत्य करनेकी उचित पद्धति और शास्त्र के विषय में समाज को धर्मशिक्षा देने के लिए यथाशक्ति प्रयत्न करना भी, दत्तात्रेय भक्तों के लिए कालानुसार आवश्यक श्रेष्ठ स्तर की समष्टि साधना है ।

     सनातन संस्था ने दत्तात्रेय की उपासना से संबंधित कृत्यों की उचित पद्धति और शास्त्र के विषय में मार्गदर्शक ग्रंथ, लघुग्रंथ, श्रव्य-चक्रिका और धर्मशिक्षा फलकों का निर्माण किया है । आप अपने परिचित दत्तात्रेय भक्त और दत्तात्रेय देवस्थान समिति के सदस्य आदि को सनातन के ग्रंथ, लघुग्रंथ और दृश्यश्रव्य-चक्रिकाओं के माध्यम से दत्तात्रेय की उपासना के विषय में मार्गदर्शन कर सकते हैं । केबल पर दृश्यश्रव्य-चक्रिका के प्रसारण से भी समाज को व्यापक स्तरपर धर्मशिक्षा दी जा सकती है । धर्माभिमानी व्यक्ति, संस्था, प्रतिष्ठान, देवस्थान आदि अपने-अपने क्षेत्रमें तथा अन्य दर्शनीय स्थानों पर ‘धर्मशिक्षा फलक’ प्रदर्शित करने के लिए स्वयं प्रायोजक बनें । उसी प्रकार, देवालय, सभागृह, विविध प्रदर्शनियां, विद्यालय-महाविद्यालय आदि स्थानों पर ये धर्मशिक्षा फलक लगाने के लिए स्थान उपलब्ध करवाकर अथवा इन स्थानों पर फलक लगाने के विषय में संबंधित लोगों का प्रबोधन कर समष्टि साधना के स्वर्णिम अवसर का लाभ लें । सनातन के धर्मशिक्षा फलकों के विषय में अधिक विवेचन संबंधित ग्रन्थों में दिया है । अधिक जानकारी हेतु अपने समीप स्थित सनातन के सत्संग में संपर्क करें ।

३. देवालयों की (मंदिरों की) पवित्रता बनाए रखना एवं इस संदर्भ में जनजागरण करना

     दत्तात्रेय तथा अन्य देवताओं के देवालयों में होनेवाले अनाचारों को रोकें !

अ. दर्शन के लिए भीड न करें । पंक्ति में खडे होकर शान्ति से दर्शन करें । शान्ति से भावपूर्वक दर्शन करने से दर्शन का वास्तविक लाभ होता है ।

आ. देवालय में अथवा गर्भगृह में कोलाहल न करें । कोलाहल से देवालय की सात्त्विकता घटती है तथा वहां दर्शन करनेवाले, नामजप करनेवाले अथवा ध्यान में बैठे श्रद्धालुओं को भी कष्ट होता है ।

इ. कभी-कभी देवता के सामने कुछ रुपए रखने के लिए बहुत आग्रह किया जाता है । इसकी नम्रतापूर्वक अनदेखी करें ।

ई. मन्दिर का परिसर स्वच्छ रखें । परिसर में प्रसाद के कागद, खाली वेष्टन, नारियल के खोल इत्यादि दिखें, तो उन्हें तुरंत उठाकर कूडेदान में डालें । देवालय की सात्त्विकता सुरक्षित रखना प्रत्येक श्रद्धालु का कर्तव्य है । अतः, उपर्युक्त अनाचारों के विषय में, देवालय में आनेवाले श्रद्धालुओं का तथा देवालयके पुजारी, न्यासी इत्यादि का नम्रता से प्रबोधन करें ।

(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘भगवान दत्तात्रेय’)