सनातन की संत श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में उनके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी

     महर्षिजी के बताए अनुसार श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी हैं । मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष चतुर्दशी (१८ दिसंबर) को उनका जन्मदिन है । इस उपलक्ष्य में हम यहां श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के अमृत वचन और उनके अन्य लेखन की प्रस्तुति कर रहे हैं !

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी के अमृत वचन !

१. भावपूर्ण नामजप करने का महत्त्व

     ‘प्रत्येक नामजप को भाव से जोडना चाहिए । मन एवं बुद्धि, इन दोनों स्तरों पर भाव के साथ नामजप हुआ, तो उस नामजप से चैतन्य मिलता है और गुणवृद्धि भी होती है ।

२. नाम एवं योगमार्ग

     प्रत्येक कर्म को नाम से जोडें, तो वह कर्मयोग बन जाता है । नामजप करनेवाले मन को भाव के दृश्य में रमा दिया जाए, तो वह भक्तियोग और मन एवं बुद्धि नामजप के साथ चलने लगे, तो वह ज्ञानयोग होता है ।

३. प्रेमभाव कैसे बढाना चाहिए ?

     प्रेमभाव बढाने का सबसे सरल और सुलभ उपाय है सर्वप्रथम अन्यों का विचार करना, उदा. पहले साधकों का विचार आना चाहिए । जैसे ‘हम उनकी कैसे सहायता कर सकते हैं ?, उन्हें कैसे आनंद दे सकते हैं ?’ प्रेमभाव से ही आगे प्रीति के स्तर पर जाना संभव होता है ।

४. ‘स्व’ को गुरुचरणों में अर्पण करने से प्रगति होती है !

     स्वयं का अर्थात ‘स्व’ का जीवन मिटाकर सबकुछ गुरुचरणों में समर्पित कर केवल दूसरों के लिए जीने से साधना में प्रगति होती है ।

५. सनातन संस्था की स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन की प्रक्रिया ही ‘ध्यानधारणा’ है !

     सनातन संस्था के मार्गदर्शन में साधना करते समय ध्यानधारणा हेतु अलग से प्रयास नहीं करने पडते । परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कृपा से साधक स्वभावदोषों और अहं के निर्मूलन हेतु जो प्रयास करते हैं, उसके कारण उनसे चलते-बोलते भी ध्यानधारणा होती है ।

६. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा दिया महामंत्र

     ‘परिपूर्ण सेवा’, यह परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा साधकों को प्रदान किया गया महामंत्र ही है ।

७. भगवान का क्षुब्ध होना

     चूक होने से भगवान क्षुब्ध नहीं होते; परंतु हमने उस चूक से कुछ नहीं सीखा, तो वे क्षुब्ध होते हैं ।’

८. अध्यात्मशास्त्र किसी अथाह सागर की भांति असीमित है !

     अध्यात्म में हम जितना सीखेंगे, उतना अल्प (कम) ही है । सीखने के लिए अनेक जन्म भी हमें अपर्याप्त सिद्ध होंगे । इसलिए अध्यात्म का बुद्धि से अध्ययन करने की अपेक्षा उसमें विद्यमान तत्त्व को पहचानना और उसका शास्त्र समझ लेना होगा ।

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी द्वारा सत्शक्ति, चित्शक्ति और आनंद का किया गया विश्लेषण !

     ‘सत्-चित्-आनंद तो परमात्मा परब्रह्म के स्वरूप लक्षण हैं । जो सत्घन, चित्घन एवं आनंदघन हैं, ऐसे उस परब्रह्म परमात्मा शक्ति को हम नमस्कार करते हैं । इन तीनों में से यदि एक को भी हटाया, तो उनके स्वरूप में न्यूनता आ सकती है । सृष्टि के रचनाकार, पालनकर्ता और संहारकर्ता परमात्मा सत्चिदानंद स्वरूप हैं । उत्पत्ति, स्थिति एवं लय का एकमात्र कारण परमात्मा परब्रह्म ही है । इस परब्रह्म परमात्मा ने ही प्रकृति के चलनेवाले सभी नियम बना दिए हैं । आनंदस्वरूप भगवान की २ शक्तियां हैं – सत्शक्ति एवं चित्शक्ति । सत् अर्थात शाश्वत एवं नित्य और चित् अर्थात ज्ञान ! भगवान नित्य भी हैं और ज्ञानी भी हैं ।

१. सत्शक्ति

     सत् अर्थात शाश्वत एवं नित्य । भगवान नित्य हैं । वे सत्य हैं । सत्शक्ति शाश्वत और त्रिकालाबाधित सत्य से संबंधित है । यह शक्ति अपरिवर्तनीय है, साथ ही इस शक्ति का मूल, मध्य और अंत भी नहीं है । यह शक्ति भ्रम एवं माया से परे है । वह तत्त्वनिष्ठ है । सत्य की कभी भी मृत्यु नहीं होती । सत्शक्ति अजरामर है । हम नश्वर हैं; क्योंकि पंचतत्त्वों से बना हुआ हमारा शरीर एक दिन पंचतत्त्व में विलीन होता है; परंतु सत्शक्ति सहित स्थित परमात्मा अखंड है । वे सभी में व्याप्त हैं । वे सर्वत्र भरे हुए हैं ।

२. चित्शक्ति

     चित् अर्थात प्रकाश ! परमात्मा का दूसरा नाम प्रकाश है । प्रकाश के होने से ही परमात्मा का स्वरूप स्पष्ट होता है । परमात्मा स्वयं ही ज्ञानघन है । चित्शक्ति का अर्थ ज्ञानशक्ति ! चित्शक्ति के कारण हमें ब्रह्माण्ड का ज्ञान होता है, साथ ही प्रत्येक कृत्य का कार्यकारणभाव समझ में आता है । भगवान स्वयं ज्ञानमय हैं । ज्ञान के बिना कोई भी विश्व को समझ नहीं सकता । भगवान को समझ लेने से ही हमें उनकी अनुभूति हो सकती है । भगवान को समझ लेनेवाली चेतनामय प्रकाशमय शक्ति ही चित्शक्ति है ।

३. आनंद

     स्वयं परब्रह्म परमात्मा आनंदस्वरूप हैं । वे स्वयं ही शिवस्वरूप हैं । सूर्य का तेज और चंद्रमा में विद्यमान चैतन्य उनके कारण ही है, साथ ही मंदिर में सुगंध भी उनके कारण ही है । सत्य को उल्टा किया, तो वह असत्य होता है । प्रकाश के विपरीत अंधकार होता है; परंतु आनंद को कोई बदल नहीं सकता । वह स्थिर है । निरानंद, ब्रह्मानंद, परमानंद ऐसा भले कुछ भी कहा जाए; परंतु उसमें स्थित आनंद को हम बदल नहीं सकते ।’

– श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी (२९.४.२०२०)