वर्तमान की सर्वश्रेष्ठ समष्टि साधना का लाभ उठाएं !

गुरुकार्य में, धर्मकार्य में एवं हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य में यथाशक्ति सहभागी होनेवाले जीवों का उद्धार होना निश्चित है । भारत को धर्माधिष्ठित राष्ट्र घोषित करने के लिए, अर्थात भारत में रामराज्य की स्थापना के लिए प्रयास करना ही वर्तमान काल की सर्वश्रेष्ठ समष्टि साधना है ।

हिन्दुओ, प्रत्येक क्षेत्र में अपनी क्षमतानुसार धर्मसंस्थापना का कार्य गुरुसेवा के रूप में करें !

आधुनिक युग में धर्मसंस्थापना का यही कार्य गुरुतत्त्व को अधिक प्रिय है । धर्मसंस्थापना केवल धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना नहीं, धर्मग्लानि से ग्रस्त राष्ट्र और समाज के प्रत्येक घटक को धर्मयुक्त बनाना भी है ।

हिन्दू राष्ट्र के इस धर्मयुद्ध में चाहे कितनी भी बाधाएं आएं; परंतु हम निरंतर आगे बढते रहेंगे ! – पू. रमानंद गौडाजी, धर्मप्रचारक, सनातन संस्था

प्रारब्ध के अनुसार प्रत्येक मनुष्य को सुख-दुख भोगना पडता है । धर्मकार्य करते समय कभी पुलिस प्रशासन का दबाव होता है, तो कभी समाज का भी विरोध होता है । हमारी साधना हो, तो ऐसी प्रतिकूल स्थिति में भी हम स्थिर रह सकते हैं, साथ ही हमारा कार्य अखंडित जारी रख सकते हैं ।

उत्तर भारत के युवा साधकों को १० वीं एवं १२ वीं की परीक्षा में सफलता

सनातन संस्था के साधकों के परीक्षा में उत्तीर्ण बेटीयां

अष्टसात्विक भाव क्यों जागृत नहीं होते ?

भक्त ईश्वरप्राप्ति तो चाहते हैं, किंतु संसार-व्यवहारके सुखोंको छोडने वे सिद्ध नहीं होते । यह भी चाहिये और वह भी चाहिये, ऐसा नहीं चल सकता । क्यों नहीं चल सकता ? क्यों कि संसार-व्यवहार का सुख चाहिये, तबतक मन पूर्णत: ईश्वरमें नहीं लग सकता ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के करकमलों से श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को उत्तराधिकार पत्र प्रदान !

समारोह में धातु पर उकेरा गया उत्तराधिकार पत्र सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को प्रदान किया । सनातन की गुरुपरंपरा के ये अनमोल क्षण साधकों ने भावपूर्ण स्थिति में अनुभव किए । श्री. विनायक शानभाग ने उत्तराधिकार पत्र का वाचन किया ।

१० सहस्र से अधिक साधकों की उपस्थिति में एवं चैतन्यमय वातावरण में मनाया गया सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का दिव्य ब्रह्मोत्सव !

सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ८१ वें जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में फर्मागुडी स्थित ‘गोवा अभियांत्रिकी महाविद्यालय’ के मैदान में ‘दिव्य ब्रह्मोत्सव’ संपन्न हुआ । रथारूढ भगवान श्रीविष्णु की नृत्य, गायन एवं वादन द्वारा स्तुति करना अर्थात ब्रह्मोत्सव !

भूलकर देहभान रंग जाएं हरि के रंग । आनंद के सागर में उठी भक्ति की तरंग ।।

श्रीविष्णु स्वरूप सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कृपा से संपन्न हुआ यह दिव्य एवं भव्य ‘ब्रह्मोत्सव’ इसी देह और इन्हीं नेत्रों से देखने का महत्भाग्य साधकों को मिला’, इसके लिए हे ईश्वर आपके चरणों में अनन्य भाव से कृतज्ञता ! कृतज्ञता !! कृतज्ञता !!!

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के चरणों में मान्यवरों द्वारा अर्पित कृतज्ञता सुमन !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ब्रह्मोत्सव में अनेक मान्यवर उपस्थित थे । समारोह में व्यक्त किए गए भावपूर्ण मनोगत ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का ‘ब्रह्मोत्सव’ मनाने के विषय में सप्तर्षियों द्वारा पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से बताई गई महिमा !

‘२३.२.२०२३ को सप्तर्षि नाडीपट्टिका के वाचक पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से हुए नाडीवाचन क्रमांक २२२ में ‘वर्ष २०२३ में गुरुदेवजी का जन्मोत्सव किस प्रकार मनाया जाए ?’, इस विषय में सप्तर्षियों द्वारा बताई गई महिमा आगे दे रहे हैं ।