‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ के लिए आए हिन्दुत्वनिष्ठों को साधना का महत्त्व समझाने का अवसर मिलना !

आज के समय में बहुत ही अल्प लोग साधना करते हैं । अधिकतर लोगों को ‘साधना करनी होती है’, यही ज्ञात नहीं है । हिन्दुत्वनिष्ठ हिन्दुत्व का कार्य मन से करते हैं; परंतु उनकी साधना न होने से वह कार्य बहुत कुछ प्रभावी सिद्ध नहीं होता । उसके कारण उनकी शक्ति का व्यय तो होता है; किंतु उससे कुछ लाभ नहीं होता ।

सनातन संस्था द्वारा पूरे देश में ७२ स्थानों पर ‘गुरुपूर्णिमा महोत्सव’ भावपूर्ण वातावरण में संपन्न !

माया के भवसागर से शिष्य एवं भक्त को धीरे से बाहर निकालनेवाले, उससे आवश्यक साधना करवानेवाले तथा कठिन समय में उसे निरपेक्ष प्रेम से आधार देकर संकटमुक्त करनेवाले गुरु ही होते हैं । ऐसे परमपूजनीय गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन होता है गुरुपूर्णिमा !

गुरुमहिमा !

किसी को सुंदर पत्नी, धन, पुत्र-पौत्र, घर एवं स्वजन आदि सर्व प्रारब्धानुसार सरलता से प्राप्त हुआ हो; परंतु यदि उनका मन गुरुदेवजी के श्री चरणों में रममाण (आसक्त) न हो, तो उसे ये सर्व प्रारब्ध-सुख मिलकर क्या लाभ होगा ?

गुरुपूर्णिमा महोत्सव २०२३ निमंत्रण

गुरुपूर्णिमा के दिन १००० गुना सक्रिय रहनेवाले गुरुतत्त्व का लाभ सभी को हो, इसलिए सनातन संस्था व हिन्दू जनजागृति समिति गुरुपूर्णिमा महोत्सव का आयोजन कर रहे हैं । इस महोत्सव में सम्मिलित होने हेतु गुरुपूर्णिमा स्थल का पता एवं संपर्क क्रमांक आगे देखें ।

विभिन्न संतों में विद्यमान प्रतीत अलौकिक तेज

बिना स्नान किए भी केवल मुख पर हाथ फेरते ही लाल-गुलाबी एवं तेजस्वी दिखाई देनेवाले प.पू. भक्तराज महाराज !

‘अनंत’में जानेकी यात्राकी सिद्धता

जीवनमें सुख तो जौ (यव) धान्य के एक दानेके बराबरका है, तो दु:ख पहाड जितना है । इन दु:खोंकी पुनरावत्तियां टालनेके लिये किसी साधनासे अंतिम यात्राकी सिद्धता की, तो ‘अनंत’में विलीन होकर जन्म-मृत्युकी यात्राओंका अंत होगा ।

विविध कलाओं में प्रवीण विद्यार्थियों को अध्यात्म एवं कला एक-दूसरे से जोडकर साधना कैसे करनी है, यह सिखानेवाला महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय !

‘संगीत वर्ग में अथवा रेडियो पर वार्तालाप के माध्यम से अनके लोगों तक महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोधकार्य का विषय पहुंचा है । आगे विविध गुरुकुल, इन्स्टिट्यूट, एकेडमी में भी यह इसी प्रकार पहुंचेगा और यह विषय समझने पर उनमें से जो जिज्ञासु होंगे, उन्हें इस विषय का महत्त्व समझ में आएगा

साधकों को कला संबंधी ज्ञान सहित अध्यात्म के विविध पहलू सिखानेवाले एवं कला के माध्यम से साधकों की साधना करवा लेनेवाले एकमेवाद्वितीय सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी !

‘गुरु-शिष्य’ के पदक (लॉकेट) संबंधी सेवा करते समय मैंने ३ रेखाचित्र बनाकर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी को दिखाए । तब उनके मार्गदर्शनानुसार कलाकृतियों में परिवर्तन करते समय मुझे सीखने के लिए मिले सूत्र यहां दिए हैं ।

श्रीविष्णुतत्त्व की अनुभूति देनेवाले कलियुग के दिव्य अवतारी रूप : सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी !

श्रीविष्णुस्वरूप सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी का जन्मोत्सव तो साधकों के लिए ‘अमृत से भी मधुर’ अनुपम एवं दिव्य पर्व है । इस दिन साधकों के अंतर्मन में भावभक्ति की शीतल धारा प्रवाहित होकर उन्हें आत्मानंद एवं आत्मशांति की अनुभूति होती है । ऐसे इस दैवी पर्व के उपलक्ष्य में श्रीविष्णु स्वरूप गुरुदेवजी की महिमा हम अपने हृदयमंदिर में स्वर्णिम अक्षरों से अंकित कर लेंगे ।

गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में सनातन के गुरुओं द्वारा संदेश

अब हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने का समय निकट आ गया है; परंतु भविष्य में संपूर्ण राष्ट्ररचना अध्यात्म पर आधारित होने हेतु आज से ही सक्रिय होना, धर्मसंस्थापना का कार्य है । श्री गुरु के इस ऐतिहासिक धर्मसंस्थापना के कार्य में दायित्व लेकर सेवा करें !