१० सहस्र से अधिक साधकों की उपस्थिति में एवं चैतन्यमय वातावरण में मनाया गया सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का दिव्य ब्रह्मोत्सव !

‘ब्रह्मोत्सव’ समारोह का आनंद निराला । साधकों के लिए लगा भावानंद का मेला ।।

सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ८१ वें जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में फर्मागुडी स्थित ‘गोवा अभियांत्रिकी महाविद्यालय’ के मैदान में ‘दिव्य ब्रह्मोत्सव’ संपन्न हुआ । श्रीविष्णुरूप सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी, उनकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी के भावदर्शन साधकों को हुए । रथारूढ भगवान श्रीविष्णु की नृत्य, गायन एवं वादन द्वारा स्तुति करना अर्थात ब्रह्मोत्सव ! आंध्र प्रदेश राज्य में सुवर्ण रथ में विराजमान तिरुपति बालाजी का ब्रह्मोत्सव इस प्रकार मनाया जाता है ।

समारोह में उपस्थित साधक

महर्षि श्रुंगी ने वर्षा एवं चक्रवात को रोक रखा ! – सप्तर्षि (पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से)

‘श्रुंगी ऋषि द्वारा किए गए ‘पुत्रकामेष्टी याग’ के कारण भगवान श्रीविष्णु श्रीराम के रूप में दशरथ महाराज के घर पधारे । श्रुंगी ऋषि के आगमन से रोमपाद राजा के राज्य से अकाल दूर होकर वर्षा हुई । श्रुंगी ऋषि की विशेषता यह है कि ‘उनके आगमन से वर्षा होना अथवा न होना’, ऐसा हो सकता है । ‘सर्व साधक गुरुदेवजी का ब्रह्मोत्सव निर्विघ्न रूप से देख पाएं, साथ ही गुरुदेवजी एवं उनके रथ के दर्शन ले पाएं’, इसलिए श्रुंगी ऋषि ब्रह्मोत्सव के दिन मैदान में खडे थे । उन्होंने वर्षा को मैदान से २१ कि.मी. दूर एवं चक्रवात को १ सहस्र २०० कि.मी. दूर रोक रखा था । (‘बंगाल की खाडी में उत्पन्न हुआ ‘मोखा’ नामक चक्रवात ९.५.२०२३ को वेग से तटपर आघात कर सकता है’, ऐसा भारतीय मौसम विभाग ने बताया था । अंत में ‘मोखा’ चक्रवात २ दिन बंगाल की खाडी में स्थित अंडमान द्वीपसमूह के निकट रुक गया ।’ – संकलनकर्ता) ‘सभी को सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी के दर्शन हों एवं कार्यक्रमस्थल पर वर्षा के कारण कोई भी समस्या न आए’, इसलिए मैदान में सूक्ष्म से खडे रहकर वर्षा को रोकनेवाले श्रुंगी ऋषि एवं श्रीविष्णु के अवतार सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के श्रीचरणों में हम सप्तर्षि कृतज्ञ हैं ।’

– सप्तर्षि (पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से, १२.५.२०२३, सवेरे ११.३०)

(‘श्रीविष्णु स्वरूप गुरुदेवजी के ब्रह्मोत्सव में समस्याएं निर्माण न हों’, इसलिए कार्य करनेवाले श्रुंगी ॠषि के श्रीचरणों में हम कृतज्ञ हैं ।’ – संकलनकर्ता)


सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी द्वारा महर्षि की आज्ञा के अनुसार विविध देवताओं की भांति वेशभूषा करने का कारण

‘मेरे द्वारा राम, कृष्ण एवं विष्णु की वेशभूषा धारण करने पर कुछ लोग मेरी आलोचना करते हैं । कहते हैं, ‘डॉक्टर स्वयं को राम, कृष्ण एवं विष्णु मानते हैं !’ उन्हें यह ज्ञात नहीं है कि केवल महर्षि की आज्ञा का पालन करने हेतु मैं वह वेशभूषाएं धारण करता हूं । उसका अध्यात्मशास्त्रीय आधार आगे दिया गया है ।

‘शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध एवं उसके संदर्भ की शक्ति एकत्र होती है’, ऐसा अध्यात्म का एक सिद्धांत है । इस सिद्धांत के अनुसार हम जब किसी देवता के नाम का उच्चार करते हैं, तब उस देवता का तत्त्व वहां कुछ अंश में कार्यरत होता है एवं उसका लाभ हमें मिलता है । इसी उद्देश्य से बच्चों का नाम देवताओं के नाम पर रखने की पद्धति है । उसी प्रकार किसी देवता की भांति वेशभूषा करने से भी उस देवता के तत्त्व का लाभ मिलता है । इसी उद्देश्य से महर्षि ने मुझे विविध देवताओं की वेशभूषा धारण करने की आज्ञा की ।

यहां ध्यान देने योग्य सूत्र यह है कि आध्यात्मिक स्तर न्यून होते हुए भी कोई व्यक्ति यदि किसी उच्च देवता के नाम का जप करें, अथवा उस देवता की वेशभूषा धारण करें, तो उसे वह शक्ति सहन नहीं होगी एवं उससे कष्ट भी हो सकते हैं । संत, उन्नत पुरुषों की आज्ञा के रूप में वैसा करने पर उनकी संकल्पशक्ति के कारण संबंधित देवता की शक्ति सहन करना संभव होता है एवं उसका आध्यात्मिक स्तर पर लाभ होता है ।’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले (१२.५.२०२३)