सनातनकी ग्रंथमाला : भगवान दत्तात्रेय

आध्यात्मिक उन्नतिके लिए जीवको ‘पिण्ड से ब्रह्माण्ड’ तक की यात्रा पूर्ण करनी पडती है । उसी प्रकार जबतक दत्तभक्त दत्तकी सर्व विशेषताओंको आत्मसात नहीं कर लेता, तबतक वह दत्तसे एकरूप नहीं हो सकता ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का साधना के विषय में मार्गदर्शन !

अधिकांश पुरुष कार्य के निमित्त रज-तमप्रधान समाज में रहते हैं । इसका उनपर परिणाम होने से वे भी रज-तमयुक्त होते हैं । इसके विपरीत, अधिकांश स्त्रियां घर में रहती हैं । उनका समाज के रज-तम से संपर्क नहीं होता । इसलिए वे साधना में शीघ्र प्रगति करती हैं ।

पाठक, शुभचिंतक एवं धर्मप्रेमियों को धर्मकार्य में योगदान करने का स्वर्णिम अवसर !

शोध के माध्यम से संपूर्ण मानवजाति को अनमोल धरोहर उपलब्ध करवानेवाले ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ को छायाचित्रण हेतु ‘कैमरों’ की आवश्यकता !

साधकों, साधक के नाम पर पैसे मांगनेवाले अपरिचित व्यक्ति से सतर्क रहें !

यदि कोई अपरिचित व्यक्ति घर आकर अथवा अन्य किसी भी स्थान पर मिलकर अथवा दूरभाष कर ग्रंथ और पंचांग वितरण के पैसे अथवा अन्य किसी कारणवश पैसे मांगे, तो साधक न दें । स्वयं की अथवा अपने परिजनों की ठगी न हो, इसलिए साधकों को सतर्क रहना चाहिए ।

रासायनिक, जैविक और प्राकृतिक कृषि में अंतर !

आपातकाल में रासायनिक अथवा जैविक खाद उपलब्ध होना कठिन है । प्राकृतिक कृषि पूर्णतः स्वावलंबी कृषि है तथा आपातकाल के लिए, साथ ही सदैव के लिए भी अत्यधिक उपयुक्त है ।

दत्तगुरु की काल के अनुसार आवश्यक उपासना

अधिकांश हिन्दुओं को अपने देवता, आचार, संस्कार, त्योहार आदि के विषय में आदर और श्रद्धा होती है; परन्तु अनेक लोगों को अपनी उपासना का धर्मशास्त्र ज्ञात नहीं होता । यह शास्त्र समझकर धर्माचरण उचित ढंग से करने पर अधिक लाभ होता है ।

दत्तात्रेय की त्रिमुखी मूर्ति के हाथ में रहा कमंडल (त्याग और चैतन्य का प्रतीक)

ईश्वर के निर्गुण तरंगों को समाहित करनेवाले, एवं अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से रक्षण होने के लिए संपूर्ण त्रिलोक को एक ही समय एक पल में मंडल निकालने की क्षमता रखनेवाला जल जिस कुंड में सामाहित हैं, वह कुंड अर्थात दत्तात्रेय के हाथ में विद्यमान कमंडलू ।

भगवान दत्तात्रेय द्वारा किए गए २४ गुणगुरुओं का भावार्थ !

श्रीमद्भागवत के ग्यारहवें स्कन्ध में यदु एवं अवधूत का संवाद है, जिसमें अवधूत बताते हैं कि उन्होंने किसे अपना गुरु माना और उनसे क्या बोध लिया । अवधूत कहते हैं, ‘जगत की प्रत्येक वस्तु ही गुरु है; क्योंकि प्रत्येक वस्तु से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है ।

मानवी बुद्धि एवं उसके निर्णयों की योग्य-अयोग्यता !

मानसिक वासनाओं से घिरी होने के कारण मनुष्य की बुद्धि संशयात्मक रहती है । इस कारण किसी निश्चय पर पहुंचना कठिन होता है । प्रारब्ध कर्मों का प्रभाव भी बुद्धि को ठीक-ठीक निर्णय करने में कठिनाई उत्पन्न करता है ।

परिजनों की भी साधना में अद्वितीय प्रगति करवानेवाले एकमेवाद्वितीय पू. बाळाजी (दादा) आठवलेजी ! (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता)

जब व्यक्ति आत्मकेंद्रित होता है और उसे देश कल्याण की चिंता नहीं होती, तब समाज एवं देश के मूल्य अथवा गुणवत्ता अल्प होती है । लोग निःस्वार्थी हो और उनमें देश के प्रति आंतरिक प्रेम निर्माण हो, तो वे एक होते हैं तथा देश मजबूत और बलवान होता है ।