रासायनिक, जैविक और प्राकृतिक कृषि में अंतर !

सनातन का ‘घर-घर रोपण’ अभियान

     ‘पौधों की वृद्धि हेतु उन्हें खाद देनी पडती है और रोग एवं कीडों से उनकी सुरक्षा होने के लिए औषधियों का फव्वारा करना पडता है । पौधों के लिए हम किस प्रकार की खाद और औषधियों का उपयोग करते हैं, उससे कृषि रासायनिक, जैविक अथवा प्राकृतिक है, वह निश्चित होता है ।

१. रासायनिक कृषि

     दूसरे विश्वयुद्ध के उपरांत विदेश में कृषि के लिए विशाल मात्रा में विषैले रसायनों का उपयोग आरंभ हुआ और तदुपरांत भारत में उसका प्रसार हुआ । रासायनिक कृषि में मानवनिर्मित विषैले रासायनिक खाद और औषधियों का उपयोग किया जाता है । इस उपयोग के अनेक भयंकर दुष्परिणाम पर्यावरण पर, साथ ही हमारे स्वास्थ पर भी होते हैं । विषैले रासायनिक खाद और औषधियां बडे-बडे कारखानों में बनाई जाती हैं । इसलिए आपातकाल में वह उपलब्ध नहीं होंगे, साथ ही स्वास्थ की दृष्टि से यह पद्धति अनुचित है ।

२. जैविक कृषि

     व्यर्थ प्राकृतिक पदार्थों पर अनेक प्रक्रिया कर जैविक खाद बनाई जाती हैं । कंपोस्ट खाद, केंचुआ खाद, सब्जी मंडी की सब्जियों का कचरा, शहर का कचरा, पशुवधगृह का व्यर्थ पदार्थ, प्राणियों की हड्डियों का चूरा, मछली की खाद, मुर्गी की खाद, बाजार में मिलनेवाले जैविक खाद यह सभी जैविक कृषि में उपयोग किए जानेवाले खाद और औषधियों के उदाहरण है । बाजार में मिलनेवाला सबसे प्रचलित जैविक खाद अर्थात ‘स्टेरामील’ । इसमें हड्डियों का चूरा भी एक घटक होता है । ‘कंपोस्ट खाद’ अर्थात विभिन्न कचरों की एक के ऊपर एक परत लगाकर उसे सडाकर बनाया जानेवाला पदार्थ ।

     जैविक कृषि में अधिक प्रक्रिया वाले खाद और औषधियों का उपयोग होने से वे खाद एवं औषधियां महंगी होती हैं, साथ ही उनमें आर्सेनिक, सीसा जैसे विषैले धातुओं की मात्रा अधिक हो सकती है । इन धातुओं का शरीर पर दुष्परिणाम भी हो सकता है । यह पद्धति भी परावलंबी होने से आपातकाल में उपयोगी नहीं है ।

     रासायनिक कृषि के भयंकर दुष्परिणाम ध्यान में आने पर विदेशों में जैविक कृषि आरंभ हुई । तदुपरांत यह पद्धति भारत में आई । मूलत: यह भारतीय पद्धति नहीं है !

३. प्राकृतिक कृषि

     भारत में पहले से ही प्राकृतिक कृषि होती थी । इस पद्धति में जैविक पदार्थाें पर न्यूनतम प्रक्रिया की जाती है । आपातकाल में रासायनिक अथवा जैविक खाद उपलब्ध होना कठिन है । प्राकृतिक कृषि पूर्णतः स्वावलंबी कृषि है तथा आपातकाल के लिए, साथ ही सदैव के लिए भी अत्यधिक उपयुक्त है । प्राकृतिक पद्धति से उगाई गई सब्जी, फल, साथ ही औषधि वनस्पतियां पूर्णतः विषमुक्त और स्वास्थ्यप्रद होती है । पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित श्री. सुभाष पाळेकर ने ‘सुभाष पाळेकर प्राकृतिक कृषि’ नाम से कृषि व्यवस्था का बडी मात्रा में प्रचार किया । इसमें देशी गोमाता के गोमय (गोबर) और गोमूत्र, साथ ही सहज उपलब्ध होनेवाले प्राकृतिक घटकों का उपयोग कर जीवामृत, बीजामृत जैसे खाद और औषधियां बनाकर उनका उपयोग किया जाता है ।’

– एक कृषि विशेषज्ञ, पुणे, महाराष्ट्र. (१७.११.२०२१)

रोपण के विषय में शंकासमाधान

प्रश्न १ : ‘मेरे बंगले के बाग में थोडा खाली स्थान है; परंतु उसके पडोस में नारियल और रामफल के वृक्ष होने से वहां छांव आती है । उस स्थान पर बहुत धूप नहीं आती । क्या उस स्थान पर सब्जी उगेगी? (छत्त पर भी सब्जी लगा सकते हैं ।)’ तथा ‘आजकल प्लास्टिक के गमले मिलते हैं । क्या उनमें पौधे लगा सकते हैं ?’- श्रीमती स्मिता माईणकर

उत्तर : ‘प्रत्येक वनस्पति हेतु सूर्यप्रकाश की आवश्यकता अलग-अलग होती है । अधिकांश सभी फलवृक्ष और सब्जियों की अच्छी वृद्धि होने के लिए सुबह की न्यूनतम ४ से ५ घंटे की धूप प्राप्त होना आवश्यक होता है । मसालेवाली वनस्पतियों को (उदा. मिचरी की बेल) प्रखर सूर्यप्रकाश की आवश्यकता नहीं होती । वे छांव में अथवा अल्प तीव्रतावाले सूर्यप्रकाश में भी अच्छे से उगती है । इसलिए वृक्षों की छांववाले स्थान में मसालोंवाली वनस्पति लगा सकते हैं और छत्त पर सूर्यप्रकाश में सब्जियों का रोपण कर सकते हैं ।’

प्रश्न २ : ‘आजकल प्लास्टिक के गमले मिलते हैं । क्या उनमें पौधे लगा सकते हैं ?’ – श्रीमती स्मिता माईणकर (१४.११.२०२१)

उत्तर : ‘संभवत: प्लास्टिक का उपयोग न करें; परंतु पुरानी प्लास्टिक के गमले, बरनी अथवा मोटी थैलियां हो, तो उन्हें न फेंकते हुए उनका उपयोग कर सकते हैं । मिट्टी के गमले अथवा ईंटों की क्यारियां करना अधिक उचित होगा ।’

सनातन के जालस्थल (वेबसाइट) पर पढें : ‘घर में प्राकृतिक पद्धति से रोपण कैसे करें ?’, इस संदर्भ में विस्तृत जानकारी

     https://www.sanatan.org/hindi/a/34832.html

(सीधे इस लिंक पर जाने के लिए साथ में दिया ‘QR कोड’ (टिप्पणी) ‘स्कैन’ करें !)

     इस लिंक पर दिए विविध वीडियों द्वारा विषय सुस्पष्ट होने में सहायता होगी । रोपण के संबंध में कुछ शंका हो, तो वे इस लिंक पर पूछ सकते हैं । (टिप्पणी)

     टिप्पणी – जालस्थल (वेबसाइट) पर प्रश्न पूछने की पद्धति

१. पृष्ठ के अंत में ‘Leave a Comment’ पर्याय पर क्लिक करें । यहां अपना प्रश्न लिखें । अपना नाम एवं ई-मेल पता लिखें ।

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साधकों को सूचना

घर-घर रोपण अभियान के अंतर्गत दी हुई समयसीमा में रोपण आरंभ करें !

वैद्य मेघराज पराडकर

१. अपने घर में थोडा रोपण अवश्य आरंभ करें !

     ‘कार्तिक शुक्ल एकादशी से (१५.११.२०२१ से) सनातन ने ‘घर-घर रोपण’ अभियान आरंभ किया है । आपातकाल की तैयारी के रूप में प्रत्येक साधक के घर में थोडी बहुत सब्जी, फल और औषधि वनस्पतियों का रोपण हो, यह इस अभियान का उद्देश्य है । ‘घर-घर रोपण’ अभियान के अंतर्गत साधकों के घर के पास के परिसर में, छत में अथवा बालकनी में अल्प स्थान में रोपण कैसे करें ?, इस विषय में मार्गदर्शन किया जाएगा । इस अभियान के विषय में विस्तृत जानकारी और समयसीमा १ से १५ दिसंबर के पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ में दी गई है । सर्वत्र के साधक दी हुई समयसीमा में अपने घर में रोपण का आरंभ करें ।

२. रोपण के विषय में प्रायोगिक अनुभव भेजें !

     रोपण एक प्रायोगिक विषय है । इसमें छोटे छोटे अनुभव भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं । जो साधक अब तक रोपण कर रहे हैं, वे रोपण करते समय आएं अनुभव, हुई चूकें, उन चूकों से सीखने के लिए मिले सूत्र, रोपण के विषय में किए विशेषतापूर्ण प्रयोग के विषय में लेख स्वयं के छायाचित्र सहित भेजें । ये लेख सनातन प्रभात में प्रकाशित किए जाएंगे । इससे अन्यों को भी सीखने के लिए मिलेगा ।

२ अ. लेख भेजने हेतु डाक पता : श्रीमती भाग्यश्री सावंत, द्वारा ‘सनातन आश्रम’, २४/बी, रामनाथी, बांदिवडे, फोंडा, गोवा. पिन – ४०३४०१

२ आ. संगणकीय पता : [email protected]

३. ‘घर-घर में रोपर करना’, भगवान का ही नियोजन है, ऐसा भाव रखकर इस अभियान का भाव के स्तर पर लाभ लें !

     श्रीकृष्ण ने गोप-गोपियों की महाभयंकर वर्षा से रक्षा करने के लिए स्वयं की छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया था । इसी प्रकार भावी आपातकाल में भी भगवान भक्तों की रक्षा करेंगे । भगवान अपने नियोजनानुसार कार्य करते हैं । ‘घर-घर में रोपण करना’, यह भी भगवान का ही नियोजन है । इसे वे सभी से करवाने ही वाले हैं । भगवान ने पर्वत उठाया, तब गोप-गोपियों ने स्वयं की साधना के रूप में अपनी काठियां भी पर्वत को लगाई थीं । उसी प्रकार हम भी अपनी साधना के रूप में इस अभियान में मन से सहभागी होंगे और इस अभियान का भाव के स्तर पर अधिकाधिक लाभ लेंगे ।’

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, रामनाथी, गोवा. (१०.११.२०२१)