‘एक नगर में एक साधिका के घर एक अपरिचित महिला दुपहिया गाडी से आई थी । उस समय वह साधिका नगर में नहीं थी । घर पर उसके पति थे । इस महिला ने साधिका के पति को ‘आप की पत्नी के पास सनातन के ग्रंथ और सनातन पंचांग के वितरण के ४ – ५ सहस्र रुपए हैं, वह मुझे दें’, ऐसे कहा । इस समय साधिका को उसके पति ने चल-दूरभाष कर इस विषय में पूछा, तब साधिका ने बताया कि ‘ऐसे कोई भी पैसे मेरे द्वारा किसी को देना शेष नहीं है और इस प्रकार मेरे यहां कोई भी पैसे लेने के लिए आनेवाले नहीं थे ।’ तदुपरांत साधिका के पति ने संबंधित महिला को पैसे देने से मना कर दिया । तब उस महिला ने ‘मैं साधिका से बाद में संपर्क करूंगी’, ऐसा कहकर वह चली गई ।
इस प्रकार यदि कोई अपरिचित व्यक्ति घर आकर अथवा अन्य किसी भी स्थान पर मिलकर अथवा दूरभाष कर ग्रंथ और पंचांग वितरण के पैसे अथवा अन्य किसी कारणवश पैसे मांगे, तो साधक न दें । स्वयं की अथवा अपने परिजनों की ठगी न हो, इसलिए साधकों को सतर्क रहना चाहिए । ऐसे प्रसंग कहीं घटित हों तो साधक त्वरित उत्तरदायी साधकों को सूचित कर आगे की प्रक्रिया करें ।’
– श्री. वीरेंद्र मराठे, व्यवस्थापक, सनातन संस्था. (२५.११.२०२१)