साधको, साधना के आनंद की तुलना किसी भी बाह्य सुख से नहीं हो सकती, इसलिए साधना के प्रयत्न लगन से करें एवं खरा आनंद अनुभव करें !

साधकों के मन में माया के विचारों की तीव्रता एवं बारंबारता अधिक हो, तो वे इसके लिए स्वसूचना लें । अनिष्ट शक्तियों के कष्ट के कारण ऐसे विचार बढने पर नामजपादि आध्यात्मिक उपचार बढाएं ।

सिखाने की अपेक्षा सीखने की वृत्ति रखने से अधिक लाभ होता है !

‘ईश्वर सर्वज्ञानी हैं । हमें उनके साथ एकरूप होना है । इसलिए हमारा निरंतर सीखने की स्थिति में रहना आवश्यक है । किसी भी क्षेत्र में ज्ञान अर्जित करना, यह कभी भी समाप्त न होनेवाली प्रक्रिया है । अध्यात्म तो अनंत का शास्त्र है ।

साधको, ‘मेरी आध्यात्मिक उन्नति कब होगी ?’, इसकी चिंता किए बिना गुरुदेवजी के प्रति श्रद्धा रख लगन से प्रयास करते रहें !

‘प.पू. डॉक्टरजी ने एक साधिका को बताया था कि आध्यात्मिक उन्नति २० वर्ष उपरांत होगी । उसके उपरांत उत्तरदायी साधकों ने उसकी सहायता करने के लिए न जाने कितने प्रयास किए; परंतु तब भी उसमें साधना के संदर्भ में किसी प्रकार का भान उत्पन्न नहीं हो रहा था ।

साधको, गुरुसेवा में रुचि-अरुचि को न संजोकर ‘शूद्र वर्ण की सेवा करने से तीव्र गति से आध्यात्मिक उन्नति होती है’, यह ध्यान में रखकर सभी सेवाएं करने की तैयारी रखें !

संगणकीय सेवा करनेवाले कुछ साधकों को स्वच्छता सेवा अथवा रसोईघर से संबंधित सेवाएं कनिष्ठ स्तर की लगती हैं । उसके कारण वे शूद्र वर्ण की इन सेवाओं को करने में टालमटोल करते हैं ।

साधकों में व्यष्टि एवं समष्टि साधना के प्रति गंभीरता बढाने के लिए उत्तरदायी साधक सभी साधकों के व्यष्टि लेखन का ब्योरा लें !

‘अब आपातकाल की तीव्रता प्रतिदिन बढती जा रही है । उसके कारण सभी साधकों की व्यष्टि एवं समष्टि साधना नियमित होनी चाहिए ।

साधको; कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग एवं गुरुकृपायोग, इन योगमार्गाें के अनुसार प्रत्येक सेवा कर तीव्र गति से आध्यात्मिक उन्नति करें !

‘आश्रम में रहनेवाले, साथ ही प्रसार में सेवा करनेवाले साधक विभिन्न सेवाएं करते हैं । साधकों ने उन्हें मिली प्रत्येक सेवा यदि कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग एवं गुरुकृपायोग इन योगमार्गाें के अनुसार की, तो वह परिपूर्ण एवं भावपूर्ण होगी ।’

साधको, ‘आध्यात्मिक कष्ट के कारण नहीं, अपितु स्वयं में विद्यमान स्वभावदोषों एवं अहं के पहलुओं के कारण चूकें हो रही हैं’, इसे ध्यान में लेकर उनके निर्मूलन के लिए प्रयास कीजिए !

‘अनेक साधकों को तीव्र अथवा मध्यम स्तर का आध्यात्मिक कष्ट है । ‘व्यष्टि अथवा समष्टि साधना में चूकें होने पर कुछ साधकों के मन में ‘मुझे हो रहे आध्यात्मिक कष्ट के कारण यह चूक हुई’, यह विचार आ रहा है, ऐसा ध्यान में आया है ।

साधकों, भ्रमणभाष पर संपर्क करने हेतु घर का कार्य, साथ ही कार्यालयीन कार्य में बाधा/अडचन न आए, इसलिए सहसाधकों को अपना उपलब्ध समय सूचित करें !

‘प्रसार के अधिकांश साधक पारिवारिक दायित्व संभालते हुए धर्मप्रसार की सेवा करते हैं । जिस समय वे घर में रहते हैं, उस समय कुछ साधक सेवा के संदर्भ में उन्हें भ्रमणभाष पर संपर्क करते हैं तथा सेवा के संदर्भ में बातें करते हैं ।

साधकों, वर्तमान में होनेवाले पृथक कष्टों पर विजय पाने के लिए स्वयं की साधना में वृद्धि करें !

वर्तमान में अधिकांश साधकों के शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक कष्ट बढ गए हैं । कष्टों की प्रतिदिन बढनेवाली यह मात्रा आपत्काल निकट आने को दर्शा रही है ।

श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी अध्यात्म में ऐसा कीर्तिमान बनाएंगी, जिसे कोई तोड नहीं पाएगा ! – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले

‘कोई ऐसा भी हो सकता है, जिनके विषय में सभी को घर जैसी आत्मीयता एवं आधार प्रतीत होता है तथा जो साधकों की व्यष्टि तथा समष्टि साधना की ही नहीं, पारिवारिक समस्याएं भी सुलझा सके, ऐसी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी इतनी अद्वितीय हैं !