‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ही सबकुछ करवा लेते हैं’, इस अटूट श्रद्धा से युक्त श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी !

सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी, श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्री. सोहम् सिंगबाळ

१. साधकों की साधना हो; इसके लिए श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी द्वारा अविरत प्रयास किए जाना

‘श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को गुरुकार्य तथा ‘साधकों की आध्यात्मिक उन्नति हो’, इसकी अखंड उत्कंठा रहती है । उनका साधकों को लगन से मार्गदर्शन कर तैयार करना तथा साधकों को साधना में स्थिर करना निरंतर चलता रहता है । यह सब संभालते समय श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के चेहरे पर उसका कभी भी तनाव नहीं होता । ‘गुरुदेवजी ही सबकुछ करवा लेते हैं’, यह उनकी अटूट श्रद्धा है । उसके कारण वे सदैव ही सहजावस्था में रहती हैं तथा उनकी बातों में कभी भी कर्तापन नहीं होता ।

२. रात में जागकर साधकों के पत्र तथा अन्य कागदपत्र पढना 

दिनभर की सेवा समाप्त होने के उपरांत वे देर रात तक जागकर साधकों से साधना का मार्गदर्शन लेने के लिए मिले पत्र पढकर उन्हें चिन्हांकित कर आगे का नियोजन करती हैं ।’

– (सद्गुरु) श्री. नीलेश सिंगबाळ, धर्मप्रचारक, हिन्दू जनजागृति समिति (१८.९.२०२२)


श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की उनके बेटे श्री. सोहम् सिंगबाळ को प्रतीत हुई गुणविशेषताएं !

१. गुरुकार्य में एक मिनट का भी व्यवधान न पडे; इसके लिए अथक प्रयास करना

‘मां के मन में गुरुकार्य के प्रति तीव्र लगन है । वह किसी भी स्थिति में, साथ ही व्यक्तिगत काम करते समय गुरुकार्य में एक मिनट का भी व्यवधान न पडे, इसके लिए प्रयास करती हैं । हम जब व्यक्तिगत काम के लिए आश्रम से बाहर जाते हैं, तब भी वे चल-दूरभाष के माध्यम से सेवा करती हैं । ‘परिजन एवं संपर्क में आनेवाले व्यक्ति भी साधना कर स्वयं का उद्धार कर लें’, इसकी उनमें लगन है । इस कारण वे संभवतः सभी को जोडकर रखती हैं तथा उन्हें उनकी क्षमता के अनुरूप साधना, उदा. नामजप, प्रार्थना आदि करने के लिए कहती हैं ।

२. मां की वाणी में विद्यमान चैतन्य का प्रभाव

२ अ. चुनिंदा बातों से ही अंतर्मन पर साधना के दृष्टिकोण अंकित हो जाना : दिनभर में मां के साथ केवल १५ मिनट ही बातें हो पाती हैं । उस समय वे आध्यात्मिक स्तर पर तथा तत्त्वनिष्ठ रहकर बातें करती हैं । उसके कारण इन चुनिंदा बातों से भी मुझे साधना के दृष्टिकोण मिलते हैं तथा उनकी वाणी में विद्यमान चैतन्य के कारण वो बातें अंतर्मन पर अंकित हो जाती हैं ।

२ आ. मां के साथ थोडी-सी देर बात करने पर भी साधकों के मन को संतुष्टि मिलना : उनकी वाणी में विद्यमान चैतन्य के कारण अन्यों को कोई बात समझाने के लिए उन्हें उसका विश्लेषण नहीं करना पडता । उनके साथ थोडी-सी देर भी बात की, तब भी साधकों के चेहरे पर संतुष्टि दिखाई देती है । समाज के व्यक्तियों को भी उनकी बातें तुरंत स्वीकार होती हैं ।

३. अहंशून्यता होने से चूकों के विषय में सतर्कता से पूछ पाना

मां अध्यात्म के उच्च पद पर होते हुए भी मुझसे कहती हैं, ‘‘यदि मुझसे कुछ चूक हो रही हो, तो तुम मुझे बताओ ।’ इस प्रसंग में ‘मुझे और क्या करना चाहिए था ?’ मैं यह उचित कर रही हूं न ?’, इसका मुझे तुम तत्त्वनिष्ठता से उत्तर दो ।’’ इससे मुझे उनमें विद्यमान अहंशून्यता, साधना के प्रति गंभीरता, सतर्कता एवं तत्त्वनिष्ठा, इन गुणों के दर्शन हुए । मैंने एक बार सहज जिज्ञासा से उसे पूछा ‘‘सद्गुरुपद पर होते हुए चूक कैसे हो सकती है ?’’ उस पर वl कहने लगीं, ‘‘सौ प्रतिशत होने तक सतर्क रहकर प्रयासरत रहना चाहिए ।’’

४. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति दृढ श्रद्धा के कारण उत्साह के साथ अथक सेवा करना मां को एक ही समय में अनेक सेवाएं एवं चल-दूरभाष आते हैं । ऐसा निरंतर होता है, तब भी वह कभी थकी हुई दिखाई नहीं देती । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति दृढ श्रद्धा के कारण वे २४ घंटे उत्साहित रहती हैं । वे सभी सेवाएं उतने ही उत्साह के साथ करती हैं । उन्हें देखकर अन्यों में भी उत्साह का संचार होता है ।

– श्री. सोहम् सिंगबाळ (श्रीसत्शक्ति [श्रीमती] बिंदा सिंगबाळजी के पुत्र), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.