न्यायपालिका एवं विधिपालिका के बीच की अहंकार की लडाइयां ?
‘हे न्यायदेवता, मैं आपको पुनः पत्र लिख रहा हूं । उसे देखकर आप क्षुब्ध नहीं होंगे, ऐसी यदि मैंने अपेक्षा रखी, तब भी पत्र पढकर आप कुछ करेंगे नहीं, ऐसा मुझे लगने न दें; क्योंकि देखा जाए, तो विषय थोडा गंभीर है और कहा जाए, तो व्यंगात्मक भी ! किसी ने पहले ही कह डाला था कि इतिहास की पुनरावृत्ति होती है । पहले वह शोकांतिका होती है तथा उसके पश्चात वह व्यंग होता है ।