कोरोना संक्रमण के काल में चिकित्सकीय क्षेत्र के कुछ लोगों ने रोगियों को बहुत लूटा । उसके कारण सरकार को भी विवश होकर कठोर नियम बनाने पडे, विविध परीक्षणों के लिए न्यूनतम शुल्क निर्धारित करना पडा, लेखा परीक्षण करने पडे और चिकित्सा क्षेत्र के कुछ व्यक्तियों को आर्थिक दंड देना पडा । ‘अवसर मिलते ही लूटा जाए’ ऐसी वृत्ति के ये लोग इस काल में चिकित्सा क्षेत्र में बेधडक कार्यरत दिखाई दिए । उसके संदर्भ में हमने पढा अथवा अनुभव किया है; परंतु एक बात की बार-बार अनदेखी की जा रही है और वह है ‘कट प्रैक्टिस !’ (रोगियों पर आवश्यक उपचार करने के साथ अतिरिक्त लाभ कमाने हेतु अथवा अपने सहयोगियों को लाभ दिलाने हेतु रोगियों को अनावश्यक चिकित्सा परीक्षण करने के लिए कहना आदि अनाचार करना), जिसे इस क्षेत्र में ‘कट कमाना’ कहा जा सकता है । उसके विविध प्रकार होने की बात पढने में आई । उन्हें इस लेख में अंतर्भूत किया गया है । इस संदर्भ में ‘साथी’ नाम की संस्था ने भी एक अध्ययन प्रकाशित किया है, वह भी इस लेख में अंतर्भूत है । प्रत्यक्ष रूप से उपाय करने के स्थान पर उपाय किए जाने का भ्रम किस प्रकार उत्पन्न किया जाता है, इसका उदाहरण है ‘कट प्रैक्टिस’ को रोकने हेतु सरकार के प्रयास ! इस संदर्भ में सामान्य सूत्र निम्नानुसार हैं ।
१. रोगी के अज्ञान का अनुचित लाभ उठाकर डॉक्टर किस प्रकार रोगी को लूटते हैं, इसके कुछ उदाहरण
१ अ. आवश्यकता न होते हुए भी रोगी को रक्त एवं मूत्र के परीक्षण कराने के लिए कहकर ‘पैथोलॉजी लैब’ से दलाली कमाना : कई बार डॉक्टर उनके पास उपचार करवाने के लिए आए रोगियों को विविध परीक्षण करवाने हेतु ‘पैथोलॉजी लैब’ में (रक्त एवं मूत्र से संबंधित परीक्षण करने हेतु) भेजते हैं । ये सभी परीक्षण कर रोगी पुनः डॉक्टर के पास आता है । परीक्षणों के ब्योरे देखकर चिकित्सक उस रोगी को ‘आप को कुछ नहीं हुआ है’, ऐसा बताते हैं । उससे रोगी आनंदित होकर घर लौट जाता है । इस प्रक्रिया में रोगी को बहुत पैसे खर्च करने पडते हैं । इसमें होता यह है कि ‘पैथोलॉजी लैब’ का जो शुल्क होता है, उसमें की कुछ राशि (दलाली / कट मनी, कमिशन) उस डॉक्टर तक पहुंचाई जाती है ।
१ आ. स्वयं को रोग का निदान करना संभव होते हुए भी रोगी को अन्य विशेषज्ञ डॉक्टर के पास भेजकर उनसे दलाली कमाना : कुछ बीमारियों में डॉक्टर रोगी को बताते हैं कि ‘आप किसी विशिष्ट विशेषज्ञ के पास उदा. कान-नाक-गला विशेषज्ञ एवं हृदयरोग विशेषज्ञ) से जांच करवाएं, तो अच्छा रहेगा । उसके अनुसार रोगी संबंधित विशेषज्ञ के पास जाता है । वहां उसका परीक्षण कर निदान किया जाता है और शुल्क भी वसूला जाता है । कुछ रोगियों के संदर्भ में यह चिकित्सा मूल डॉक्टर भी कर सकता है; परंतु वैसा करने पर उस डॉक्टर को एक ही बार पैसे मिलते हैं । रोगी को अन्य विशेषज्ञ के पास भेजने से उस विशेषज्ञ से भी मूल डॉक्टर को अतिरिक्त दलाली (कमिशन) मिलती है ।
१ इ. रोगी की जेब खाली करनेवाले औषधि उत्पादक प्रतिष्ठान और डॉक्टरों की सांठगांठ ! : बडे-बडे औषधि उत्पादक प्रतिष्ठान उनके द्वारा बनाई जानेवाली औषधियां खरीदने के लिए डॉक्टरों को कुछ राशि और अनेक मूल्यवान भेंटवस्तुएं देते हैं, साथ ही उनकी विदेश यात्रा आदि भी प्रायोजित करते हैं, फलस्वरूप डॉक्टर रोगियों को उन प्रतिष्ठानों की औषधियां खरीदने हेतु प्रेरित करते हैं ।
१ ई. औषधियों के दुकानदारों से दलाली कमाने के लिए विशिष्ट दुकान में मिलनेवाली औषधियां खरीदने के लिए रोगी को बाध्य करना : औषधियों की कुछ दुकानों और डॉक्टरों की सांठगांठ होती है । उस डॉक्टर द्वारा दिए गए ‘प्रिस्क्रिप्शन’ में लिखी गई (औषधियों की चिट्ठी में निहित) औषधियां किसी विशिष्ट दुकानदार के पास ही मिलेंगी, इसका प्रबंध पहले ही किया जा चुका होता है । उसके कारण उस औषधि विक्रेता द्वारा बेची गई औषधियों का ‘कमिशन’ इन डॉक्टरों को प्रतिशत के अनुसार मिलता है ।
१ उ. बडे चिकित्सालय में उपचार लेनेवाले रोगियों को आवश्यकता न होते हुए भी अन्य विभाग में परीक्षण करने के लिए कहना : बडे-बडे चिकित्सालयों में उपचार ले रहे रोगियों को आवश्यकता न होते हुए भी अन्य विभागों में परीक्षण के लिए भेजा जाता है । ऐसे स्थानों पर विशिष्ट व्यक्तियों को ही दलाली (कट मनी) मिले, इसकी व्यवस्था की होती है ।
यहां दिए गए उदाहरण ऊपर-ऊपर के हैं, इस संदर्भ में और अधिक प्रकार होने की संभावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता । अनेक क्षेत्रों में ‘ग्राहक ही राजा’ होता है । वह उसकी इच्छा के अनुसार वस्तुएं/सेवाएं ले सकता है; परंतु स्वास्थ्य के क्षेत्र में ग्राहक नहीं, अपितु डॉक्टर ही राजा होता है । रोगी को कौनसे उपचार देने हैं, यह डॉक्टर ही सुनिश्चित करते हैं । इस क्षेत्र के संदर्भ में रोगी के अज्ञानी होने का डॉक्टर अनुचित लाभ उठाते हैं । अतः इस क्षेत्र के लिए कानूनी रचना अलग होने की आवश्यकता है ।
देश में संगठित अपराधों के विरोध में कठोर कानून हैं; परंतु चिकित्सा क्षेत्र में स्थित संगठित लूटमार के विरोध में कोई कानून नहीं है । आज की स्थिति यह है कि ‘कट प्रैक्टिस’ करनेवालों के लिए कोई दंड नहीं है ।
२. औषधि निर्मिति प्रतिष्ठान और डॉक्टर मिलकर रोगी को किस प्रकार लूटते हैं, इसके संदर्भ में ‘साथी’ संगठन द्वारा उजागर किया गया गंभीर सत्य !
पुणे की ‘साथी’ संस्था ने चिकित्सा क्षेत्र से संबंधित व्यक्तियों के साथ संवाद किया और उस चर्चा से प्राप्त निष्कर्षाें पर आधारित एक ब्योरा प्रकाशित किया । इस ब्योरे में ऐसा कहा गया है कि ‘आज के समय में लगभग ७० से ८० प्रतिशत डॉक्टर ‘कट प्रैक्टिस’ के माध्यम से पैसे कमाते हैं । औषधि निर्मित करनेवाले प्रतिष्ठान डॉक्टरों को यात्राखर्च, स्नेहभोज आदि प्रलोभन देकर उनके द्वारा उत्पादित औषधियों की बिक्री करने के लिए प्रेरित करते रहते हैं । ‘साथी’ संस्था के प्रतिनिधियों के साथ हुई चर्चा में संबंधित प्रतिनिधियों द्वारा प्रस्तुत अनुभव अत्यंत भयंकर हैं, जिन्हें यहां संक्षेप में दे रहे हैं ।
२ अ. औषधि निर्मिति प्रतिष्ठानों के प्रतिनिधियों द्वारा अधिकाधिक व्यवसाय प्राप्त करने के उद्देश्य से डॉक्टरों से मिलना : सामान्य रूप से वर्ष १९९० तक औषधियां बनानेवाले प्रतिष्ठान डॉक्टरों के पास औषधियों के नमूने और उन औषधियों की चिकित्सकीय विशेषताएं बताने के लिए जाते थे । उसके उपरांत अन्य बातों को ही अधिक महत्त्व प्राप्त हुआ । अब अधिकाधिक व्यवसाय प्राप्त करने हेतु चिकित्सकीय प्रतिनिधियों को (एमआर को) डॉक्टरों के पास भेजा जाता है ।
२ आ. औषधि निर्मिति प्रतिष्ठानों से कितना लाभ मिला, इसकी चर्चा होकर कुछ प्रसंगों में डॉक्टरों का अप्रसन्न होना : कई बार ऐसा होता है कि जब चिकित्सकीय प्रतिनिधि औषधि निर्मिति प्रतिष्ठानों द्वारा डॉक्टरों को कुछ लाभ/भेंटवस्तुएं देते हैं, तब डॉक्टरों की आपस में चर्चा होती है । यदि किसी डॉक्टर को तुलना में अल्प लाभ/भेंटवस्तुएं मिली हों, तो उससे वह अप्रसन्न हो जाता है ।
२ इ. औषधि निर्मिति प्रतिष्ठानों द्वारा डॉक्टरों को दी जानेवाली सुविधाओं और भेंटवस्तुओं के कुछ उदाहरण !
२ इ १. औषधियां बनानेवाले प्रतिष्ठानों की ओर से डॉक्टरों को अत्यधिक मूल्यवान चल-दूरभाष बनानेवाले ‘एपल’ प्रतिष्ठान के चल-दूरभाष (मोबाइल), चिकित्सालय में उपयोग किया जानेवाला कोई उपकरण, रसोई हेतु ओवन जैसे अनेक उपकरण और यंत्र भेंट किए जाते हैं । कभी-कभी डॉक्टर के चारपहिया वाहन के ऋण के किश्त का भुगतान करने तक की अनेक सुविधाएं भी दी जाती हैं । औषधि निर्मिति प्रतिष्ठानों की ओर से भेंटवस्तुएं लेनेवालों में शिक्षित डॉक्टर और पंजीकृत चिकित्सकीय व्यवसाय करनेवाले, ऐसा अंतर नहीं है ।
२ ई. औषधि निर्मिति प्रतिष्ठानों द्वारा डॉक्टरों के संगठन के लिए बडी आर्थिक सहायता की जाना : पहले डॉक्टरों के संगठन औषधि निर्मिति प्रतिष्ठानों से उनके कार्यक्रमों के लिए चंदा लेते थे । अब नियम कठोर बनने से चंदा नहीं लिया जाता । अब डॉक्टरों के संगठनों के कार्यक्रमों में औषधि निर्मिति प्रतिष्ठानों के वितरण कक्ष लगते हैं और उससे संगठनों को भारी किराया भी मिलता है ।
२ उ. चिकित्सालय में ही बिक्री के लिए औषधियां रखने से डॉक्टरों को मिलनेवाले लाभ : कुछ प्रतिष्ठान उनके द्वारा उत्पादित औषधियां डॉक्टरों के चिकित्सालय में बिक्री के लिए रखते हैं । उससे डॉक्टरों को प्रचुर मात्रा में लाभ मिलता है । उदा. किसी औषधि का मूल्य २ सहस्र ६०० रुपए हो, तो औषधि निर्मिति प्रतिष्ठान उस औषधि को डॉक्टरों को ६०० रुपए में बेचता है । सीधे प्रतिष्ठान से खरीदकर औषधि बेचने से उस डॉक्टर को २ सहस्र रुपए का लाभ मिलता है । इसके अतिरिक्त रोगियों से उपचारों का मिलनेवाला शुल्क अलग ही होता है ।
२ ए. एक चिकित्सकीय प्रतिनिधि ने बताया कि एलोपैथी के डॉक्टर संभवतः स्टिरॉइड नहीं देते; परंतु अन्य शाखा के (बीएएमएस अथवा बीएचएमएस) डॉक्टर बहुत ही सहजता से स्टिरॉइड लिख देते हैं । कदाचित उन्हें रोगी को अल्प गोलियों में और तुरंत ठीक करने की बात रोगियों को दिखानी हो ।
हिन्दू विधिज्ञ परिषद अधिवक्ताओं का संगठन होने से उक्त सूत्र अनुभव से प्राप्त नहीं, अपितु अध्ययन से प्राप्त हैं । कदाचित सभी चिकित्सकीय व्यवसायी ऐसे न हों; परंतु महंगी हो चुकी चिकित्सकीय शिक्षा, अन्य सभी क्षेत्रों में बढी हुई महंगाई, चिकित्सकीय यंत्रों-उपकरणों के रखरखाव का खर्चा जैसे अनेक घटक उसके कारण हैं । भले ही ऐसा हो; परंतु इस क्षेत्र में चल रही अप्रिय घटनाओं को समय रहते ही रोकना आवश्यक है ।
३. चिकित्सकीय क्षेत्र में निहित अनाचार रोकने हेतु कानून बनाने का सरकार का ढोंग !
३ अ. अन्य समय सरकारी समितियां समय व्यर्थ गंवाती हैं; परंतु तब भी ‘कट प्रैक्टिस’ से संबंधित कानून बनाने हेतु गठित समिति की ओर से १ महिने में ब्योरा प्रस्तुत : चिकित्सा क्षेत्र में चल रहे ‘कट मनी’ के संदर्भ में (रोगियों को लूटकर डॉक्टरों द्वारा कमाए जानेवाले पैसों के संदर्भ में) जब चर्चा होने लगी, तब सरकार ने वर्ष २०१७ में ‘कट प्रैक्टिस’ को रोकने हेतु कानून बनाने के लिए एक समिति का गठन किया । सामान्यतः सरकारी समितियां अधिकांशतः और समय मांगती हैं और इस प्रकार अनेक बार समय मांगकर भी भारी मन से अपना ब्योरा प्रस्तुत करती हैं । उसके उपरांत सरकार द्वारा उस समिति द्वारा प्रस्तुत ब्योरे का अध्ययन करने हेतु दूसरी समिति नियुक्त की जाती है । वह समिति भी और समय मांगती है; परंतु यहां कुछ अलग ही हुआ । ‘कट प्रैक्टिस’ के संदर्भ में कानून बनाने हेतु गठित समिति ने और समय न मांगकर तुरंत अपना ब्योरा पूरा किया, जो आश्चर्यचकित करनेवाली बात है । २८ जुलाई २०१७ को इस समिति का गठन किए जाने का सरकारी आदेश दिया गया और लगभग १ ही महिने में समिति ने अपना ब्योरा प्रस्तुत किया । २५ सितंबर २०१७ को चिकित्सकीय शिक्षा एवं शोध निदेशालय ने जनता के अध्ययन हेतु और उसपर अपने आक्षेप प्रविष्ट करने हेतु अपने जालस्थल पर इस कानून का प्रारूप प्रसारित किया ।
३ आ. समिति द्वारा बनाए गए कानून का प्रारूप पढकर ‘क्या इससे रोगियों को लूटनेवाले डॉक्टरों को सुरक्षा देना है ?’, यह प्रश्न उठना : जब मैंने यह प्रारूप पढा, तब इस समिति द्वारा समय लेने के संदर्भ में समय व्यर्थ न कर अन्य स्थानों पर किस प्रकार से षड्यंत्र रचा गया है, इसका भान हुआ । यह पढते समय रोगियों को ठगनेवाले डॉक्टरों को दंड मिले अथवा उन्हें संरक्षण मिले, कहीं यह तो उद्देश्य नहीं है न ?’, यह प्रश्न मेरे मन में उठा । इसमें मेरे ध्यान में आई बातें नीचे दे रहा हूं –
३ आ १. ‘दलाली’ शब्द की व्याख्या सुस्पष्ट न होने के कारण प्राथमिक स्तर पर ही डॉक्टरों को बचने का अवसर मिलने की संभावना !
३ आ २. चिकित्सालय के एक विभाग से अन्य विभाग में रोगी को परीक्षण करने के लिए कहे जाने के संदर्भ में कानून से छूट देने का पक्षपात ।
३ आ ३. शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत तैयार करना और प्रतिष्ठान के मालिक को कार्यवाही से छूट देना आदि जैसे प्रावधानों के द्वारा धोखाधडी करनेवाले डॉक्टरों को संरक्षण देने का प्रयास : धारा ३ में दंड का उल्लेख है और उस पर स्पष्टीकरण भी हैं । उनमें से चौथा स्पष्टीकरण संबंधित प्रतिष्ठान के/संस्था के अन्य उत्तरदायी व्यक्तियों को दोषी प्रमाणित करनेवाला है । यदि किसी बडे चिकित्सालय में ‘कट प्रैक्टिस’ चलने की बात ध्यान में आई, तो उस चिकित्सालय के निर्देशकों और मुख्य डॉक्टरों को भी उसका दोष लगेगा । इस संदर्भ में निर्देशक और मुख्य डॉक्टर को ‘कट प्रैक्टिस’ चलने की बात ज्ञात थी और वह उनकी सहमति से ही चल रही थी, यह बात शिकायतकर्ता को प्रमाणित करनी है, जो कठिन है । क्या यह भी शिकायतकर्ता को उजागर करना चाहिए ? क्या यह मालिक को छोडकर नौकर को दंडित करने जैसा नहीं है ? इसमें बडी मछलियां छूट जाएंगी और छोटी मछलियां फंस जाएंगी । इसमें ‘कोई फंसा और उसे दंड मिला’, यह वृथा ढोंग सरकार समाज के समक्ष करेगी’, ऐसा लगता है ।
दूसरी ओर क्या इससे सरकार को यह अपेक्षित है कि ‘बडी मछलियां (प्रतिष्ठान के प्रमुख) पुनः अपराध करती ही रहें ?’
३ आ ४. किस आधार पर अपराध पंजीकृत किया जाएगा, इसके संदर्भ में सुस्पष्टता न होना : धारा ५ के अनुसार ‘भ्रष्टाचार निवारण विभाग’ के पास जानकारी प्रविष्ट करने के उपरांत ३ महिने में उसकी जांच की जाए’, ऐसा उल्लेख किया गया है; परंतु क्या इसमें अपराध प्रविष्ट होगा ? जांच अधिकारी क्या जांच करने के उपरांत अपराध पंजीकृत करेगा । तो क्या वह अपने नाम से करनेवाला है और जानकारी देनेवाले को साक्षी बनानेवाला है अथवा क्या वह प्राप्त जानकारी के अनुसार अपराध पंजीकृत करनेवाला है, यह स्पष्ट नहीं होता ।
४. कानून बनाने के लिए गठित समिति ‘चिकित्सा शिक्षा और औषधीय पदार्थ विभाग’ को कानून के प्रारूप के विषय में जानकारी ही न होना
वर्ष २०१७ में कानून का प्रारूप प्रकाशित हुआ; परंतु कानून बनाने की प्रक्रिया को लकवा मार गया कि क्या हुआ पता नहीं ? क्योंकि यह कानून पारित करने के लिए आगे कोई भी प्रक्रिया हुई दिखाई नहीं देती । इस विषय में सूचना के अधिकार अंतर्गत पूछा गया । तब प्राप्त हुए उत्तर में बताया गया, ‘इस कानून संबंधी पूरी फाइल चिकित्सा शिक्षा और औषधीय पदार्थ मंत्री के पास १८.५.२०२१ को भेजी है ।’ आगे बताया गया कि ‘कानून की प्रति शासन की चिकित्सा शिक्षा और औषधीय पदार्थ विभाग को प्राप्त ही नहीं हुई ।’ यह प्रारूप चिकित्सा शिक्षा और शोध संचालनालय, मुंबई प्रकाशित करता है; परंतु कानून समिति को जिस विभाग ने नियुक्त किया है, वह चिकित्सा शिक्षा और औषधीय पदार्थ विभाग इस संदर्भ में पूर्ण अज्ञान प्रकट करता है । इसमें क्या ‘षड्यंत्र’ है, यह ‘कट प्रैक्टिस’ करनेवालों को ही ज्ञात होगा, क्या ऐसा मान लेना चाहिए ?
आयुर्वेद कहता है ‘हमारा शरीर पृथ्वी, आप, तेज, वायु और आकाश, इन पंचतत्त्वों से बना है, उनके समन्वय अथवा मात्रा में परिवर्तन अर्थात शारीरिक रोग’; परंतु यही कहना होगा कि स्वास्थ्य क्षेत्र का असंतुलन, अर्थात ‘उस क्षेत्र से संबंधित व्यक्तियों का अहं, मद, मत्सर, लोभ इत्यादि षड्रिपुओं से ग्रस्त होना ।’
५. चिकित्सा क्षेत्र के अनाचार रोकने के लिए व्यापक जनजागृति की आवश्यकता !
इस संदर्भ में हिन्दू विधिज्ञ परिषद ने एक पत्र द्वारा शासन के समक्ष अपना मत प्रस्तुत किया है । आवश्यक होने पर याचिकाएं भी प्रविष्ट की जाएंगी । चिकित्सा क्षेत्र के अनाचार नष्ट करने हेतु समाज में जागृति और आंदोलन की आवश्यकता है । इस आंदोलन में केवल अधिवक्ताओं को ही नहीं, अपितु स्वास्थ्य क्षेत्र के कार्यकर्ता, विशेषज्ञ सभी को सहभागी होना चाहिए । कानून तो आवश्यक ही है; परंतु उससे भी आगे वृत्ति में परिवर्तन होने तक संघर्ष करना आवश्यक है । चलिए, यथासंभव जो कर सकते हैं, जैसे कर सकते हैं वह करें और संघर्ष प्रारंभ करें !’
– अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दू विधिज्ञ परिषद (७.९.२०२१)
इस संदर्भ में हिन्दू विधिज्ञ परिषद द्वारा शासन के साथ पत्रव्यवहार किया गया है । ‘महाराष्ट्र प्रिवेंंशन ऑफ कट प्रैक्टिस इन हेल्थकेयर सेक्टर कानून २०१७’ कानून में आवश्यक परिवर्तन करें’, ‘यह कानून समयसीमा में पारित करना संभव न हो तो, उस संदर्भ में अध्यादेश निकालें’ आदि मांगें इस पत्र द्वारा की गई हैं । इस विषय में ‘हिन्दू विधिज्ञ परिषद के अधिवक्ता आवश्यक सहायता निःशुल्क करने के लिए तैयार है’, यह भी पत्र में उल्लेखित है । ‘महाराष्ट्र प्रिवेंशन ऑफ कट प्रैक्टिस इन हेल्थकेयर सेक्टर कानून २०१७’ कानून का कच्चा प्रारूप और सूचना के अधिकार अंतर्गत प्राप्त जानकारी ‘सनातन प्रभात’ के जालस्थल (वेबसाइट) पर प्रकाशित की गई है । उसका अध्ययन कर आप भी शासन से पत्रव्यवहार करें ! |
चिकित्सा क्षेत्र के अनाचारों को वैध मार्ग से रोकने के लिए ‘आरोग्य साहाय्य समिति’ का अभियान !चिकित्सा क्षेत्र के अनाचारों को वैध मार्ग से रोकने के लिए राष्ट्रप्रेमी नागरिकों को संगठित होना आवश्यक है । चिकित्सा क्षेत्र से संबंधित कटु अनुभव, साथ ही आपके परिसर में कुछ अनुचित घटना घटित हुई हो, तो उस विषय में हमें तत्काल सूचित करें । अच्छे डॉक्टर और परिचारिका (नर्स) से नम्र विनती ! : पैसे लुटनेवाले और रोगियों के साथ धोखाधडी करनेवाले डॉक्टरों के नाम सामने लाने के लिए कृपया सहायता करें । ऐसा करना आपकी साधना ही होगी । आपकी इच्छा हो, तो आपका नाम गुप्त रखा जाएगा । स्वयं के अनुभव सूचित करने और अभियान में सहभागी होने के लिए पता : श्रीमती भाग्यश्री सावंत, आरोग्य साहाय्य समिति, ‘मधु स्मृति’, सत्यनारायण मंदिर के निकट, फोंडा, गोवा पिन – ४०३ ४०१ |